भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) में बाईपास परियोजना को मंजूरी
हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) में नटाला बाईपास परियोजना को मंजूरी दे दी है। यह फैसला उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) ने पहले ही इस परियोजना को पर्यावरणीय और सामाजिक कारणों से खारिज कर दिया था।
पृष्ठभूमि
भागीरथी नदी का क्षेत्र हिमालयी पारिस्थितिकी के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील माना जाता है। इस इलाके को “भागीरथी ईको-सेंसिटिव ज़ोन” घोषित किया गया है ताकि यहाँ की नाज़ुक पारिस्थितिकी, जैवविविधता और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा हो सके।
परियोजना से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ
-
रणनीतिक दृष्टिकोण:
रक्षा मंत्रालय ने इस बाईपास को सामरिक दृष्टि से आवश्यक बताया है। चीन सीमा से सटे क्षेत्रों में सड़क और संपर्क व्यवस्था को बेहतर करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम है। -
पर्यावरणीय खतरे:
विशेषज्ञों का कहना है कि यह क्षेत्र पहले से ही भूस्खलन, धंसाव और अचानक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए संवेदनशील है।-
धराली में हाल ही में आई बाढ़ ने इस आशंका को और मज़बूत किया है।
-
बाईपास मार्ग का एक हिस्सा पहले ही बाढ़ में ढह चुका है।
-
-
स्थानीय प्रभाव:
निर्माण कार्य से स्थानीय पारिस्थितिकी और गाँवों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
बड़ा सवाल: सुरक्षा बनाम पर्यावरण
यह मंजूरी एक बड़े टकराव की ओर इशारा करती है—
👉 एक तरफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक हितों के लिए सड़क अवसंरचना का विस्तार ज़रूरी है।
👉 दूसरी तरफ़ हिमालयी पर्यावरण की नाज़ुकता को देखते हुए ऐसे निर्माण कार्य लंबे समय तक विनाशकारी साबित हो सकते हैं।
आगे की राह
-
संतुलित दृष्टिकोण की ज़रूरत है जहाँ सुरक्षा आवश्यकताओं और पर्यावरणीय संरक्षण दोनों को ध्यान में रखते हुए फैसले लिए जाएँ।
-
विकल्पों की तलाश जैसे सुरंग, वैकल्पिक मार्ग या हरित इंजीनियरिंग तकनीकें अपनाना इस दिशा में सहायक हो सकता है।
✍️ निष्कर्ष
नटाला बाईपास परियोजना पर मिली मंजूरी यह दर्शाती है कि हिमालयी राज्यों में विकास और सुरक्षा से जुड़े फैसले आसान नहीं हैं। यह मामला भविष्य में पर्यावरण बनाम विकास के बीच संतुलन साधने के लिए एक अहम मिसाल बन सकता है।