✊ आत्म-सम्मान आंदोलन के 100 वर्ष: पेरियार की सामाजिक क्रांति
1925 में ई.वी. रामासामी (पेरियार) द्वारा तमिलनाडु में शुरू किया गया आत्म-सम्मान आंदोलन (Self-Respect Movement) आज 100 वर्ष पूरे कर चुका है। यह आंदोलन भारत के सामाजिक सुधार आंदोलनों में एक मील का पत्थर माना जाता है, जिसने जातिगत असमानता और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती दी।
पेरियार पर ज्योतिराव फुले और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे महान सुधारकों का गहरा प्रभाव था। उन्होंने ‘कुडी अरासु’ नामक तमिल साप्ताहिक पत्र निकाला और वायकोम सत्याग्रह में भी सक्रिय भागीदारी की।
🌟 आत्म-सम्मान आंदोलन: पृष्ठभूमि और उद्देश्य
आंदोलन का मूल उद्देश्य था:
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जाति व्यवस्था का उन्मूलन
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तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार
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ब्राह्मणवादी परंपराओं और अनुष्ठानवाद का विरोध
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समानता और व्यक्तिगत गरिमा की स्थापना
इसके उद्देश्यों का विवरण दो पुस्तिकाओं में मिलता है:
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नमतु कुरिक्कोल
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तिरावितक कालक लेईयम्
👉 यह आंदोलन तर्कवाद, समानता और आत्म-सम्मान पर बल देता था, न कि आडंबरपूर्ण परंपराओं पर।
👩🦱 महिला नेतृत्व और योगदान
आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी उल्लेखनीय रही।
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अन्नाई मीनाम्बल
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वीरामल
इन दोनों ने महिलाओं के अधिकार, शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए काम किया।
🔑 आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं
1. आत्म-सम्मान विवाह
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पुजारियों के बिना विवाह की शुरुआत।
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इन विवाहों को कानूनी मान्यता भी मिली।
➡️ यह धार्मिक वर्चस्व को तोड़ने और सामाजिक समानता लाने का बड़ा कदम था।
2. सामाजिक उत्थान
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देवदासी प्रथा और जातिगत भेदभाव का विरोध।
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विधवा पुनर्विवाह पर लगे प्रतिबंधों को चुनौती।
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सामाजिक न्याय और समानता की स्थापना।
3. आत्म-सम्मान सम्मेलन (1929, चेंगलपट्टु)
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पहला प्रांतीय सम्मेलन आयोजित।
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अध्यक्षता डब्ल्यू.पी.ए. सौंदर पांडियन ने की।
➡️ इस सम्मेलन ने आंदोलन को संगठित रूप दिया और व्यापक जनसमर्थन जुटाया।
🏛️ आंदोलन का महत्व और प्रभाव
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गैर-ब्राह्मण समाज में गरिमा और राजनीतिक चेतना पैदा की।
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तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति और कल्याणकारी शासन की नींव रखी।
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सामाजिक सुधारों के साथ-साथ यह आंदोलन राजनीतिक सशक्तिकरण का भी प्रतीक बना।
👉 आत्म-सम्मान आंदोलन ने यह संदेश दिया कि समानता और तार्किकता ही सच्चे सामाजिक न्याय की कुंजी हैं।
📝 निष्कर्ष
आज, 100 वर्ष बाद भी आत्म-सम्मान आंदोलन की विचारधारा प्रासंगिक है।
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जातिगत असमानता और भेदभाव के खिलाफ इसकी प्रेरणा आज भी समाज को दिशा देती है।
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पेरियार का यह आंदोलन केवल तमिलनाडु ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के सामाजिक न्याय आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत है।