तकनीकी कंपनियों के सामने बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)

तकनीकी कंपनियों के सामने बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) की चुनौती और AI

Posted: 06 Sep 2025 | पढ़ने का समय: ~7 min

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने हाल के वर्षों में अभूतपूर्व प्रगति की है। लेकिन जैसे-जैसे AI का उपयोग रचनात्मक लेखन, संगीत, कला और आविष्कारों में बढ़ा है, वैसे-वैसे बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights – IPRs) से संबंधित कानूनी और नैतिक प्रश्न भी तेज हो गए हैं।

हाल ही में कुछ लेखकों ने Apple पर मुकदमा दायर किया कि उनकी पुस्तकों का उपयोग बिना अनुमति के AI प्रशिक्षण के लिए किया गया। यह मामला केवल एक कंपनी तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे उद्योग के लिए AI युग में IPR प्रवर्तन को लेकर जटिल चुनौतियों को उजागर करता है।


🔑 IPR और AI से जुड़ी प्रमुख चुनौतियां

1. AI प्रशिक्षण में लेखों का उपयोग और सहमति का अभाव

  • मशीन लर्निंग मॉडल्स के प्रशिक्षण में अक्सर लाखों कॉपीराइटेड पुस्तकों, लेखों और कंटेंट का उपयोग किया जाता है।

  • यह कॉपीराइट उल्लंघन माना जा सकता है क्योंकि मूल लेखक से अनुमति नहीं ली जाती।

  • दूसरी ओर, अगर अनुमति अनिवार्य कर दी जाए तो यह AI विकास और नवाचार की गति को धीमा कर सकता है।

2. लेखक का दर्जा और स्वामित्व

  • सबसे बड़ी कानूनी बहस:

    • क्या AI को लेखक/आविष्कारक माना जा सकता है?

    • या केवल वह व्यक्ति/संस्था लेखक मानी जाएगी जिसने AI को विकसित या उपयोग किया?

  • उल्लेखनीय उदाहरण: दक्षिण अफ्रीका ने AI सिस्टम DABUS को पेटेंट आविष्कारक के रूप में मान्यता दी। यह कदम वैश्विक स्तर पर बड़ी बहस का कारण बना।

3. AI सिस्टम की पेटेंट योग्यता और मौलिकता

  • AI-जनित लेखों/आविष्कारों में मौलिकता (Originality) को परिभाषित करना मुश्किल है।

  • उदाहरण: डीपफेक्स या AI-निर्मित संगीत क्या वास्तव में “नया” है या केवल डेटा की नकल का उन्नत रूप?

4. नैतिकता और मानव रचनात्मकता पर खतरा

  • यदि AI को लेखक या आविष्कारक का दर्जा मिल जाता है, तो मानव की मौलिकता और सृजनशीलता कमज़ोर हो सकती है।

  • यह बहस केवल कानूनी ही नहीं बल्कि सामाजिक और नैतिक भी है।


📜 भारत में IPR और AI से संबंधित कानूनी स्थिति

  1. भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957

    • कंप्यूटर-जनित लेखों के लिए जिम्मेदार व्यक्ति (जैसे डेवलपर या उपयोगकर्ता) को लेखक माना जाता है।

    • लेकिन किसी सॉफ़्टवेयर/AI सिस्टम को सीधे लेखक का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

  2. संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशें

    • AI-आधारित आविष्कारों की सुरक्षा के लिए IPRs में एक अलग श्रेणी बनाई जानी चाहिए।

    • पेटेंट और कॉपीराइट कानूनों की पुन: समीक्षा आवश्यक है ताकि AI-आधारित नवाचारों को समायोजित किया जा सके।


🌍 वैश्विक परिप्रेक्ष्य

  • यूनाइटेड किंगडम और न्यूजीलैंड जैसे देशों में कंप्यूटर-जनित लेखों को भी कॉपीराइट सुरक्षा दी जाती है, भले ही उनका कोई मानव लेखक न हो।

  • अमेरिका और यूरोपीय संघ अभी तक इस मुद्दे पर विभाजित हैं और मामले दर मामले (case-by-case) के आधार पर फैसले दिए जा रहे हैं।

  • दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने AI को आविष्कारक मानने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।


⚖️ आगे का रास्ता: संतुलन की आवश्यकता

  • AI डेवलपर्स के हितों की रक्षा: ताकि नवाचार और शोध को बढ़ावा मिले।

  • मानव रचनात्मकता की सुरक्षा: ताकि मूल लेखक और सृजनकर्ता हाशिए पर न जाएं।

  • एकाधिकार रोकना: बड़ी टेक कंपनियों द्वारा अत्यधिक डेटा नियंत्रण से बचना।

  • IPR कानूनों की समीक्षा: ताकि AI युग की नई चुनौतियों को संभाला जा सके।


📝 निष्कर्ष

AI ने मानव सभ्यता को नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं, लेकिन इसके साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकारों की जटिलताएं भी सामने आई हैं। आने वाले वर्षों में यह तय करना बेहद अहम होगा कि हम AI और मानव के बीच रचनात्मकता का संतुलन कैसे बनाते हैं।

यदि उचित कानून और नीतियां बनाई गईं तो AI मानव रचनात्मकता का पूरक साबित होगा, न कि उसका प्रतिस्थापन।