साक्षी संरक्षण स्कीम, 2018: गवाहों की सुरक्षा और न्याय की मजबूती

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमानत की शर्तों का उल्लंघन होने पर साक्षी संरक्षण स्कीम, 2018 को विकल्प के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह टिप्पणी गवाह संरक्षण की संवेदनशीलता और न्याय प्रणाली में इसकी भूमिका को रेखांकित करती है।


साक्षी संरक्षण स्कीम, 2018 क्या है?

  • यह स्कीम गवाहों और उनके परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी।

  • उद्देश्य है कि गवाह बिना डर, दबाव या किसी प्रकार की धमकी के स्वतंत्र और निष्पक्ष गवाही दे सकें।

  • इसका मूल मकसद कानून-व्यवस्था लागू करना और आपराधिक मामलों में गवाहों को पुलिस एवं सुरक्षा एजेंसियों का सहयोग करने के लिए सुरक्षित माहौल देना है।


प्रमुख विशेषताएँ

  1. सुरक्षा उपायों का प्रावधान

    • गवाहों और उनके परिवारों को शारीरिक सुरक्षा देना।

    • गवाह की पहचान को गुप्त रखना।

  2. गवाहों का पुनर्वास

    • आवश्यकता पड़ने पर गवाह और परिवार को किसी अन्य स्थान पर बसाना।

    • आर्थिक मदद और पुनर्वास योजनाएँ उपलब्ध कराना।

  3. कानूनी और संस्थागत ढाँचा

    • जिला स्तर पर “गवाह संरक्षण समिति” बनाई गई है।

    • इसमें जिला एवं सत्र न्यायाधीश, पुलिस प्रमुख और लोक अभियोजक शामिल होते हैं।

  4. गोपनीयता

    • गवाहों से संबंधित सभी सूचनाएँ पूरी तरह गोपनीय रखी जाती हैं।


महत्व

  • गवाहों की सुरक्षा से न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता और पारदर्शिता बढ़ती है।

  • यह आपराधिक मामलों में न्याय सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को मजबूत करता है।

  • गवाहों के डर को कम करके उन्हें सत्य बोलने के लिए प्रेरित करता है।


निष्कर्ष

साक्षी संरक्षण स्कीम, 2018 न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह गवाहों को सुरक्षित माहौल देकर न केवल न्याय प्रक्रिया को प्रभावी बनाती है, बल्कि अपराधियों को सजा दिलाने में भी सहायक है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि यह स्कीम जमानत के उल्लंघन की भरपाई का विकल्प नहीं है, बल्कि इसका मकसद केवल गवाहों की रक्षा करना है।