प्रत्यूष (PRATUSH)

प्रत्यूष (PRATUSH): ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने की नई खिड़की

भारत का वैज्ञानिक शोध जगत निरंतर नए-नए नवाचारों से दुनिया को चौंका रहा है। इसी कड़ी में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) की एक टीम ने ‘प्रत्यूष (PRATUSH)’ नामक अत्याधुनिक डिजिटल रिसीवर सिस्टम का विकास शुरू किया है। यह परियोजना भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा वित्त पोषित है।


प्रत्यूष (PRATUSH) क्या है?

‘प्रत्यूष’ का पूरा नाम है:
Probing Reionization of the Universe Using Signal from Hydrogen
(हाइड्रोजन से प्राप्त सिग्नल का उपयोग कर ब्रह्मांड के पुनः आयनीकरण की जांच करना)

  • यह एक भविष्य का रेडियोमीटर (Radio Meter) है।

  • इसे चंद्रमा की कक्षा (Lunar Orbit) में स्थापित करने की योजना है।

  • इसका लक्ष्य है ब्रह्मांड के आरंभिक रहस्यों को उजागर करना।


उद्देश्य और महत्व

ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास को समझना सदियों से मानवता के लिए एक बड़ा प्रश्न रहा है। प्रत्यूष इस दिशा में अभूतपूर्व भूमिका निभाएगा।

🔹 बिग बैंग के बाद का इतिहास – यह पहली बार हमें बताएगा कि बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड ने कैसे परिवर्तन देखे।
🔹 कॉस्मिक डॉन (Cosmic Dawn) – यह वह काल है जब ब्रह्मांड में पहली बार तारे और आकाशगंगाएँ बनने लगी थीं।
🔹 हाइड्रोजन के संकेत – ब्रह्मांड के आरंभिक समय में हाइड्रोजन परमाणुओं से उत्सर्जित होने वाले बेहद कमजोर रेडियो सिग्नल का पता लगाना।
🔹 री-आयोनाइजेशन की जांच – जब पहली रोशनी और ऊर्जा ने ब्रह्मांड को आयनीकृत किया था, उस प्रक्रिया को समझना।


क्यों खास है प्रत्यूष?

  1. भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रतीक – यह दिखाता है कि भारत अब ब्रह्मांड के सबसे जटिल सवालों के उत्तर खोजने में अग्रणी है।

  2. अनूठा प्रयोग – अब तक विश्व में बहुत सीमित प्रयास ही इस दिशा में हुए हैं।

  3. आधुनिकतम तकनीक – यह डिजिटल रिसीवर सिस्टम बेहद कमजोर रेडियो सिग्नल तक पकड़ सकता है।

  4. भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए मार्गदर्शक – यह परियोजना आने वाले स्पेस रेडियो खगोलशास्त्र मिशनों की नींव रखेगी।


निष्कर्ष

प्रत्यूष (PRATUSH) केवल एक वैज्ञानिक उपकरण नहीं है, बल्कि यह हमारे ब्रह्मांडीय अतीत की खिड़की है। यह हमें बताएगा कि बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड कैसे विकसित हुआ, कॉस्मिक डॉन के रहस्य क्या थे, और पहली रोशनी ने हमारे ब्रह्मांड को किस तरह आकार दिया।

भारत के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह परियोजना आने वाले समय में विश्वभर के खगोल वैज्ञानिकों के लिए एक अमूल्य संसाधन साबित होगी।