समान नवीकरणीय ऊर्जा टैरिफ

समान नवीकरणीय ऊर्जा टैरिफ (URET) : क्यों हुई व्यवस्था की समाप्ति?

भारत नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में गिना जाता है। देश की ऊर्जा सुरक्षा और सतत विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कई नीतियाँ बनाई गईं। इन्हीं में से एक व्यवस्था थी — समान नवीकरणीय ऊर्जा टैरिफ (Uniform Renewable Energy Tariff : URET)। हाल ही में केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने इस व्यवस्था को समाप्त करने का निर्णय लिया है।


URET क्या था?

  • URET का उद्देश्य बिजली उपभोक्ताओं को एक समान टैरिफ प्रदान करना था।

  • इसके तहत केंद्रीय पूल (Central Pool) के भीतर आने वाली समान नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की प्रतिस्पर्धी बोली दरों का औसत निकालकर उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध कराई जाती थी।

  • सरल शब्दों में, यह व्यवस्था पूरे देश में नवीकरणीय ऊर्जा को एक मानक दर पर उपलब्ध कराने की कोशिश थी।


समाप्ति के कारण

URET को समाप्त करने का मुख्य कारण था:

  1. टैरिफ की अनिश्चितता – टैरिफ तीन वर्षों की निश्चित अवधि के बाद बदल जाता था, जिससे निवेशकों और खरीदारों दोनों को अस्थिरता का सामना करना पड़ता था।

  2. PPA पर अनिच्छा – क्रेता पक्ष (विद्युत वितरण कंपनियाँ) इस अनिश्चितता की वजह से Power Purchase Agreements (PPA) पर हस्ताक्षर करने में हिचकिचाते थे।

  3. परियोजनाओं में रुकावट – परिणामस्वरूप कई नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ अटक गईं और निवेश की रफ्तार धीमी हो गई।


आगे का रास्ता

URET की समाप्ति से अब:

  • बिजली शुल्क निर्धारण प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और सरल होगी।

  • परियोजनाओं को अनिश्चित टैरिफ से मुक्ति मिलेगी।

  • निवेशकों को लंबी अवधि के लिए भरोसेमंद और स्थिर ढाँचा मिलेगा।

  • इससे देश में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता (Installed Capacity) बढ़ाने में मदद मिलेगी।


महत्व

भारत ने 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में URET की समाप्ति एक सुधारात्मक कदम है जो:

  • निवेश को प्रोत्साहित करेगा,

  • परियोजनाओं की गति तेज़ करेगा,

  • और उपभोक्ताओं के लिए सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने में मददगार होगा।


निष्कर्ष

Uniform Renewable Energy Tariff (URET) का उद्देश्य भले ही सकारात्मक था, लेकिन व्यवहारिक चुनौतियों और टैरिफ की अनिश्चितता ने इसे अप्रभावी बना दिया। अब इसकी समाप्ति से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में पारदर्शिता और स्थिरता बढ़ेगी और भारत अपने हरित ऊर्जा लक्ष्यों की ओर और तेज़ी से बढ़ सकेगा।