फसल अवशेष और कृषि-पारिस्थितिकी पर प्रभाव

फसल अवशेष और कृषि-पारिस्थितिकी पर प्रभाव

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में फसल अवशेष (Crop Residues) का मुद्दा अक्सर चर्चा में रहता है। फसल कटाई के बाद खेतों में बचने वाले डंठल, पराली, पत्ते और भूसी को फसल अवशेष कहा जाता है। अधिकतर किसान इन्हें जलाकर अगली बुआई के लिए खेत तैयार कर लेते हैं। यह तरीका सरल और सस्ता ज़रूर है, लेकिन इसके लंबी अवधि वाले दुष्परिणाम हमारे पर्यावरण और कृषि-पारिस्थितिकी दोनों के लिए गंभीर साबित हो रहे हैं।


🌾 फसल अवशेष क्या हैं?

  • जब खेत में फसल काट ली जाती है, तब उसके बाद बची हुई सामग्रियां—जैसे गेहूँ की पराली, धान का डंठल, मक्का के पत्ते या गन्ने की पत्तियां—को ही फसल अवशेष कहा जाता है।

  • किसान इन्हें खेत में ही जला देते हैं ताकि जल्दी से अगली फसल बोई जा सके।


🔎 हालिया अध्ययन से मिले तथ्य

1. मृदा की उर्वरता पर असर

फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर जैसे पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। दीर्घकाल में मिट्टी की उर्वरता घट जाती है और फसल उत्पादकता कम होने लगती है।

2. वायु प्रदूषण और पारिस्थितिकी पर असर

धुएं में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और कण पदार्थ (PM2.5, PM10) न सिर्फ वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं बल्कि खेतों में रहने वाले कीट-पतंगों और पक्षियों की प्राकृतिक गतिविधियों को बाधित करते हैं।

3. प्राकृतिक शिकारियों की कमी

मकड़ियां, लेडीबर्ड्स, मेंढक और केंचुए जैसे जीव खेतों में कीटों का शिकार करके प्राकृतिक नियंत्रण बनाए रखते हैं। लेकिन अवशेष जलाने से इनकी संख्या घटती जा रही है, जिससे कीटों का प्रकोप बढ़ रहा है।

4. खाद्य श्रृंखला का असंतुलन

कीटों और उनके शिकारियों की संख्या में कमी से पोषण स्तरों का संतुलन बिगड़ता है। परिणामस्वरूप पूरी खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है और कृषि-पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल असर पड़ता है।


✅ समाधान और विकल्प

  1. फसल अवशेष प्रबंधन मशीनें

    • जैसे हैप्पी सीडर, सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (SMS), रोटावेटर आदि।

    • ये मशीनें अवशेष को मिट्टी में मिलाकर उसे उर्वरक के रूप में इस्तेमाल करती हैं।

  2. बायो-डीकंपोज़र

    • दिल्ली और उत्तर भारत के कई राज्यों में बायो-डीकंपोज़र का प्रयोग शुरू हुआ है।

    • यह पराली को 15-20 दिन में खाद में बदल देता है।

  3. पशु चारे में उपयोग

    • धान की पराली और गन्ने के अवशेष को पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

  4. ऊर्जा उत्पादन

    • अवशेष से बायो-गैस, एथेनॉल और बिजली बनाई जा सकती है।

  5. मल्चिंग और कम्पोस्टिंग

    • पराली को खेत में बिछाकर मल्चिंग की जा सकती है, जिससे नमी बनी रहती है और मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है।


🌍 निष्कर्ष

फसल अवशेष जलाना तात्कालिक रूप से खेत साफ करने का सबसे आसान तरीका लगता है, लेकिन यह मिट्टी की सेहत, पर्यावरण और कृषि-पारिस्थितिकी के लिए दीर्घकालिक खतरा है। अगर किसान इसे संसाधन मानकर प्रबंधन करें तो यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, ऊर्जा उत्पादन करने और पशुपालन में सहायक हो सकता है।

सतत कृषि के लिए ज़रूरी है कि हम फसल अवशेष को समस्या नहीं बल्कि अवसर के रूप में देखें।