general studies paper 1 upsc mains civil services ias exam 2023 question paper
Q1. प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगौलिक कारको की भूमिका को स्पष्ट करें
प्राचीन भारत के विकास में भौगोलिक कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निम्नलिखित भौगोलिक कारक प्राचीन भारत के विकास को प्रभावित करे हैं:
- नदियाँ और सिंधु-सरस्वती सभ्यता: प्राचीन भारत में सिंधु-सरस्वती सभ्यता का उद्भव और विकास नदियों के किनारों पर हुआ। सिंधु और सरस्वती नदियों के पास की फसलों की खेती और प्राकृतिक संसाधनों की विशेषता के कारण यहां पर सभ्यता का उद्भव हुआ और विकसित हुआ।
- पहाड़ी और तटीय क्षेत्र: प्राचीन भारत के विभिन्न पहाड़ी और तटीय क्षेत्र ने विकास को प्रभावित किया। पहाड़ी क्षेत्रों में जलवायु, जीवन शैली, और खेती के तरीके अलग थे और यहां की खास रूप से चरकोल और वन्यजीवों के व्यापार के विकास का स्रोत थे। तटीय क्षेत्रों में व्यापार और नौकायातन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय यातायात का विकास हुआ और यह व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
- खाद्य संसाधन: भूमि की फसलों का उत्पादन प्राचीन भारत में अत्यंत महत्वपूर्ण था। अलग-अलग भूमि प्राप्त क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती थी, जैसे कि अनाज, फल, सब्जियां, और मिल्क प्रोडक्ट्स। यह खाद्य संसाधनों के प्रचुर मात्रा में उत्पादन ने जनसंख्या के वृद्धि को संभाला और सभ्यता के विकास में मदद की।
- वन्यजीवों की धरोहर: प्राचीन भारत में वन्यजीवों की धरोहर और उनके आवास क्षेत्रों के बदलते पैटर्न ने वन्यजीवों के शिकार और उनके संरक्षण के प्रथम प्रकार को प्रभावित किया।
- जलवायु: भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की जलवायु थी, जैसे कि उष्णकटिबंधीय, शीतकटिबंधीय, और मृदुकटिबंधीय जलवायु। यह जलवायु ने खेती की व्यवस्था, प्राणी जीवन, और यातायात को प्रभावित किया और सभी क्षेत्रों में विकास को अलग-अलग दिशाओं में प्रवृत्त किया।
इन भौगोलिक कारकों के साथ, प्राचीन भारत का विकास भूमि, जलवायु, और प्राकृतिक संसाधनों के साथ संबंधित था और ये सभी कारक उसके सभी पहलुओं पर गहरा प्रभाव डाले।