सुर्खियों में रहे व्यक्तित्व: राजा पृथु राय
भारतीय इतिहास के पन्नों में कई ऐसे वीर नरेशों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए विदेशी आक्रमणकारियों का डटकर सामना किया। इनमें से एक नाम है राजा पृथु राय का, जो 13वीं शताब्दी की शुरुआत में कामरूप (वर्तमान असम) पर शासन करते थे।
राजा पृथु राय का शासन
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राजा पृथु राय खेन राजवंश से संबंधित थे।
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खेन राजवंश ने कामता साम्राज्य की नींव रखी थी, जिसका केंद्र वर्तमान असम और उत्तरी बंगाल के क्षेत्र थे।
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उनके शासनकाल को एक महत्वपूर्ण दौर माना जाता है, क्योंकि उस समय उत्तर-पूर्व भारत विदेशी आक्रमणों से जूझ रहा था।
बख्तियार खिलजी पर विजय
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13वीं शताब्दी के आरंभ में बख्तियार खिलजी ने कामरूप पर आक्रमण किया।
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खिलजी ने बंगाल और बिहार पर कब्ज़ा कर लिया था और पूर्व की ओर अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था।
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किंतु राजा पृथु राय ने अद्भुत साहस और युद्ध कौशल का परिचय देते हुए खिलजी को पराजित किया।
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इस पराजय के बाद खिलजी की शक्ति क्षीण हो गई और उसका विस्तारवादी सपना टूट गया।
खेन राजवंश और कामता साम्राज्य
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खेन राजवंश कामरूप के बाद उभरा और कामता साम्राज्य की नींव रखी।
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राजा पृथु राय इस वंश के शुरुआती और सबसे प्रभावशाली शासकों में गिने जाते हैं।
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उनके नेतृत्व में साम्राज्य ने स्थिरता प्राप्त की और बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा सुनिश्चित हुई।
ऐतिहासिक महत्व
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राजा पृथु राय की सबसे बड़ी उपलब्धि थी आक्रमणकारियों को रोककर असम की सांस्कृतिक और राजनीतिक अस्मिता की रक्षा करना।
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उनकी वीरता ने न केवल कामरूप बल्कि पूरे उत्तर-पूर्व भारत में स्वाभिमान और आत्मरक्षा की भावना को सशक्त किया।
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इतिहासकार उन्हें एक ऐसे शासक के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने अपने राज्य की सीमाओं को विदेशी आक्रमण से बचाए रखा।
निष्कर्ष
राजा पृथु राय का नाम भारतीय इतिहास में एक ऐसे योद्धा के रूप में अंकित है, जिसने विदेशी आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी को परास्त कर उत्तर-पूर्व भारत की रक्षा की। खेन राजवंश और कामता साम्राज्य की मजबूती में उनका योगदान अतुलनीय है।