चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2024-25 में बिहार के गया स्थित विष्णुपद मंदिर और बोधगया में प्रतिष्ठित महाबोधि मंदिर के लिए भव्य कॉरिडोर परियोजनाओं की घोषणा की गई है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य तीर्थाटन को बढ़ावा देना और बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाना है, जिससे न केवल श्रद्धालुओं बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी यात्रा अनुभव को समृद्ध किया जा सके।
विष्णुपद मंदिर – आध्यात्मिकता और परंपराओं का संगम
स्थान: गया, बिहार के फल्गु नदी के तट पर स्थित
मुख्य देवता: भगवान विष्णु
पौराणिक मान्यता
लोक कथाओं के अनुसार, गयासुर नामक राक्षस ने देवताओं से दूसरों को मोक्ष दिलाने की शक्ति मांगी। लेकिन इस शक्ति के दुरुपयोग के बाद, भगवान विष्णु ने उसे वश में कर लिया और इस मंदिर में एक पदचिह्न छोड़ दिया, जिसे आज भी पवित्र चिह्न के रूप में पूजा जाता है।
वास्तुशिल्पीय विशेषताएँ
- ऊँचाई: 100 फीट ऊँचा भव्य मंदिर
- स्तंभ: 44 विशाल स्तंभ, जिन्हें ग्रेनाइट पत्थरों से तैयार किया गया है और लोहे की पट्टियों से जोड़ा गया है
- निर्माण: वर्ष 1787 में रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया था
- अष्टकोणीय संरचना: पूर्व दिशा की ओर उन्मुख
सांस्कृतिक महत्व
- यह मंदिर पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जब हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं।
- गयावाल ब्राह्मण, जो प्राचीन समय से मंदिर के पुजारी रहे हैं, यहाँ की अनुष्ठानिक परंपराओं का निर्वहन करते हैं।
महाबोधि मंदिर – बोधगया का विश्व धरोहर स्थल
स्थान: बोधगया, गया, बिहार
महत्व: यही वह पवित्र स्थान है, जहाँ गौतम बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इतिहास और निर्माण
- निर्माण: मूल मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था
- वर्तमान संरचना 5वीं-6वीं शताब्दी की मानी जाती है और गुप्तकाल की ईंट वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है
- वज्रासन (हीरा सिंहासन): इस स्थान को चिन्हित करने के लिए सम्राट अशोक ने इसे स्थापित किया था, जहाँ बुद्ध ध्यानमग्न रहे थे
वास्तुशिल्पीय विशेषताएँ
- मंदिर की ऊँचाई: 50 मीटर
- पवित्र स्थल: मंदिर के चारों ओर कई प्राचीन स्तूप और गोलाकार सीमाएँ मौजूद हैं, जो इसकी पवित्रता और संरक्षण को दर्शाती हैं
- बोधिवृक्ष: वर्तमान वृक्ष उस पवित्र वृक्ष का प्रत्यक्ष वंशज माना जाता है, जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था
महाबोधि के पवित्र स्थल
- अनिमेषलोचन चैत्य: जहाँ बुद्ध ने दूसरा सप्ताह बिताया
- रत्नचक्रमा: बुद्ध के तीसरे सप्ताह का चलित ध्यान स्थल
- रत्नाघर चैत्य: बुद्ध के चौथे सप्ताह का स्थान
- अजपाल निग्रोध वृक्ष: पाँचवें सप्ताह का स्थल
- लोटस पॉण्ड: छठे सप्ताह का ध्यान स्थल
- राजयतन वृक्ष: सातवें सप्ताह का स्थल
वैश्विक महत्व
- महाबोधि मंदिर को वर्ष 2002 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ
- यह मंदिर हर साल लाखों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो यहाँ शांति और ध्यान का अनुभव करने आते हैं
नए कॉरिडोर से संभावित लाभ
- तीर्थयात्रा और पर्यटन में बढ़ोतरी: इन परियोजनाओं से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ेगी
- स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: होटल, परिवहन और अन्य सुविधाओं में निवेश बढ़ेगा
- बेहतर बुनियादी ढाँचा: यात्रा मार्गों और मंदिर परिसरों में सुविधाएँ और सुरक्षा बढ़ेगी
इन कॉरिडोर परियोजनाओं के जरिए बिहार का धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत को नई पहचान मिलेगी, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति और बेहतर होगी।
विष्णुपद और महाबोधि मंदिर – आस्था, इतिहास और संस्कृति का संगम।