27 फ़रवरी, 2025 current affairs
- भारत में पवन ऊर्जा का उज्जवल भविष्य: 2027 तक 63 GW क्षमता का लक्ष्य
- अमेरिका के ‘रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान‘ का भारत पर प्रभाव: GTRI रिपोर्ट में सिफारिशें
- भारत में न्यायपालिका में AI का क्रांतिकारी बदलाव: भविष्य की दिशा
- भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था: पांच गुना वृद्धि की उम्मीद
- परमाणु हथियार: विनाश का एकतरफा मार्ग – संयुक्त राष्ट्र महासचिव की चेतावनी
- भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप: 2025 में उत्पादन के लिए तैयार
- टाइम यूज सर्वे (TUS)
- SPHEREX स्पेस टेलीस्कोप
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)
- स्वायत्त (SWAYATT) पहल
- अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
- शैवाल प्रस्फुटन (Algal Bloom)
- जैवविविधता रिसाव (Biodiversity Leak)
1.भारत में पवन ऊर्जा का उज्जवल भविष्य: 2027 तक 63 GW क्षमता का लक्ष्य
भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। 2027 तक देश की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता 63 गीगावाट (GW) तक पहुंचने का अनुमान है। क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में यह क्षमता 3.4 GW होगी और 2026-27 तक यह दोगुनी होकर 7.1 GW हो जाएगी।
पवन ऊर्जा की स्थिति:
- जनवरी 2025 तक भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 48.16 GW हो चुकी है, जिससे वह दुनिया में चौथे स्थान पर है।
- भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में पवन ऊर्जा का दूसरा सबसे बड़ा योगदान है, जबकि सौर ऊर्जा शीर्ष स्थान पर है।
- प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य: गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटका, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश।
पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली योजनाएं:
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति (2018): पवन और सौर ऊर्जा के संयोजन से भूमि उपयोग और ग्रिड स्थिरता को बढ़ावा देती है।
- अपतटीय पवन ऊर्जा नीति (2015): तटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं को प्रोत्साहित करती है।
- हरित ऊर्जा मुक्त पहुंच नियम (2022): उपभोक्ताओं को नवीकरणीय ऊर्जा तक सरल पहुंच प्रदान करता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्रय दायित्व (RPO): विद्युत वितरण कंपनियों को पवन और अन्य नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा खरीदने का आदेश देता है।
चुनौतियां:
- वित्तीय व्यवहार्यता: उच्च प्रारंभिक लागत पवन ऊर्जा परियोजनाओं की सफलता को प्रभावित करती है।
- ग्रिड अवसंरचना: ऊर्जा वितरण में ग्रिड की कमी और अवसंरचनात्मक समस्याएं।
- भूमि अधिग्रहण: पवन ऊर्जा फार्मों के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया जटिल और धीमी हो सकती है।
- ट्रांसमिशन उपकरण: पावर ट्रांसमिशन के लिए आवश्यक उपकरणों की कमी।
भारत में पवन ऊर्जा का भविष्य उज्जवल है, लेकिन इसके लिए वित्तीय और अवसंरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
2. अमेरिका के ‘रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान’ का भारत पर प्रभाव: GTRI रिपोर्ट में सिफारिशें
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने अपनी नई रिपोर्ट ‘टैरिफ्स एंड इंडिया’ जारी की, जिसमें अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान के प्रभाव का विश्लेषण किया गया। इस योजना का उद्देश्य उन देशों पर उच्च टैरिफ लगाना है, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा है। रिपोर्ट में भारत सरकार और उद्योग हितधारकों के लिए घाटे को कम करने के उपायों का प्रस्ताव किया गया है।
अमेरिकी टैरिफ योजना के प्रभाव:
- भारत पर प्रभाव: भारत के निर्यात पर मौजूदा 2.8% की तुलना में 4.9% अतिरिक्त टैरिफ लग सकता है।
- क्षेत्रवार प्रभाव:
- कृषि: कृषि निर्यात, विशेष रूप से झींगा, डेयरी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर 38.2% तक का टैरिफ लग सकता है।
- औद्योगिक सामान: फार्मास्युटिकल्स, हीरे, आभूषण और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पर जोखिम बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, फार्मास्युटिकल्स पर 10.9% टैरिफ से जेनेरिक दवाओं की लागत बढ़ेगी, जिससे प्रतिस्पर्धा कम होगी।
- कम प्रभाव: पेट्रोलियम, खनिज और वस्त्र संबंधी उत्पादों पर कम प्रभाव पड़ सकता है।
रिपोर्ट में सिफारिशें:
- अग्रिम टैरिफ प्रस्ताव: भारत को अमेरिका के सामने शून्य-के-शून्य रणनीति प्रस्तावित करनी चाहिए, ताकि अमेरिकी आयातों पर टैरिफ समाप्त किया जा सके बिना घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुंचाए।
- जवाबी उपाय: भारत को अनुचित रियायतों से इनकार करना चाहिए और चीन की तरह जवाबी उपायों पर विचार करना चाहिए।
- व्यापार डेटा में सुधार: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार आंकड़ों के अंतर को सुलझाना चाहिए, ताकि गलत आंकड़ों के आधार पर टैरिफ निर्णयों को रोका जा सके।
यह रिपोर्ट भारत को अपनी व्यापार नीति में सुधार करने और अमेरिकी टैरिफ योजना के प्रभावों से बचने के लिए ठोस कदम उठाने की सलाह देती है।
3.भारत में न्यायपालिका में AI का क्रांतिकारी बदलाव: भविष्य की दिशा
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) भारतीय न्यायपालिका में तेजी से बदलाव ला रहा है, जिससे कानूनी प्रक्रियाओं और कानून को लागू करने में सुधार हो रहा है। मशीन लर्निंग (ML), नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP), ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) और प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स जैसी AI प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा रहा है।
AI के भविष्य में न्यायिक प्रणाली में संभावनाएं:
- AI-संचालित कानूनी अनुसंधान।
- ब्लॉकचेन से सुरक्षित केस रिकॉर्डिंग।
- AI-एनालिटिक्स से न्यायिक पारदर्शिता में वृद्धि।
- कानून लागू करते समय साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
AI की भूमिका:
- न्यायिक प्रक्रियाओं का डिजिटल परिवर्तन: जैसे ई-कोट्स परियोजना जो केस प्रबंधन को सुव्यवस्थित करती है।
- निर्णयों का अनुवाद: AI की मदद से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को 16 क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित किया गया है।
- कानून लागू करना और अपराधों की रोकथाम: AI का उपयोग अपराधों की पहचान और जांच में किया जा रहा है। पूर्वानुमान आधारित पुलिसिंग से कानून प्रवर्तन को सहायता मिल रही है।
- निगरानी और जांच:
- फेशियल रिकॉग्निशन से अपराधों का पता चल रहा है।
- AI-संचालित फॉरेंसिक विश्लेषण डिजिटल अपराधों की जांच में सहायक है।
- नवोन्मेषी समाधान:
- AI-आधारित ट्रायल बॉक्स रिकॉर्डिंग।
- अपराध की जांच में ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) का उपयोग।
AI का उपयोग न्यायपालिका को अधिक पारदर्शी, सुरक्षित और प्रभावी बना रहा है, और यह भविष्य में और भी नवाचारों की ओर बढ़ेगा।
4.भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था: पांच गुना वृद्धि की उम्मीद
भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था आगामी वर्षों में पांच गुना बढ़ने की संभावना जताई जा रही है, जो 2047 तक “विकसित भारत” के विज़न में महत्वपूर्ण योगदान देगी।
भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था:
- वर्तमान स्थिति: भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य 8.4 बिलियन डॉलर है, जो वैश्विक अंतरिक्ष बाजार का 2% है।
- अर्थव्यवस्था में योगदान: पिछले दशक में 20,000 करोड़ रुपये का GDP में योगदान और 96,000 लोगों को नौकरियां प्रदान की गईं। हर डॉलर के निवेश से 2.51 डॉलर का आर्थिक प्रभाव उत्पन्न होता है।
- विजन: सरकार का लक्ष्य 2033 तक वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में 8% हिस्सेदारी प्राप्त करना है, जिससे इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था 44 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकेगी।
राष्ट्र निर्माण में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका:
- भूमि डिजिटलीकरण: उपग्रहों की मदद से भूमि रिकॉर्ड में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है।
- संसाधन मानचिह्नण: हिमालयी और समुद्री संसाधनों का बेहतर उपयोग अंतरिक्ष तकनीक से संभव हो रहा है।
- महिलाओं की भागीदारी: ISRO में 20-25% महिलाएं कार्यरत हैं और प्रमुख मिशनों में योगदान दे रही हैं।
- नेविगेशन और संचार: ISRO का NavIC नेशनल पोजिशनिंग और कनेक्टिविटी को बढ़ाता है।
अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण पहलें:
- अंतरिक्ष बजट: 2013-14 में 5,615 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-2026 में 13,416 करोड़ रुपये होने की उम्मीद।
- IN-SPACE: 2020 में स्थापित इस केंद्र का उद्देश्य निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना और उसका पर्यवेक्षण करना है।
- अन्य पहलें: भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, 100% FDI की अनुमति, और 1,000 करोड़ रुपये का वेचर कैपिटल फंड।
भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां:
- निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: सुधारों के बावजूद, निजी निवेश बहुत कम है।
- विनियामक बाधाएं: जटिल नवाचारों में देरी।
- अवसंरचना संबंधी समस्याएं: लॉन्च साइट्स और अनुसंधान केंद्रों की आवश्यकता।
- कुशल कार्यबल की कमी: अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी।
भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था भविष्य में न केवल आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगी।
5.परमाणु हथियार: विनाश का एकतरफा मार्ग – संयुक्त राष्ट्र महासचिव की चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने हाल ही में परमाणु हथियारों के खतरे को लेकर गंभीर चेतावनी दी, यह बयान उस समय आया जब “डूम्सडे क्लॉक” आधी रात के एक सेकंड करीब पहुंच गई। यह घड़ी 1947 में बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स द्वारा पेश की गई थी, जो प्रतीकात्मक रूप से यह दिखाती है कि मानवता आत्म-विनाश के कितने करीब है।
परमाणु हथियारों से उत्पन्न जोखिम:
- वैश्विक सुरक्षा चिंताएं: भूराजनीतिक तनाव, राष्ट्रों के बीच विश्वास की कमी और सैन्य खर्चों में वृद्धि से परमाणु युद्ध की संभावना बढ़ रही है।
- निरस्त्रीकरण फ्रेमवर्क का क्षरण: परमाणु परीक्षणों और प्रसार के खिलाफ पहले से बनाए गए मानदंड कमजोर हो रहे हैं।
- परमाणु ब्लैकमेल: परमाणु हथियारों का धमकी के रूप में उपयोग वैश्विक अस्थिरता को बढ़ावा देता है।
- नई हथियारों की दौड़: देशों द्वारा परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाई जा रही है, और बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती शुरू हो गई है।
- AI का हथियार के रूप में उपयोग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से परमाणु हथियारों का अनियंत्रित इस्तेमाल बढ़ सकता है, जिससे खतरे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
अप्रसार प्रयास:
- निःशस्त्रीकरण सम्मेलन: इसका उद्देश्य परमाणु निरस्त्रीकरण, बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ को रोकना, और नए प्रकार के व्यापक विनाशकारी हथियारों का समाधान खोजना है।
- परमाणु अप्रसार संधि (NPT): यह संधि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती है।
- व्यापक परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT): यह संधि सैन्य और शांतिपूर्ण उद्देश्य से किए गए सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है।
- IAEA: अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और वैज्ञानिक सहयोग के लिए कार्य करती है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने परमाणु हथियारों के बढ़ते खतरे पर चिंता जताई और दुनिया को समझाया कि यह विनाश का एकतरफा मार्ग है, जिसे रोकना अब अत्यंत आवश्यक हो गया है।
6.भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप: 2025 में उत्पादन के लिए तैयार
भारत 2025 तक अपनी पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन शुरू करेगा, जिससे आयातों पर निर्भरता कम होगी और वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत की स्थिति मजबूत होगी।
भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग:
- वर्तमान स्थिति: भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 2023 में लगभग 38 बिलियन डॉलर का था और 2030 तक यह 109 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
- संभावनाएं: भारतीय सेमीकंडक्टर उपभोग बाजार में 2030 तक 13% की वार्षिक वृद्धि की उम्मीद है।
चुनौतियां:
- पूंजी की आवश्यकता: सेमीकंडक्टर फैक्ट्री स्थापित करने के लिए 10 बिलियन डॉलर से अधिक की निवेश आवश्यकता होती है।
- कुशल कार्यबल की कमी: सेमीकंडक्टर डिजाइन, विनिर्माण और परीक्षण में विशेषज्ञों की कमी है।
- आयात निर्भरता: सिलिकॉन वेफर जैसे कच्चे माल का आयात किया जाता है, जिससे निर्भरता बनी रहती है।
प्रमुख पहल:
- सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम: घरेलू सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यह कार्यक्रम लॉन्च किया गया है।
- इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन: यह मिशन भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और डिजाइन का वैश्विक केंद्र बनाने का लक्ष्य रखता है।
- बड़ी कंपनियों के साथ साझेदारी: माइक्रोन और फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी की जा रही है, ताकि भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित की जा सकें।
अन्य सुर्खियां
7.टाइम यूज सर्वे (TUS)
हाल ही में, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने 2024 के लिए दूसरा टाइम यूज सर्वे (TUS) जारी किया।
टाइम यूज सर्वे (TUS) के बारे में
- प्रमुख उद्देश्यः यह जनसंख्या द्वारा अलग-अलग गतिविधियों पर व्यतीत किए गए समय को मापने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
- अन्य उद्देश्यः वैतनिक और अवैतनिक गतिविधियों में पुरुषों एवं महिलाओं की भागीदारी का मापना करना।
मुख्य निष्कर्षः
- रोजगार से संबंधित गतिविधियों (वैतनिक कायों) में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
- भारतीय परिवारों में जेंडर की परवाह किए बिना देखभाल संबंधी गतिविधियों को मान्यता मिल रही है।
- जनसंचार माध्यमों और खेलकूद संबंधी गतिविधियों में पुरुषों एवं महिलाओं दोनों द्वारा व्यतीत किए गए समय में वृद्धि हुई है।
8.SPHEREX स्पेस टेलीस्कोप
नासा स्पेसएक्स फाल्कन 9 रकिट से SPHEREx स्पेस टेलीस्कोप को लॉन्च करेगा।
SPHEREX स्पेस टेलीस्कोप के बारे में
इसका पूरा नाम स्पेक्ट्रो-फोटोमीटर फॉर द हिस्ट्री ऑफ यूनिवर्स, एपॉक ऑफ रिआयोनाइजेशन एंड आइस एक्स्प्लोरर।
- उद्देश्यः ऑप्टिकल और नियर इन्फ्रारेड प्रकाश में अंतरिक्ष का सर्वेक्षण करना।
- कार्यावधिः 2 वर्ष।
उद्देश्य:
- आकाशगंगाओं के वितरण का मानचिलण करते हुए ब्रह्मांड की उत्पत्ति का पता लगाना।
- यह मिल्की वे में 100 मिलियन तारो और 450 मिलियन आकाशगंगाओं से संबंधित डेटा को एकत्र करेगा।
- 102 रंगों (प्रकाश की अलग अलग तरंगदैर्ध्य) में ब्रह्मांड का 3 ही मानचिह्न बनाना।
- कॉस्मिक इन्फ्लेशन के बारे में जानकारी प्राप्त करना।
- कॉस्मिक इन्फ्लेशन बिग बैंग के बाद अत्यल्प समय में एक बिंदु से ब्रह्मांड के तेजी से और घातीय विस्तार की परिघटना है।
9.ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) ने कार्बन बाजार पर पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन “प्रकृति (PRAKRITI) 2025” का आयोजन किया। प्रकृति से आशय “प्रोमोटिंग रेसिलियस, अवेयरनेस, नॉलेज एंड रिसोर्सेज़ फॉर इंटीग्रेटिंग ट्रांसफॉर्मेशनल इनिशिएटिव्स” है।
- इसका उद्देश्य भारतीय कार्बन बाजार की समझ, वैश्विक कार्बन बाजार की गतिशीलता आदि के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के बारे में
- उत्पत्तिः ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत स्थापित।
- उद्देश्यः भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करना।
- विज़नः भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता में सुधार लाना, जिससे देश के संधारणीय विकास में योगदान दिया जा सके।
- मिशनः ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के समय फ्रेमवर्क के भीतर, स्व-विनियमन और बाजार सबंधी सिद्धांतों पर बल देते हुए नीतियों एवं रणनीतियों की विकसित करना।
10.स्वायत्त (SWAYATT) पहल
सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) पर स्वायत्त पहल के रूपांतरकारी प्रभाव के 6 वर्ष पूरे हुए।
- GcM एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जो सरकारी खरीदारों द्वारा सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए संपूर्ण समाधान प्रदान करता है।
स्वायत्त (SWAYATT) पहल के बारे में
- इसका पूरा नाम “स्टार्ट-अप्स, वीमेन एड यूच एडवांटेज भू ई ट्रांजैक्शन्स इनिशिएटिव” है।
- उत्पत्तिः इसे 2019 में GeM पर लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्यः सार्वजनिक खरीद में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों और युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना।
- पहलेः स्टार्ट-अप रनवे और वुमनिया स्टोरफ्रंट जैसी पहलों से स्टार्ट-अप्स, महिला उद्यमियों और युवाओं को बेहतर पहुंच मिलती है। इससे उन्हें देश भर के लाखों सरकारी खरीदारों से जुड़ने का अवसर मिलता है।
11.अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की 25वीं वर्षगांठ मनाई गई।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के बारे में
- यह दिवस वर्ष 2000 से प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को मनाया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार बांग्लादेश की पहल थी। इसे 1999 के यूनेस्को महासम्मेलन में अनुमोदित किया गया था।
- उद्देश्यः समावेशिता, बहुभाषी शिक्षा और अल्पसंख्यक एवं स्वदेशी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देना।
- विश्व स्तर पर 40% जनसंख्या को उस भाषा में शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा नहीं है, जिसे वे बोलते या समझते है।
12.शैवाल प्रस्फुटन (Algal Bloom)
एक हालिया अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इंग्लैंड की टेम्स नदी में शैवाल प्रस्फुटन में बढ़ोतरी हो सकती है।
शैवाल प्रस्फुटन के बारे में
- परिभाषाः शैवाल प्रस्फुटन ताजे, लवणीय या खारे जल में सूक्ष्म शैवाल या शैवाल जैसे वैक्टीरिया की अत्यधिक वृद्धि को कहते हैं।शैवाल प्रस्फुटन कई रंगों का हो सकता है, जिनमें नीला-हरा, पीला, भूरा, गुलाबी और लाल शामिल है।
प्रकार
- सायनोवैक्टीरिया (नील-हरित शैवाल): यह सबसे सामान्य प्रकार का हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन है, जो मीठे पानी की झीलों, तालाबों और नदियों में दिखाई देता है।
- गोल्डन एल्गी (प्राइमनेसियम पार्वम): यह मुख्य रूप से महासागरों में पाया जाता है, लेकिन अब मीठे जल स्रोतों को भी प्रभावित कर रहा है। सायनोबैक्टीरिया के विपरीत, यह मनुष्यों को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
13.जैवविविधता रिसाव (Biodiversity Leak)
हालिया अध्ययन से पता चला है कि समृद्ध देशों में किए गए संरक्षण प्रयास अन्य देशों में जैव विविधता की हानि को बढ़ा सकते हैं।
जैव विविधता रिसाव के बारे में
जैव विविधला रिसाव से तात्पर्य किसी क्षेल में जैव विविधता की अनपेक्षित हानि से है। यह हानि संरक्षण या पर्यावरण नीतियों के कारण होती है, जिससे पर्यावरणीय हानि कहीं अन्यल स्थानांतरित हो जाती है।
जैव विविधता रिसाव के प्रभावः
- वैश्विक जजैव विविधता की हानि,
- संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए खतरा,
- जलवायु परिवर्तन में तेजी आदि।