सुप्रीम कोर्ट ने बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के कार्यान्वयन में आ रही समस्याओं पर चिंता जताई
सुप्रीम कोर्ट ने बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के कार्यान्वयन में आ रही समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम की धारा 5 के तहत राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति (NCDS) का गठन किया जाना था, लेकिन अधिनियम लागू होने के बावजूद अब तक यह समिति गठित नहीं हुई है। यह समिति बांध सुरक्षा के मानकों को बनाए रखने और बांध टूटने से होने वाली आपदाओं को रोकने के लिए जिम्मेदार होगी।
बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 के मुख्य पहलू:
- उद्देश्य: इस अधिनियम का उद्देश्य बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रख-रखाव सुनिश्चित करना है, ताकि बांध टूटने से होने वाली आपदाओं को रोका जा सके।
- संस्थागत संरचनाएं:
- केंद्र स्तर पर राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA) और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति (NCDS)।
- राज्य स्तर पर राज्य बांध सुरक्षा समिति और राज्य बांध सुरक्षा संगठन।
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति (NCDS): इस समिति की अध्यक्षता केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अध्यक्ष द्वारा की जाएगी। इसमें केंद्र और राज्य के प्रतिनिधि तथा तीन विशेषज्ञ शामिल होंगे।
भारत में बांध सुरक्षा के लिए अन्य पहल:
- राष्ट्रीय रजिस्टर: भारत में बड़े बांधों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर (NRLD) है, जिसे केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा संकलित और अनुरक्षित किया जाता है।
- बांध पुनरुद्धार और सुधार परियोजना (DRIP): यह परियोजना विश्व बैंक (WB) और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) द्वारा समर्थित है।
- भूकंपीय सुरक्षा: बांधों की भूकंप से सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र और डैम हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन मॉनिटरिंग एप्लीकेशन (DHARMA) जैसे उपाय किए गए हैं।
बांध सुरक्षा से जुड़ी समस्याएं:
- पुराने बांध: भारत में 80% से अधिक बड़े बांध 25 साल से अधिक पुराने हो चुके हैं, जो सुरक्षा के लिए चिंता का कारण हैं।
- अवसादन जमाव: अवसादन जमाव के कारण बांधों की भंडारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे जल संग्रहण की क्षमता प्रभावित होती है।
- भूकंपीय जोखिम: पुराने बांध भूकंप के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। उदाहरण के लिए, 2001 में भुज भूकंप के दौरान चांग बांध को गंभीर क्षति पहुंची थी।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता यह है कि राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति का गठन न होने से बांध सुरक्षा के मानकों का पालन और उपयुक्त निगरानी नहीं हो पा रही है, जो भविष्य में संभावित खतरों को बढ़ा सकती है।
भारत के विदेश सचिव और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक संपन्न हुई
भारत के विदेश सचिव और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के बीच हुई पहली द्विपक्षीय बैठक महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह तालिबान द्वारा 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर नियंत्रण के बाद दोनों देशों के बीच उच्चतम स्तर की पहली मुलाकात थी। इस बैठक में भारतीय मानवीय सहायता कार्यक्रमों की समीक्षा की गई और दोनों देशों ने व्यापार एवं वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने पर सहमति जताई।
भारत-अफगानिस्तान संबंध:
- पृष्ठभूमि: भारत और अफगानिस्तान के बीच घनिष्ठ और ऐतिहासिक संबंध हैं। 1950 में “मैली संधि” पर हस्ताक्षर से दोनों देशों के बीच सहयोग की शुरुआत हुई थी।
- तालिबान की वापसी: भारत ने तालिबान को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, लेकिन इसके बावजूद वार्ता और सहयोग जारी हैं।
- भारतीय दूतावास में तकनीकी टीम की तैनाती: भारत ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता प्रदान करने और अफगान लोगों के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखने के लिए एक तकनीकी टीम की तैनाती की है।
- आधिकारिक संयुक्त सचिव बैठक (नवंचर, 2024): काबुल में भारतीय राजनयिक और तालिबान के रक्षा मंत्री के बीच पहली आधिकारिक बैठक हुई थी।
भारत के लिए अफगानिस्तान का महत्त्व:
- अवस्थितिः अफगानिस्तान को “हार्ट ऑफ एशिया” कहा जाता है और यह भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से खैबर और चोलन दरों के माध्यम से एक व्यापारिक मार्ग रहा है।
- स्थिरता और सुरक्षा: अफगानिस्तान में कई आतंकवादी समूहों की शरण स्थली रही है। इसलिए भारत की कोशिश है कि रचनात्मक सहयोग से आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के मुद्दों का समाधान हो सके।
- मध्य एशिया से कनेक्टिविटी: अफगानिस्तान मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण कनेक्शन हब के रूप में स्थित है।
- भारत की सॉफ्ट पावर: अफगानिस्तान में भारत द्वारा मानवीय सहायता जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों को गेहूं की आपूर्ति करने से भारत की सॉफ्ट पावर छवि को मजबूती मिली है।
- भारत की परियोजनाएं: भारत अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाओं में शामिल है, जैसे अफगान-भारत मैत्री बांध (पूर्व में सलमा बांध) और जरांज-डेलाराम राजमार्ग।
- चीन की बढ़ती भूमिका: अफगानिस्तान में चीन की भूमिका बढ़ती जा रही है। चीन काबुल में शहरी विकास परियोजनाओं में निवेश कर रहा है और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों को मजबूत कर रहा है।
भारत और अफगानिस्तान के बीच ये रिश्ते केवल क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि भारत के अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयासों में भी एक अहम स्थान रखते हैं।
मराठी भाषा को आधिकारिक तौर पर शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया
मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया यह निर्णय मराठी की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने के लिए लिया गया है।
भारत में शास्त्रीय भाषा:
भारत सरकार ने 2004 में “शास्त्रीय भाषाओं” की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया। इस श्रेणी में वे भाषाएं आती हैं जिन्हें एक विशेष ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मानक के तहत शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जाता है। 2024 में भाषा विशेषज्ञ समिति ने इन मानदंडों में कुछ संशोधन किए थे।
शास्त्रीय भाषा घोषित करने के मानदंड:
- प्रारंभिक ग्रंथों का प्राचीन होना: संबंधित भाषा के प्रारंभिक ग्रंथ अति-प्राचीन होने चाहिए, और इसका अभिलेखित इतिहास 1500-2000 वर्षों का होना चाहिए।
- प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का संग्रह: इस भाषा का एक प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का संग्रह होना चाहिए, जिसे बोलने वाली पीढ़ियाँ अपनी विरासत मानती हों।
- साक्ष्य: कविता, अभिलेख और शिलालेख के अलावा, संबंधित भाषा के अपने गाथाग्रंथ भी होने चाहिए।
- वर्तमान स्वरूप में अंतर: शास्त्रीय भाषाएं और उनके साहित्य, अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं, अर्थात इन भाषाओं के साहित्य ने अन्य शाखाओं से अलग रूप लिया है।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त अन्य भाषाएं: 2004 में तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, और ओडिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला था। अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया, और बंगाली को भी यह दर्जा दिया गया है।
शास्त्रीय भाषा के लाभ:
- संरक्षण और दस्तावेजीकरण: शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से उस भाषा के प्राचीन ग्रंथों के दस्तावेजीकरण, संरक्षण और डिजिटलीकरण को बढ़ावा मिलता है। साथ ही, अनुवाद, प्रकाशन, और डिजिटल मीडिया में रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं।
- शैक्षणिक लाभ: शिक्षा मंत्रालय इन भाषाओं के विद्वानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करता है, जिससे शैक्षिक क्षेत्र में प्रोत्साहन मिलता है।
- वित्तीय सहायता: शास्त्रीय भाषाओं के शोध और विकास के लिए सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
मराठी भाषा:
- मराठी का इतिहास: मराठी इंडो-आर्यन (भारोपीय) भाषा है, और आधुनिक मराठी का उद्भव महाराष्ट्री प्राकृत से हुआ है, जो पश्चिमी भारत में बोली जाने वाली प्राकृत भाषा थी। महाराष्ट्री प्राकृत सातवाहनों की राजकीय भाषा भी थी।
- प्रारंभिक साहित्य: गाथासप्तशती, जो सातवाहन राजा हाल द्वारा रचित काव्य संग्रह है, मराठी की सबसे प्रारंभिक ज्ञात साहित्यिक कृतियों में से एक मानी जाती है।
निष्कर्ष: मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से न केवल इस भाषा के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को मान्यता मिली है, बल्कि यह भाषा के संरक्षण, अध्ययन और विकास के लिए नए अवसर भी उत्पन्न करेगा।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि विश्व में ताजे जल की 24% प्रजातियों के समक्ष विलुप्त होने का खतरा है
एक नए अध्ययन से पता चला कि विश्व में ताजे जल की 24% प्रजातियों के समक्ष विलुप्त होने का खतरा है। यह अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा किया गया था, जो IUCN की संकटयस्त प्रजातियों से संबंधित लाल सूची के लिए वैश्विक स्तर पर ताजे जल में रहने वाली अलग-अलग प्रजातियों का पहला आकलन है।
अध्ययन के मुख्य बिंदु:
- प्रमुख हॉटस्पॉट्स:
- विक्टोरिया झील (केन्या, तंजानिया और युगांडा)
- टिटिकाका झील (बोलीविया और पेरु)
- श्रीलंका का आर्द्र क्षेत्र और पश्चिमी घाट (भारत)
- प्रमुख संकटग्रस्त प्रजातियाँ:
- केकड़े, क्रेफ़िश, और झींगे विलुप्त होने के सबसे अधिक जोखिम में हैं।
- इसके बाद ताजे जल की मछलियाँ आती हैं।
- 23,496 ताजे जल जीवों में से कम से कम 4,294 प्रजातियाँ विलुप्त होने के उच्च जोखिम का सामना कर रही हैं।
- अन्य तथ्य:
- जल की उच्च अभावग्रस्तता वाले क्षेत्रों में संकटग्रस्त प्रजातियों की संख्या कम नहीं है, बल्कि जल की कम अभावग्रस्तता वाले क्षेत्रों और कम सुपोषण वाले क्षेत्रों में संकटग्रस्त प्रजातियों की संख्या अधिक है।
- जल की उच्च अभावग्रस्तता का अर्थ है कि वहां जल की मांग अधिक और आपूर्ति कम है।
- सुपोषण (यूट्रोफिकेशन) का मतलब है जल में पोषक तत्वों की अधिकता, जिसके कारण शैवाल और पादपों की अत्यधिक वृद्धि होती है।
ताजे जल से जुड़े तथ्य:
- स्थितिः पृथ्वी पर ज्ञात सभी प्रजातियों में से लगभग 10% प्रजातियाँ ताजे जल में पाई जाती हैं।
- महत्त्व: ताजे जल प्रजातियाँ सुरक्षित पेयजल, आजीविका, बाढ़ नियंत्रण और जलवायु परिवर्तन शमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- खतरे:
- प्रदूषण: मुख्यतः कृषि और वानिकी से होने वाला प्रदूषण।
- क्षरण: जैसे कृषि उपयोग के लिए भूमि में परिवर्तन, जल निकासी, और बांधों का निर्माण।
- अन्य: अत्यधिक मछली पकड़ना और आक्रामक विदेशी प्रजातियों का प्रवेश।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के बारे में:
- उत्पत्ति: IUCN की स्थापना 1948 में की गई थी।
- उद्देश्य: यह सार्वजनिक, निजी और गैर-सरकारी संगठनों को ज्ञान और साधन प्रदान करता है, ताकि मानव प्रगति, आर्थिक विकास और प्रकृति संरक्षण एक साथ संभव हो सके।
- सदस्यता: IUCN सदस्यता वाला संघ है, जिसमें सरकार और नागरिक समाज दोनों के संगठन शामिल हैं।
- मुख्यालय: स्विट्जरलैंड के ग्लैंड में स्थित है।
निष्कर्ष:
यह अध्ययन ताजे जल प्रजातियों के संरक्षण की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से उजागर करता है, क्योंकि इन प्रजातियों के विलुप्त होने से न केवल जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि यह मानव जीवन के लिए भी गंभीर संकट उत्पन्न कर सकता है। जल स्रोतों के संरक्षण और संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।