पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता और अनुच्छेद 9.1: विकासशील देशों की उम्मीदें
जलवायु परिवर्तन आज पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है। इस संकट से निपटने के लिए वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता (Paris Climate Agreement) अपनाया गया था। इस समझौते में सभी देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने और धरती के तापमान वृद्धि को सीमित करने का संकल्प लिया। इस समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है अनुच्छेद 9.1, जो खास तौर पर वित्तीय सहायता से जुड़ा हुआ है।
अनुच्छेद 9.1 क्या कहता है?
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इस अनुच्छेद के अनुसार, विकसित देशों की जिम्मेदारी है कि वे
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अपने पिछले वित्तीय दायित्वों को जारी रखें।
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विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के शमन (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation) के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएं।
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यह दायित्व “समान लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व और ऐतिहासिक जिम्मेदारी” (CBDR-HR) के सिद्धांत पर आधारित है।
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यानी जिन देशों ने अतीत में औद्योगिकीकरण के जरिए जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी उठाई है, उन्हें इसका बोझ भी अधिक उठाना चाहिए।
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COP-30 (बेलेम, ब्राजील) में अनुच्छेद 9.1 की चर्चा क्यों?
भारत और अन्य विकासशील देश चाहते हैं कि आने वाली COP-30 बैठक में अनुच्छेद 9.1 को फिर से वार्ता के केंद्र में लाया जाए। इसके पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
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वित्तीय अंतराल (Finance Gap)
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विकसित देशों ने 2020 तक हर साल 100 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता देने का वादा किया था, लेकिन यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया।
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अभी भी जलवायु वित्तपोषण में भारी कमी है।
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जलवायु परिवर्तन का बढ़ता असर
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विकासशील देश बाढ़, सूखा, चक्रवात और समुद्र-स्तर वृद्धि जैसी चुनौतियों से अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
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इनके पास संसाधनों की कमी है, जिससे वे प्रभावी ढंग से निपट नहीं पा रहे।
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न्याय और जिम्मेदारी
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भारत जैसे देश यह तर्क देते हैं कि जलवायु संकट के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार अमीर देशों को ही वित्तीय बोझ उठाना चाहिए।
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भारत और विकासशील देशों की मांग
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वित्तीय दायित्वों की स्पष्टता: विकसित देशों को यह साफ करना होगा कि वे कितनी राशि देंगे और कब देंगे।
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पारदर्शिता और निगरानी: फंडिंग का लेखा-जोखा पारदर्शी तरीके से रखा जाए।
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अनुकूलन (Adaptation) पर ध्यान: केवल उत्सर्जन घटाने पर नहीं, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए भी वित्तीय मदद मिले।
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नए लक्ष्य: 2025 के बाद के लिए नया और अधिक महत्वाकांक्षी वित्तीय लक्ष्य तय किया जाए।
निष्कर्ष
पेरिस समझौते का अनुच्छेद 9.1 विकासशील देशों के लिए जीवनरेखा जैसा है। जब तक विकसित देश अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरी ईमानदारी से नहीं निभाते, तब तक जलवायु न्याय (Climate Justice) अधूरा रहेगा। भारत और अन्य विकासशील देश COP-30 में इस मुद्दे को मजबूती से उठाने के लिए तैयार हैं, ताकि वैश्विक जलवायु कार्रवाई संतुलित और न्यायपूर्ण हो सके।