भारत के लिए बढ़ती जलवायु सुभेद्यताएं

मानसून से जुड़ी चरम मौसमी घटनाएं: भारत के लिए बढ़ती जलवायु सुभेद्यताएं

भारत की जलवायु प्रणाली में मानसून की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल कृषि और खाद्य सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, बल्कि देश की जल, ऊर्जा और आपदा प्रबंधन नीतियों को भी प्रभावित करता है। हाल के वर्षों में मानसून से जुड़ी चरम मौसमी घटनाओं (extreme weather events) की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ी हैं। पंजाब में बाढ़, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन तथा जम्मू-कश्मीर में अचानक आई बाढ़ हालिया उदाहरण हैं।


मानसून का बदलता स्वरूप

1. वर्षा का अनियमित पैटर्न

  • मानसूनी हवाएं पहले की तरह स्थिर नहीं रहीं।

  • बढ़ते तापमान से वायुमंडलीय आर्द्रता अधिक हो रही है।

  • नतीजा: कभी भीषण वर्षा, तो कभी लंबे सूखे दिन।
    👉 इससे कृषि और जल प्रबंधन दोनों पर गहरा असर पड़ता है।

2. अल नीनो और मानसून का कमजोर संबंध

  • पारंपरिक रूप से अल नीनो भारतीय मानसून को कमजोर करता था।

  • लेकिन वैश्विक जलवायु परिवर्तन के चलते अब यह संबंध उतना स्पष्ट नहीं रहा।

  • इसका अर्थ है कि मौसम पूर्वानुमान और भी चुनौतीपूर्ण हो गए हैं।

3. स्थानिक वितरण में बदलाव

  • पहले जहां अधिक वर्षा होती थी, वहां कमी देखी जा रही है।

  • जहां कम होती थी, वहां अप्रत्याशित रूप से अधिक वर्षा हो रही है।
    👉 यह असंतुलन स्थानीय पारिस्थितिकी, खेती और आपदा जोखिम को प्रभावित कर रहा है।


बढ़ती जलवायु और आपदा सुभेद्यताएं

  • बाढ़: पंजाब और अन्य मैदानी इलाकों में जलभराव और फसल नुकसान।

  • भूस्खलन: हिमालयी क्षेत्रों में ढांचागत विकास और तीव्र वर्षा से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।

  • अचानक बाढ़ (Flash Floods): उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पर्वतीय नदियां अधिक संवेदनशील हो गई हैं।

  • कृषि पर असर: अनियमित वर्षा से बोआई और कटाई के समय में अव्यवस्था।

  • शहरी संकट: शहरों में जलनिकासी की कमी के कारण थोड़ी सी बारिश भी बाढ़ का रूप ले लेती है।


समाधान और आगे की राह

  1. जलवायु-लचीली नीतियां (Climate-Resilient Policies)

    • कृषि, जल संसाधन और शहरी नियोजन में बदलाव।

  2. बेहतर पूर्वानुमान प्रणाली

    • सैटेलाइट और AI-आधारित मॉडलिंग का इस्तेमाल।

  3. स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन

    • सामुदायिक जागरूकता और त्वरित राहत व्यवस्था।

  4. पारिस्थितिक संवेदनशीलता का ध्यान

    • पहाड़ी क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण पर नियंत्रण।

  5. हरित प्रौद्योगिकी

    • वर्षा जल संचयन और प्राकृतिक नदियों के प्रवाह को बहाल करना।


निष्कर्ष

भारत का मानसून अब पहले जैसा पूर्वानुमान योग्य नहीं रहा। जलवायु परिवर्तन ने इसे अधिक अस्थिर और चरम बना दिया है। ऐसे में, यदि भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन को सुरक्षित रखना है तो उसे जलवायु-लचीले मॉडल अपनाने होंगे और स्थानीय स्तर पर सतत विकास रणनीतियां लागू करनी होंगी।