🔹 रिपोर्ट जारी करने वाले संगठन:
📌 ट्रांसयूनियन सिबिल, नीति आयोग का महिला उद्यमिता मंच (WEP) और माइक्रोसेव कंसल्टिंग (MSC)
🔹 रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
✅ महिलाओं द्वारा ऋण लेने में वृद्धि
📌 2019 से 2024 के बीच ऋण के लिए आवेदन करने वाली महिलाओं की संख्या तीन गुना बढ़ी।
📌 इससे यह स्पष्ट होता है कि महिलाएं विभिन्न उद्देश्यों के लिए ऋण लेने में अधिक रुचि दिखा रही हैं।
✅ ऋण लेने वाली महिलाओं का जनसांख्यिकीय विश्लेषण
📌 60% महिलाएं अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से हैं।
📌 महिलाओं को दिए गए कुल खुदरा ऋणों में केवल 27% ऋण 30 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं ने लिए, जबकि पुरुषों में यह अनुपात 40% है।
📌 दक्षिणी राज्यों में महिलाओं को दिए गए ऋणों की हिस्सेदारी अधिक है, जबकि उत्तरी और मध्य भारत में यह कम है।
✅ वित्तीय जागरूकता में वृद्धि
📌 2.7 करोड़ महिलाओं ने ट्रांसयूनियन सिबिल के माध्यम से अपना क्रेडिट स्कोर जाना, जिससे उनकी वित्तीय समझ में सुधार हुआ।
🔹 महिलाओं को ऋण लेने में आने वाली चुनौतियाँ
❌ सामाजिक और मनोवैज्ञानिक बाधाएँ
📌 ऋण लेने में हिचक: सामाजिक मान्यताएँ, ऋण चुकाने की चिंता और आवेदन प्रक्रिया की जटिलता के कारण महिलाएँ बैंक से ऋण लेने से बचती हैं।
❌ बैंकों की भूमिका और अनुकूल माहौल का अभाव
📌 बैंक शाखाओं में महिलाओं के अनुकूल माहौल नहीं होता, जिससे वे सही सलाह नहीं ले पातीं।
❌ क्रेडिट हिस्ट्री की कमी और संपत्ति का अभाव
📌 महिलाओं के पास गारंटर, संपत्ति (कोलेटरल) या पर्याप्त वित्तीय दस्तावेज नहीं होते, जिससे उन्हें ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
📌 उदाहरण: महिलाओं के स्वामित्व वाले 79% व्यवसाय स्व-वित्तपोषित हैं, और MSME सेक्टर को दिए गए कुल ऋण का केवल 7% ही महिलाओं को मिलता है।
❌ ऋण देने में जोखिम और लैंगिक भेदभाव
📌 महिलाओं को ऋण देना जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि उनके पास कम क्रेडिट हिस्ट्री और व्यवसाय का अनुभव होता है।
📌 22.2% महिला उद्यमी ऋण प्राप्त करने के लिए आवश्यक शर्तें पूरी नहीं कर पातीं।
🔹 रिपोर्ट में दी गई प्रमुख सिफारिशें
✅ महिलाओं को अधिक व्यवसायिक ऋण उपलब्ध कराना
📌 महिलाओं को कम ब्याज दर पर ऋण देने की नीति अपनाई जाए।
📌 महिलाओं को दिए गए ऋणों पर गारंटी कवर लागू किया जाए, जिससे जोखिम कम हो।
✅ बैंकों में अनुकूल वातावरण और विशेष ऋण उत्पाद
📌 महिलाओं के लिए विशेष लोन प्रोडक्ट्स विकसित किए जाएँ, जो उनके सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के अनुरूप हों।
✅ डेटा-संचालित निर्णय और टेक्नोलॉजी का उपयोग
📌 AI और बिग डेटा का उपयोग करके लैंगिक भेदभाव को रोकने के लिए ऋण देने के जोखिम का पुनर्मूल्यांकन किया जाए।
✅ डिजिटल और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा
📌 महिलाओं को डिजिटल लेन-देन, बुक-कीपिंग और व्यवसाय पंजीकरण के लिए प्रेरित किया जाए।
✅ बैंकों और सरकारी योजनाओं से अधिक सहायता
📌 बैंकों को महिला उद्यमियों के लिए अधिक सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
🔹 निष्कर्ष
📌 यह रिपोर्ट दिखाती है कि भारत में महिलाएँ वित्तीय रूप से सशक्त हो रही हैं, लेकिन उन्हें ऋण प्राप्त करने में अब भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
📌 नीतिगत सुधार, वित्तीय समावेशन और तकनीकी नवाचार से इन बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
📌 यदि महिलाओं को सशक्त तरीके से ऋण उपलब्ध कराया जाए, तो वे भारत की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।