भारत का पहला बांस-आधारित बायो-एथेनॉल संयंत्र : आत्मनिर्भर ऊर्जा की ओर कदम
प्रधान मंत्री ने असम के गोलाघाट में भारत के पहले ‘बांस-आधारित बायो-एथेनॉल संयंत्र’ का उद्घाटन किया। यह संयंत्र नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (NRL) और फिनलैंड की फोर्टम एवं चेमपोलिस OY का संयुक्त उद्यम है।
इस संयंत्र में बांस को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग कर जैव-एथेनॉल (Bio-ethanol) का उत्पादन किया जाएगा। बांस एक गैर-खाद्य फसल है, जिसमें लिग्नो-सेल्यूलोज की उच्च मात्रा होती है, जो इसे दूसरी पीढ़ी (2G) के जैव ईंधन उत्पादन के लिए आकर्षक विकल्प बनाता है।
🌱 बायो-एथेनॉल क्या है?
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बायो-एथेनॉल एक पारदर्शी, रंगहीन और जैव-निम्नीकरणीय (biodegradable) तरल है।
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यह जलने पर केवल कार्बन डाइऑक्साइड और पानी उत्पन्न करता है।
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इसे नवीकरणीय जैविक स्रोतों से तैयार किया जाता है।
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 के अनुसार, बायो-एथेनॉल के स्रोत:
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शर्करा युक्त सामग्री: गन्ना, चुकंदर, मीठी ज्वार।
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स्टार्च युक्त सामग्री: मक्का, कसावा, सड़े आलू, शैवाल, खाद्य उद्योग अपशिष्ट।
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सेल्यूलोज युक्त सामग्री: गन्ने की खोई, लकड़ी का अपशिष्ट, कृषि/वानिकी अवशेष, औद्योगिक व सब्ज़ी कचरा।
⚙️ बायो-एथेनॉल का उपयोग
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ईंधन:
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शुद्ध एथेनॉल ईंधन (E100)।
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पेट्रोल मिश्रण (E10, E20)।
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उद्योग: रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, कॉस्मेटिक्स।
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बायो-प्रोडक्ट्स: बायोप्लास्टिक और अन्य जैव-आधारित सामग्री।
🌍 बायो-एथेनॉल के लाभ
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नवीकरणीय और टिकाऊ ऊर्जा स्रोत।
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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करता है।
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जीवाश्म ईंधनों की तुलना में कम वायु प्रदूषण।
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों की आय को बढ़ावा।
📌 निष्कर्ष
असम का यह संयंत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ईंधन लक्ष्यों की दिशा में बड़ा कदम है। बांस जैसे स्थानीय संसाधनों का उपयोग न केवल पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा उपलब्ध कराएगा, बल्कि पूर्वोत्तर भारत की अर्थव्यवस्था और रोजगार को भी नई गति देगा।