🌴 ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (GNIP): विकास बनाम अधिकारों की बहस
📅 प्रकाशन तिथि: 23 अगस्त 2025
🔍 परिचय
भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (GNIP), अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के रणनीतिक रूप से अहम ग्रेट निकोबार द्वीप पर विकसित किया जा रहा एक मेगा परियोजना है। इस परियोजना का उद्देश्य द्वीप को रणनीतिक, आर्थिक और लॉजिस्टिक हब में बदलना है।
हालाँकि, यह परियोजना जितनी महत्वाकांक्षी है, उतनी ही विवादास्पद भी बन गई है — खासकर जनजातीय अधिकारों, पर्यावरणीय संरक्षण और भूकंपीय खतरे को लेकर।
📌 GNIP का स्वरूप और उद्देश्य
🏗️ प्रमुख अवयव:
- ट्रांसशिपमेंट पोर्ट
- वैश्विक समुद्री व्यापार को गति देने के लिए
- लक्ष्य: 14.2 मीटर ड्राफ्ट वाला गहरा समुद्री बंदरगाह
- अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
- लंबी दूरी के विमानों की आवाजाही को सक्षम बनाने हेतु
- अनुमानित रनवे लंबाई: 2,300 मीटर
- आधुनिक टाउनशिप विकास
- आवास, प्रशासनिक वाणिज्यिक क्षेत्र, आवागमन सुविधाएँ
- 450 MVA बिजली परियोजना
- गैस और सौर ऊर्जा आधारित
- पर्यावरणीय स्थिरता के साथ विद्युत आपूर्ति
🏢 क्रियान्वयन एजेंसी:
ANIIDCO (Andaman and Nicobar Islands Integrated Development Corporation)
🧭 रणनीतिक महत्व
- स्थान: हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित ग्रेट निकोबार द्वीप, भारत के ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का प्रमुख स्तंभ
- नजदीकी अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग: मलक्का जलडमरूमध्य
- भविष्य की सुरक्षा आवश्यकताओं और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रभाव बनाए रखने के लिए यह परियोजना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
👥 स्थानीय जनजातियों की चिंताएँ
🛑 प्रभावित समुदाय:
- शोम्पेन जनजाति
- अति-पिछड़ी और संपर्क से दूर रहने वाली आदिवासी जनजाति
- मुख्यतः शिकारी-संग्राहक जीवनशैली
- निकोबारी जनजाति
- कृषि आधारित जीवन, द्वीपीय संस्कृति में गहराई से जड़े
📣 मुख्य आपत्तियाँ:
- जनजातीय परिषद ने आरोप लगाया है कि अब तक वन अधिकार कानून, 2006 के तहत जनजातीय समुदायों की सहमति नहीं ली गई है।
- भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के दौरान पारंपरिक अधिकारों की अनदेखी
- संस्कृति, जीवनशैली और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर असर की आशंका
🌿 पर्यावरणीय चिंताएँ
⚠️ प्रमुख खतरे:
- भूकंप प्रवण क्षेत्र: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह सिस्मिक ज़ोन-V में आता है
- जैव विविधता को खतरा: इस द्वीप पर रेड लिस्ट में शामिल प्रजातियाँ, घने वर्षावन और दुर्लभ समुद्री पारिस्थितिकीय क्षेत्र हैं
- 300+ वर्ग किमी वन भूमि का क्षरण अनुमानित
📢 पर्यावरणविदों की आपत्तियाँ:
- इस परियोजना के लिए क्लियरेंस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी
- संभावित जैविक और सामाजिक पारिस्थितिकी का विनाश
🧾 विधिक और नीतिगत मुद्दे
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA): जनजातीय लोगों के सामुदायिक अधिकारों की रक्षा करता है
- परियोजना क्षेत्र में किसी भी निर्माण से पहले स्थानीय ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य है
- आरोप है कि “डिजिटल सहमति” के जरिए असली प्रक्रिया को दरकिनार किया गया
📈 विकास की संभावनाएँ और सरकार का पक्ष
सरकार और ANIIDCO का मानना है कि:
- यह परियोजना स्थानीय रोजगार, बुनियादी ढांचे, और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगी
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और संवेदनशील विकास मॉडल के साथ कार्य किया जा रहा है
- जनजातियों के लिए पुनर्वास और मुआवजा योजनाएँ प्रस्तावित हैं
🧠 निष्कर्ष: संतुलन की आवश्यकता
ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भारत के विकास और रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम हो सकता है, लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब इसका क्रियान्वयन संवेदनशील, सहभागी और पारदर्शी ढंग से किया जाए।
👉 जनजातीय अधिकारों का सम्मान,
👉 पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा,
👉 और स्थानीय समुदायों की भागीदारी – ये तीन स्तंभ इस परियोजना की सफलता की कुंजी हैं।
📚 संदर्भ और स्रोत:
- Ministry of Environment, Forest and Climate Change (MoEFCC)
- ANIIDCO दस्तावेज
- जनजातीय मामलों का मंत्रालय
- स्वतंत्र पर्यावरणीय रिपोर्ट्स