24 March 2025, Daily News Analysis
The Hindu news analysis hindi
Short News
- 🛑 ओटावा कन्वेंशन: एंटी-पर्सनल माइंस पर प्रतिबंध
- 🌍 रायसीना डायलॉग 2025: वैश्विक कूटनीति का मंच
- 🚬 तंबाकू: भारत का प्रमुख निर्यात उत्पाद
- अल्टरमैग्रेटिज्म: चुंबकत्व की नई खोज
- 🚜 मुजारा आंदोलन: किसानों का संघर्ष
News Analysis
- प्राकृतिक कृषि: सतत् खेती की ओर एक कदम
- ✈️ आधुनिक युद्ध में UAV की भूमिका
- 🌳 अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025: “वन और भोजन”
- ⚖️ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) – शीघ्र न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल 🚀
- 🌊 भारत में प्रभावी जल प्रबंधन की आवश्यकता
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Short News
1. 🛑 ओटावा कन्वेंशन: एंटी-पर्सनल माइंस पर प्रतिबंध
🔍 क्या है ओटावा कन्वेंशन?
ओटावा कन्वेंशन का आधिकारिक नाम ‘कन्वेंशन ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ द यूज, स्टॉकपाइलिंग, प्रोडक्शन एंड ट्रांसफर ऑफ एंटी-पर्सनल माइन्स एंड ऑन देयर डिस्ट्रक्शन’ है। इसका उद्देश्य एंटी-पर्सनल माइंस (बारूदी सुरंगों) के उपयोग, उत्पादन, भंडारण और स्थानांतरण पर रोक लगाना है।
📜 मुख्य बिंदु
✅ स्वीकृति: 1997 में ओस्लो में अपनाया गया और 1999 में लागू हुआ।
✅ लक्ष्य: पक्षकार देशों को एंटी-पर्सनल माइंस के उपयोग, विकास और भंडारण न करने के लिए बाध्य करना।
✅ अनिवार्यता: सदस्य देशों को मौजूदा माइंस को नष्ट करना आवश्यक।
✅ हस्ताक्षरकर्ता: 133 देश (भारत इसका सदस्य नहीं है)।
✅ डिपॉजिटरी: संयुक्त राष्ट्र महासचिव।
⚠️ वर्तमान परिप्रेक्ष्य
🔹 नाटो देशों पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया ने रूस से सैन्य खतरे के चलते इस संधि से हटने की योजना बनाई है।
🔹 यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य रणनीति के तहत लिया जा रहा है।
🇮🇳 भारत का रुख
❌ भारत इस कन्वेंशन का सदस्य नहीं है क्योंकि:
- इसकी सीमाओं पर सुरक्षा खतरे हैं।
- एंटी-पर्सनल माइंस का उपयोग रक्षा रणनीति का हिस्सा है।
🎯 निष्कर्ष
ओटावा कन्वेंशन का उद्देश्य युद्ध के दौरान नागरिकों की सुरक्षा बढ़ाना है। हालांकि, कुछ देश, विशेष रूप से रूस के पड़ोसी नाटो सदस्य, अपनी सुरक्षा चिंताओं के कारण इससे अलग होने की योजना बना रहे हैं। भारत ने अपनी रणनीतिक जरूरतों के कारण इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। 🚧🔍
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2. 🌍 रायसीना डायलॉग 2025: वैश्विक कूटनीति का मंच
📍 नई दिल्ली में 10वां संस्करण संपन्न
भारत की राजधानी नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग 2025 का 10वां संस्करण आयोजित किया गया, जिसमें दुनियाभर के नेता, विशेषज्ञ और नीति-निर्माता शामिल हुए।
📜 रायसीना डायलॉग: प्रमुख बिंदु
✅ आयोजनकर्ता:
👉 विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) द्वारा आयोजित।
✅ उद्देश्य:
👉 भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर चर्चा और समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना।
✅ भागीदारी:
👉 125+ देशों के प्रतिनिधि शामिल, जिनमें राष्ट्राध्यक्ष, सरकार प्रमुख, शिक्षाविद, थिंक टैंक और युवा विशेषज्ञ शामिल हैं।
✅ थीम (2025):
👉 “कालचक्र: पीपल, पीस एंड प्लैनेट” 🌱🕊️🌍
✅ मुख्य चर्चाएं:
👉 6 प्रमुख विषयों पर केंद्रित, जिनमें ग्रीन ट्राइलेमा (Green Trilemma) और डिजिटल प्लैनेट (Digital Planet) प्रमुख हैं।
🌏 रायसीना डायलॉग का महत्व
📌 भारत का प्रमुख वैश्विक कूटनीतिक मंच।
📌 अंतरराष्ट्रीय संबंधों और नीतिगत निर्णयों पर प्रभाव।
📌 भविष्य की रणनीति और सहयोग को दिशा देने में सहायक।
🎯 निष्कर्ष
रायसीना डायलॉग 2025 भारत की वैश्विक भूमिका को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ है। इसने वैश्विक चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने और सतत समाधान निकालने में योगदान दिया है। 🌎🤝
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3. 🚬 तंबाकू: भारत का प्रमुख निर्यात उत्पाद
📈 निर्यात में बढ़ोतरी
पिछले चार वर्षों में भारत का तंबाकू निर्यात दोगुना हो गया है, जिससे यह देश के प्रमुख कृषि-आधारित निर्यात उत्पादों में शामिल हो गया है।
🌿 भारत में तंबाकू उत्पादन: प्रमुख तथ्य
✅ वैश्विक स्थिति:
👉 दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक (चीन के बाद) 🌍
👉 दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक (ब्राजील के बाद) 📦
✅ प्रमुख उत्पादक राज्य:
👉 गुजरात: खेती योग्य क्षेत्र का 45%, उत्पादन 30%
👉 अन्य राज्य: आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार
✅ तंबाकू उत्पादन के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ:
🌡️ तापमान: 20°-27°C
🌧️ वर्षा: 500 मिमी. (सामान्य), 1200 मिमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उत्पादन मुश्किल
🌱 मिट्टी: रेतीली दोमट और काली मिट्टी (आंध्र प्रदेश में विशेष रूप से सिगरेट तंबाकू के लिए)
🌍 निष्कर्ष
📌 भारत का तंबाकू निर्यात तेजी से बढ़ रहा है।
📌 गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
📌 जलवायु और मिट्टी की सही परिस्थितियाँ तंबाकू उत्पादन को प्रभावित करती हैं।
भारत इस क्षेत्र में अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत कर रहा है, जिससे यह अर्थव्यवस्था और निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। 🚀📦
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4. 🧲 अल्टरमैग्रेटिज्म: चुंबकत्व की नई खोज
🔬 क्या है अल्टरमैग्रेटिज्म?
स्वीडन के वैज्ञानिकों ने ‘अल्टरमैग्रेटिज्म’ नामक नए प्रकार के चुंबकत्व की खोज की है, जो लौहचुंबक (Ferromagnet) और गैर-लौहचुंबक (Non-Ferromagnet) दोनों के गुणों को मिलाता है।
⚡ अल्टरमैग्रेटिज्म की विशेषताएँ
🔹 दोहरी प्रकृति:
✅ पारंपरिक चुंबकों (जैसे लोहा, निकल) में स्पिन संरेखण से चुंबकीय बल उत्पन्न होता है।
✅ गैर-लौहचुंबक इस प्रभाव को समाप्त कर देते हैं।
✅ अल्टरमैग्रेट्स में दोनों गुण मौजूद होते हैं:
- शून्य नेट मैग्नेटाइजेशन (Zero Net Magnetization)
- नॉन-रिलेटिविस्टिक स्पिन स्प्लिटिंग (Non-Relativistic Spin Splitting)
⚙️ उपयोग और संभावनाएँ
🚀 तेज गति वाली मेमोरी डिवाइस:
💾 कंप्यूटर मेमोरी की स्पीड और दक्षता को बढ़ा सकता है।
⚡ बेहतर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम:
📡 संचार और डेटा प्रोसेसिंग में सुधार करेगा।
📉 ऊर्जा दक्षता में वृद्धि:
🔋 इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की बैटरी खपत कम करने में मदद कर सकता है।
🔍 निष्कर्ष
🔹 अल्टरमैग्रेटिज्म चुंबकत्व के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी खोज है।
🔹 यह तेज, अधिक कुशल और ऊर्जा-बचत करने वाली तकनीकों के विकास में मदद कर सकता है।
🔹 भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक्स और डेटा स्टोरेज में बड़े बदलाव ला सकता है! 🚀💡
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5. 🚜 मुजारा आंदोलन: किसानों का संघर्ष
📅 वार्षिक स्मरण
🗓️ 19 मार्च को मुजारा आंदोलन की वर्षगांठ मनाई जाती है, जो किसानों और प्रशासन के बीच संघर्ष की याद दिलाता है।
🔥 मुजारा आंदोलन: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
📍 शुरुआत:
➡️ यह आंदोलन पटियाला रियासत में शुरू हुआ और 1930 के दशक में तेजी से फैला।
➡️ इसकी जड़ें 1920 के दशक के प्रजामंडल आंदोलन में देखी जा सकती हैं।
📜 मुख्य कारण:
✅ विभाजन पूर्व पंजाब के मुजारा (काश्तकार) किसानों ने बिस्वेदारी प्रणाली के तहत भूमि के मालिकाना हक की मांग की।
✅ किसानों को अपनी उपज का हिस्सा जमींदारों और ब्रिटिश सरकार को देना पड़ता था, जिससे दोहरी कर प्रणाली लागू होती थी।
✅ इस शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ किसानों ने आंदोलन किया।
🏹 मुख्य नेता और योगदान
👤 बूटा सिंह
👤 कृपाल सिंह
✅ इन्होंने किसानों के हक के लिए संघर्ष किया और आंदोलन को मजबूती दी।
🎯 महत्व और प्रभाव
💪 यह आंदोलन किसानों के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बना।
⚖️ जमींदारी प्रथा और अन्य शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाने में सहायक हुआ।
🌾 कृषि सुधारों की मांग को गति मिली।
🔍 निष्कर्ष
मुजारा आंदोलन किसानों के संघर्ष और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए किए गए साहसिक प्रयासों का प्रतीक है। यह आंदोलन कृषि समाज में सुधारों की नींव रखता है और आज भी किसानों के लिए प्रेरणादायक बना हुआ है। 🚜💡
News Analysis
1.🌱 प्राकृतिक कृषि: सतत् खेती की ओर एक कदम
(सामान्य अध्ययन-III खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन , पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट)
🔎 चर्चा में क्यों?
- हरित क्रांति ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की लेकिन मृदा गुणवत्ता क्षरण और उच्च लागत की चुनौतियाँ बढ़ीं।
- लघु किसानों को नुकसान हुआ, जिससे पर्यावरणीय संधारणीयता और कृषकों की आय सुधार के लिए प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता हुई।
🌾 प्राकृतिक कृषि क्या है?
- रसायन मुक्त पारंपरिक कृषि जिसमें फसल, वृक्ष और पशुधन को जैवविविधता के साथ जोड़ा जाता है।
- न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप वाली विधि, जिसे “डू नथिंग फार्मिंग” भी कहा जाता है।
- मुख्य तकनीकें: मल्चिंग, फसल विविधता, जैविक खाद और जैव-कीटनाशकों का प्रयोग।
🔄 जैविक बनाम प्राकृतिक कृषि
- जैविक कृषि: बाहरी जैविक आदानों (खाद आदि) की अनुमति देती है।
- प्राकृतिक कृषि: पूरी तरह से खेत पर उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर।
✅ प्राकृतिक कृषि के लाभ
- मृदा स्वास्थ्य सुधार: जैविक गतिविधियों को बढ़ावा देता है।
- पानी की बचत: पारंपरिक कृषि की तुलना में जल उपयोग कम करता है।
- कम उत्पादन लागत: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं।
- पर्यावरण अनुकूल: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी।
- किसानों की आय में वृद्धि: उत्पादन लागत कम और उत्पादों का बाजार मूल्य अधिक।
⚠️ प्राकृतिक कृषि की चुनौतियाँ
- कम फसल पैदावार (शुरुआती वर्षों में)।
- कीट और रोगों का अधिक खतरा।
- प्राकृतिक आदानों पर अधिक निर्भरता।
- किसानों में जागरूकता की कमी।
- बाजार तक सीमित पहुँच।
🇮🇳 सरकार की पहल
✅ भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP)
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत संचालित।
- 28 लाख से अधिक किसान और 9.4 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर करता है।
✅ राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (NMNF)
- सतत् और जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना।
- 1 करोड़ किसानों और 7.5 लाख हेक्टेयर भूमि को जोड़ने का लक्ष्य।
- 10,000 जैव-संसाधन केंद्र और 30,000 कृषि सखियाँ तैनात की जाएंगी।
- 2,000 प्राकृतिक कृषि प्रदर्शन फार्म स्थापित होंगे।
🌿 क्या प्राकृतिक कृषि भारत के भविष्य की खेती बन सकती है? आपके विचार क्या हैं? 🤔
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2. ✈️ आधुनिक युद्ध में UAV की भूमिका
- सामान्य अध्ययन-II- सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
- सामान्य अध्ययन-III- रक्षा प्रौद्योगिकी
🔎 चर्चा में क्यों?
- ओकिनावा (जापान) के पास दो चीनी मानवरहित हवाई वाहन (UAV) देखे गए, जिससे सैन्य एवं निगरानी अभियानों में ड्रोन की बढ़ती भूमिका पर चिंता बढ़ी।
🔥 ड्रोन बनाम लड़ाकू विमान – मुख्य लाभ
✅ लागत प्रभावशीलता:
- MQ-9 रीपर ड्रोन की कीमत $32 मिलियन, जबकि F-35 फाइटर जेट की कीमत $80 मिलियन+।
- रखरखाव और ईंधन लागत भी कम।
✅ कम मानवीय जोखिम:
- युद्धक्षेत्र में पायलट की जान को जोखिम नहीं।
- उदाहरण: ईरान (2019) ने अमेरिकी ड्रोन को गिराया, लेकिन जवाबी कार्रवाई नहीं हुई।
✅ सतत् निगरानी और AI संचालित हमले:
- लंबे समय तक निगरानी और रियल-टाइम इंटेलिजेंस।
- AI-ड्रोन स्वायत्त लक्ष्य पहचान और हमले में सक्षम।
✅ सटीक हमले और असममित युद्ध में उपयोग:
- नागोर्नो-करबाख युद्ध में तुर्की बायरकटार और अज़रबैजानी कामिकेज़ ड्रोन ने अर्मेनिया को भारी नुकसान पहुँचाया।
- आतंकवाद विरोधी अभियानों में अमेरिका और तुर्की ने ड्रोन का व्यापक उपयोग किया।
✅ कम बुनियादी ढाँचा आवश्यकताएँ:
- एयरबेस, टैंकर और व्यापक सपोर्ट सिस्टम की आवश्यकता नहीं।
- रूस-यूक्रेन युद्ध: रूस ने ईरानी शाहेद-136 ड्रोन का प्रभावी उपयोग किया।
⚠️ UAV उपयोग से संबंधित चुनौतियाँ
❌ संघर्ष को बढ़ावा देना: ड्रोन हमलों से युद्ध करना आसान हो जाता है, बिना सैनिक भेजे सैन्य कार्रवाई संभव।
❌ गैर-राज्य संगठनों का सशक्तिकरण: हूती विद्रोहियों ने सऊदी अरब के तेल संयंत्रों पर ड्रोन हमले किए। ISIL निगरानी के लिए वाणिज्यिक ड्रोन का उपयोग करता है।
❌ क्षेत्रीय तनाव और हथियारों की दौड़: चीन, तुर्की, और इज़राइल UAV निर्माण में अग्रणी, जिससे हथियारों की होड़ तेज़ हो रही है।
❌ अस्वीकार्यता और छद्म युद्ध: ड्रोन हमले में शामिल होने का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होने से छद्म युद्ध (Proxy War) को बढ़ावा मिलता है।
❌ दीर्घकालिक युद्ध और आतंकवाद: मध्य पूर्व में अमेरिकी ड्रोन हमलों से नागरिक हताहतों की संख्या बढ़ी, जिससे कट्टरपंथ को बढ़ावा मिला।
🇮🇳 भारत के लिए UAV चुनौतियाँ और रणनीति
🚨 भारत के खिलाफ UAV के खतरों
- पाकिस्तान और चीन से बढ़ते ड्रोन हमले और हथियारों-मादक पदार्थों की तस्करी।
- AI-संचालित चीनी ड्रोन भारत की सीमाओं पर निगरानी बढ़ा रहे हैं।
- सैन्य असंतुलन: चीन UAV युद्ध में अग्रणी, पाकिस्तान चीनी ड्रोन का उपयोग कर रहा।
- साइबर सुरक्षा खतरे: भारतीय ड्रोन हैकिंग के बढ़ते मामले।
- आयात पर निर्भरता: भारत को MQ-9B जैसे विदेशी ड्रोन पर निर्भर रहना पड़ता है।
🔄 भारत के UAV रक्षा उपाय
✅ ड्रोन-रोधी प्रणाली का विकास:
- इंद्रजाल (AI-संचालित एंटी-ड्रोन सिस्टम) को मजबूत करना।
- इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग और हैकिंग सुरक्षा बढ़ाना।
- हिमालयी क्षेत्रों में UAV की बैटरी क्षमता सुधारना।
✅ स्वदेशी ड्रोन निर्माण:
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी बढ़ाना।
- ड्रोन स्टार्टअप्स और MSMEs को सरकारी समर्थन।
✅ UAV अनुसंधान एवं विकास में निवेश:
- AI, रोबोटिक्स, स्वार्म टेक्नोलॉजी पर ध्यान केंद्रित करना।
- ड्रोन जाल तकनीक विकसित करना, जिससे दुश्मन के UAV को बेअसर किया जा सके।
🏆 निष्कर्ष
- UAV युद्ध और निगरानी अभियानों में रणनीतिक लाभ देते हैं, लेकिन सुरक्षा खतरे भी बढ़ाते हैं।
- भारत को आत्मनिर्भर ड्रोन निर्माण, काउंटर-ड्रोन तकनीक और AI-ड्रोन अनुसंधान को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- स्वदेशी ड्रोन टेक्नोलॉजी और मजबूत सुरक्षा उपाय भारत की रक्षा शक्ति को बढ़ा सकते हैं।
📢 आपकी राय में भारत को UAV सुरक्षा को मजबूत करने के लिए क्या और कदम उठाने चाहिए? 🚀
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3.🌳 अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025: “वन और भोजन”
- सामान्य अध्ययन-II- संरक्षण विकास से संबंधित मुद्दे
- सामान्य अध्ययन-III – वन संसाधन
📌 चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (World Forest Day) हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है, ताकि वनों और वृक्षों के महत्त्व को उजागर किया जा सके। 2025 का विषय “वन और भोजन” है।
🌍 अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस: एक संक्षिप्त परिचय
- 📅 शुरुआत: 1971 में FAO द्वारा “विश्व वानिकी दिवस” के रूप में शुरू किया गया।
- 🏛 संयुक्त राष्ट्र मान्यता: 2012 में UNGA द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता।
- 🎯 उद्देश्य: वन संरक्षण और सतत् प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
📖 भारत में वन की परिभाषा
टी.एन. गोदावर्मन बनाम भारत संघ (1996) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने “वन” शब्द की परिभाषा को उसके शब्दकोश अर्थ के अनुसार स्पष्ट किया, जिससे सभी प्रकार के संरक्षित और अवर्गीकृत वन इसमें शामिल हुए।
🌱 वनों का महत्त्व
🌿 1. पारिस्थितिक महत्त्व
- 🌍 कार्बन पृथक्करण: वन हर साल वैश्विक CO₂ उत्सर्जन का 30% अवशोषित करते हैं।
- 🐅 जैवविविधता संरक्षण: वनों में 80% स्थलीय जैवविविधता पाई जाती है।
- 💧 जल सुरक्षा: 85% बड़े शहरों की जल आपूर्ति वनों पर निर्भर है।
- 🌊 नदी जल स्रोत: पश्चिमी घाट की नदियाँ 245 मिलियन लोगों को जलापूर्ति करती हैं।
💰 2. आर्थिक एवं आजीविका महत्त्व
- 👥 1.6 बिलियन लोग (70 मिलियन आदिवासी समुदाय सहित) वनों पर निर्भर।
- 🌾 कृषि और पशुधन: वन 40 मिलियन चरवाहों और 4 बिलियन पशुओं को चारा प्रदान करते हैं।
- 🏡 ग्रामीण रोजगार: भारत में 30 मिलियन से अधिक लोग वनों से आजीविका कमाते हैं।
🙏 3. सांस्कृतिक एवं पारंपरिक महत्त्व
- 🌿 पवित्र उपवन: भारत में 100,000 से अधिक पवित्र उपवन हैं, जो दुर्लभ जैवविविधता को संरक्षित करते हैं।
- 🌾 आनुवंशिक विविधता: वन खाद्य फसलों के वन्य प्रजातियों को संरक्षित रखते हैं।
🇮🇳 भारत में वनों की स्थिति (ISFR 2023)
- 🌲 वन एवं वृक्ष आवरण: कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.17%।
- 📈 वृद्धि: 2021 से 1,445.81 वर्ग किमी का इज़ाफा।
- 🏆 सबसे अधिक वन क्षेत्र: मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़।
- 🌴 मैंग्रोव आवरण: 4,991.68 वर्ग किमी, लेकिन 2021 से 7.43 वर्ग किमी की कमी।
- 🌍 भारत का वन कार्बन स्टॉक: 7,285.5 मिलियन टन।
🌎 वैश्विक वन संरक्षण पहलें
- 🌳 REDD+: वनों की कटाई को कम करने और कार्बन भंडारण को बढ़ावा देने की UN पहल।
- 🌱 बॉन चैलेंज (2011): 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापित करने का लक्ष्य।
- 📝 पेरिस समझौता (अनुच्छेद 5): जलवायु परिवर्तन शमन के लिये वनों का संरक्षण अनिवार्य।
- 📊 FAO का वैश्विक वन संसाधन आकलन (FRA): वनों के डेटा और रुझानों पर रिपोर्ट जारी करता है।
🇮🇳 भारत की वन संरक्षण पहलें
- 📜 वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- 🌿 राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
- 🌏 ग्रीन इंडिया मिशन (GIM): 10 मिलियन हेक्टेयर वन विस्तार और 3 मिलियन परिवारों को आजीविका।
- 💰 CAMPA: वन परियोजनाओं के लिये प्रतिपूरक वित्त पोषण।
- 🌱 राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (2014): कृषि वानिकी को बढ़ावा।
- 🔥 वन अग्नि निवारण योजना: FSI द्वारा रीयल-टाइम निगरानी।
- 🏕 PM वन धन योजना (PMVDY): जनजातीय समुदायों के लिये आर्थिक सहायता।
🚧 वन संरक्षण की चुनौतियाँ
- 🏗 शहरीकरण और औद्योगीकरण
- 🛤 अवैध वनोन्मूलन और खनन
- 🔥 वनाग्नि और जलवायु परिवर्तन
✅ वन संरक्षण को बढ़ाने के उपाय
- 📚 स्थानीय समुदायों की भागीदारी
- 🌲 सतत् वानिकी प्रबंधन
- 🔬 तकनीक और रिमोट सेंसिंग का उपयोग
🔚 निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025 हमें वन संरक्षण की प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर देता है। सतत् नीतियाँ और समुदाय-संचालित पहलें एक हरित और समृद्ध भविष्य के लिये आवश्यक हैं। 🌍🌱
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4. ⚖️ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) – शीघ्र न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल 🚀
📌 चर्चा में क्यों?
👉 FTSC योजना को मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य बलात्कार और POCSO अधिनियम, 2012 के तहत मामलों का समयबद्ध निपटान सुनिश्चित करना है।
⚖️ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट योजना क्या है?
✅ परिचय – यह विधि एवं न्याय मंत्रालय के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे निर्भया फंड से वित्त पोषित किया जाता है।
✅ शुरुआत – 2 अक्टूबर 2019, POCSO मामलों के त्वरित निपटारे के लिए।
✅ लागत साझाकरण –
- 60:40 – केंद्र और राज्य सरकारें।
- 90:10 – पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए।
- 100% केंद्र सरकार – केंद्रशासित प्रदेशों में, जहां विधानसभा नहीं है।
🔎 FTSCs की आवश्यकता क्यों?
📈 बढ़ते लंबित मामले –
- 2020 में 2,81,049 लंबित मामले थे।
- 2022 में बढ़कर 4,17,673 हो गए।
⏳ POCSO अधिनियम के तहत 1 वर्ष में सुनवाई पूरी करनी होती है।
⚠️ सख्त दंड भी तभी प्रभावी जब त्वरित न्याय मिले।
📊 FTSCs का प्रदर्शन (दिसंबर 2024 तक)
🏛 30 राज्यों/UTs में 700+ कार्यरत FTSC।
📌 406 अदालतें विशेष रूप से ePOCSO मामलों के लिए।
🔹 मामलों के निपटान की दर – 96.28%।
📁 अब तक 3 लाख से अधिक मामलों का निपटारा।
🚧 FTSCs के समक्ष चुनौतियाँ
❌ अपर्याप्त न्यायालय – स्वीकृत 1,023 में से केवल 747 कार्यरत।
❌ मुकदमों का भारी बोझ – तेजी से सुनवाई संभव नहीं।
❌ राज्यवार असमानताएँ –
- महाराष्ट्र और पंजाब – उच्च निपटान दर।
- पश्चिम बंगाल – सबसे कम निपटान दर।
❌ निर्भया फंड का सीमित उपयोग – ₹1,700 करोड़ अभी भी अनउपयोगित।
❌ पीड़ित-अनुकूल सुविधाओं की कमी – - संवेदनशील गवाह केंद्र (VWDCs) की अनुपस्थिति।
- महिला लोक अभियोजकों और परामर्शदाताओं की कमी।
🔧 FTSCs को कैसे मजबूत करें?
📌 न्यायिक सुधार –
- विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति।
- महिला लोक अभियोजकों की तैनाती।
📌 संवेदनशील गवाही केंद्र (VWDCs) की स्थापना।
📌 तकनीकी उन्नयन – - ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग।
- डिजिटल केस फाइलिंग।
📌 फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं का विस्तार – - शीघ्र DNA रिपोर्ट और मजबूत साक्ष्य प्रणाली।
🔚 निष्कर्ष
⚖️ FTSCs ने निपटान दर में सुधार किया है, जिससे पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल रहा है। लेकिन अपर्याप्त कोर्ट, संसाधनों की कमी और पीड़ित-अनुकूल सुविधाओं की अनुपस्थिति अभी भी बड़ी चुनौतियाँ हैं।
🚀 समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए FTSCs को अधिक न्यायालयों, तकनीकी संसाधनों और मजबूत पीड़ित सहायता तंत्र के साथ सशक्त बनाना आवश्यक है।
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5.🌊 भारत में प्रभावी जल प्रबंधन की आवश्यकता
🚰 जल जीवन मिशन की प्रगति:
भारत का जल जीवन मिशन 2024 तक हर घर में नल कनेक्शन देने का लक्ष्य लेकर चला था, लेकिन अब इसे 2028 तक बढ़ा दिया गया है। हालांकि, 80% ग्रामीण घरों को कवर किया गया है, फिर भी पारंपरिक जल स्रोतों की अनदेखी चिंता का विषय है।
📜 भारत में जल प्रशासन कार्यढाँचा
✅ संवैधानिक प्रावधान:
- जल राज्य का विषय है (राज्य सूची, प्रविष्टि 17)।
- केंद्र सरकार अंतर-राज्यीय नदियों को नियंत्रित कर सकती है (संघ सूची, प्रविष्टि 56)।
- अनुच्छेद 48A और 51A(g) पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देते हैं।
✅ संस्थागत कार्यढाँचा:
- केंद्रीय: जल शक्ति मंत्रालय
- राज्य: जल संसाधन विभाग, जल बोर्ड
- स्थानीय: ग्राम पंचायतें, जल समितियाँ
- विशेष एजेंसियाँ: CGWB, CWC, NWDA
✅ कानूनी एवं नीति कार्यढाँचा:
- महत्वपूर्ण कानून: अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम (1956), जल (प्रदूषण निवारण) अधिनियम (1974)।
- राष्ट्रीय जल नीति (2012, 2020 प्रस्तावित): जल प्रबंधन को टिकाऊ बनाने पर ज़ोर।
⚠️ भारत में जल प्रबंधन से जुड़े प्रमुख मुद्दे
💧 भूजल का अत्यधिक दोहन:
- भारत दुनिया में सबसे अधिक भूजल का उपयोग करता है।
- कृषि में मुफ्त बिजली और विनियमन की कमी भूजल संकट को बढ़ा रही है।
📊 प्रशासनिक समन्वय की कमी:
- कई मंत्रालयों में जल प्रशासन विखंडित है, जिससे डेटा असंगति बनी रहती है।
🏙️ शहरी जल संकट:
- शहरों में पाइप से जल आपूर्ति सीमित है और जल पुनर्चक्रण कमजोर है।
- गर्मियों में बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों को भारी जल संकट का सामना करना पड़ता है।
🧪 जल गुणवत्ता की समस्या:
- 163 मिलियन भारतीयों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है।
- फ्लोराइड, आर्सेनिक और आयरन संदूषण गंभीर समस्या है।
🏺 पारंपरिक जल स्रोतों की उपेक्षा:
- कुएँ, बावड़ियाँ और तालाब जैसे पारंपरिक जल स्रोत उपेक्षित हो रहे हैं।
- केरल में केवल 28% ग्रामीण बस्तियों को पूर्ण जल आपूर्ति मिल रही है।
🌍 जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- अनियमित मानसून, सूखा और बाढ़ की घटनाएँ जल संसाधनों को अस्थिर कर रही हैं।
- 2031 तक प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता घटकर 1,367 m³ होने की उम्मीद है।
✅ प्रभावी जल प्रबंधन के लिए उपाय
🔄 जल जीवन मिशन + अटल भूजल योजना:
- जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भूजल संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए।
- जल बजटिंग प्रणाली को बढ़ावा दिया जाए।
🏙️ शहरी जल पुनर्चक्रण:
- जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया जाए।
- स्मार्ट सिटी मिशन और AMRUT 2.0 को जोड़कर जल संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए।
👨⚖️ विकेंद्रीकृत जल प्रशासन:
- पंचायती राज संस्थाओं को जल प्रशासन में सशक्त किया जाए।
- स्थानीय स्तर पर जल गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाई जाए।
🚜 सिंचाई में नवाचार:
- सूक्ष्म सिंचाई का विस्तार किया जाए और AI आधारित जल प्रबंधन अपनाया जाए।
📊 जल डेटा प्रणाली:
- जल नीति और डेटा ट्रैकिंग को सुसंगत बनाने के लिए एकीकृत डेटा प्लेटफॉर्म बनाया जाए।
🌱 जलवायु-अनुकूल अवसंरचना:
- जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए जल अवसंरचना तैयार की जाए।
- सूखा और बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को मजबूत किया जाए।
🏗️ पारंपरिक जल निकायों का पुनरुद्धार:
- बावड़ियाँ, जोहड़, टैंक जैसी संरचनाओं को पुनर्जीवित किया जाए।
- MGNREGS और जल शक्ति अभियान का उपयोग कर जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाए।
♻️ पुनर्चक्रित जल का उपयोग:
- औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों में उपचारित जल को दोबारा उपयोग के लिए अनिवार्य किया जाए।
- शून्य तरल निर्वहन (ZLD) दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाए।
📜 मिहिर शाह समिति की सिफारिशें लागू करना:
- CGWB और CWC को मिलाकर राष्ट्रीय जल आयोग (NWC) बनाया जाए।
- विकेंद्रीकृत जल प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाए।
🌟 निष्कर्ष
भारत को जल प्रबंधन के लिए एक संतुलित और सतत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। केवल नल कनेक्शन प्रदान करने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि भूजल संरक्षण, जल पुनर्चक्रण और जलवायु-अनुकूल रणनीतियों को लागू करना अनिवार्य है। 🚰🌱
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