🔍 समाचार में क्यों?
हाल ही में तमिलनाडु के कीलाड़ी (Keeladi) में चल रहे पुरातात्विक उत्खनन के दौरान संगम काल से संबंधित क्रिस्टल क्वार्ट्ज से बना वजन मापक (weighing unit) प्राप्त हुआ है। यह खोज उस काल के वाणिज्यिक लेन–देन, मानकीकरण, और शहरी सभ्यता के प्रमाण को और भी मजबूत करती है।
🏺 कीलाड़ी उत्खनन स्थल: एक परिचय
- स्थान: कीलाड़ी गाँव, वैगई नदी के तट पर, शिवगंगा ज़िला, तमिलनाडु।
- आरंभ: 2015 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और तमिलनाडु पुरातत्व विभाग द्वारा।
- सन्दर्भ: यह स्थल तमिलनाडु के अन्य प्रमुख पुरातात्विक स्थलों जैसे आदि चनालूर, कोडुमनाल और अरिकमेडु से सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ है।
🧭 कीलाड़ी उत्खनन का ऐतिहासिक महत्व
1. आयरन एज से प्रारंभिक ऐतिहासिक काल तक की कड़ी
- यह स्थल लोहे के युग (1200 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (600 ईसा पूर्व से 400 ईस्वी) के बीच के गुम हुए कालखंड को समझने में मदद करता है।
2. संगम युग से संबंध
- कीलाड़ी में प्राप्त सामग्री संगम युग (600 ईसा पूर्व – 300 ईस्वी) की साहित्यिक और ऐतिहासिक साक्ष्य को भौतिक रूप से पुष्ट करती है।
3. शहरीकरण का प्रमाण
- विकसित जल निकासी प्रणाली, ईंट की संरचनाएं, और बड़े पैमाने पर निर्माण दर्शाते हैं कि यह एक नियोजित नगरीय बस्ती थी।
4. आंतरिक और बाहरी व्यापार
- क्रिस्टल क्वार्ट्ज, आभूषण, विदेशी मूल की वस्तुएं, और मुद्रित टेराकोटा सीलें यह दर्शाती हैं कि यहाँ व्यापक व्यापारिक नेटवर्क था।
5. कृषि और उद्योग
- कपास की कताई (स्पिंडल व्हॉर्ल), रंगाई उद्योग, तांबे की सुइयां, कांच की मोतियों का निर्माण, आदि से यहाँ की श्रम विभाजन आधारित अर्थव्यवस्था का पता चलता है।
6. तमिल–ब्राह्मी लिपि
- बर्तनों पर तमिल–ब्राह्मी लिपि में लिखे गए लेखों से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ लिपिबद्ध भाषा संस्कृति प्रचलित थी — जो प्रशासन, शिक्षा और व्यापार के लिए आवश्यक है।
📜 संगम काल: एक परिचय
- यह काल प्राचीन तमिल समाज (तमिलनाडु और केरल) का साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्वर्ण युग माना जाता है।
🔹 प्रमुख विशेषताएं:
- ‘संगम’ का अर्थ: विद्वानों और कवियों की सभाएं।
- कालावधि: लगभग 600 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी।
- तीन संगम सभाएं:
○ प्रथम एवं तृतीय संगम – मदुरै (तमिलनाडु)
○ द्वितीय संगम – कपाडपुरम् (तमिलनाडु)
🔹 प्रमुख साहित्य:
- तोलकाप्पियम – तमिल व्याकरण और काव्यशास्त्र।
- एत्तुत्तोकै और पत्तुप्पाट्टु – संगम कविता संग्रह।
- द्वैतिक महाकाव्य – शिलप्पदिकारम और मणिमेगलाई।
🔹 सामाजिक व धार्मिक पक्ष:
- वर्ण व्यवस्था का ज्ञान संगम कवियों को था, परन्तु समाज अधिक जातीय–आधारित था।
- वटकिरुत्तल (व्रतपूर्वक मृत्यु वरण) जैसे रिवाज भी आम थे।
🔹 प्रमुख महिला कवयित्रियाँ:
- अव्वैयार, नच्चेल्लैयार, कक्कैपादिनियार आदि।
🪨 संबंधित समाचार: ब्राह्मी लिपि – आंध्र प्रदेश
📍 धारणिकोटा गाँव (अमरावती के पास) में ब्राह्मी लिपि की एक प्राकृत भाषा में लिखी दूसरी शताब्दी ईस्वी की शिला लेख मिली है।
- लेख की सामग्री: दो पुत्रियों – हतान और विनिया – और उनकी परिचारिका का चित्रण।
- ऐतिहासिक महत्व: यह क्षेत्र विशेषतः बौद्ध स्थूपों और विहारों के लिए प्रसिद्ध है।
🧾 ब्राह्मी लिपि: एक विवेचन
- उद्भव: भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक, जिसका प्रयोग सबसे पहले मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेखों में हुआ (3री शताब्दी ईसा पूर्व)।
- प्रकृति: यह एक अबुगिडा (abugida) लिपि है – प्रत्येक अक्षर में एक अंतर्निहित स्वर होता है।
- प्रसार: यह लिपि आगे चलकर देवनागरी, तमिल, कन्नड़, तेलुगु, बंगाली आदि लिपियों का आधार बनी।
🔚 निष्कर्ष
कीलाड़ी उत्खनन केवल एक पुरातात्विक खोज नहीं है, बल्कि यह तमिल सभ्यता की निरंतरता, शहरी जीवन, लेखन पद्धति, उद्योग–धंधों, और साहित्यिक परंपराओं का प्रमाण है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि दक्षिण भारत की सभ्यता उतनी ही प्राचीन, उन्नत और जटिल थी जितनी कि उत्तर भारत की।
❓ प्रश्न 1: कीलाड़ी उत्खनन से संबंधित निम्न कथनों पर विचार कीजिए:
- यह स्थल वैगई नदी के तट पर स्थित है, जिससे संगम युगीन जल-आधारित व्यापार का संकेत मिलता है।
- कीलाड़ी में केवल कृषि उपकरणों की खोज हुई है, जिससे यह एक प्रमुख कृषक बस्ती सिद्ध होती है।
- इस स्थल से तमिल-ब्राह्मी लिपि में लिखे अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
उपयुक्त विकल्प चुनिए:
A) केवल 1 और 2
B) केवल 2 और 3
C) केवल 1 और 3
D) सभी 1, 2 और 3
❓ प्रश्न 2: ब्राह्मी लिपि की निम्नलिखित विशेषताओं में से कौन–सी सही है?
- यह एक पूर्णतः ध्वन्यात्मक लिपि (alphabet) है।
- यह अबुगिडा (abugida) प्रकृति की है, जिसमें अक्षरों में अंतर्निहित स्वर होता है।
- ब्राह्मी लिपि से अधिकांश आधुनिक भारतीय लिपियाँ विकसित हुई हैं।
सही विकल्प चुनिए:
A) केवल 1 और 2
B) केवल 2 और 3
C) केवल 1 और 3
D) सभी 1, 2 और 3
❓ प्रश्न 3: संगम साहित्य के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- संगम युगीन साहित्य में वर्ण व्यवस्था का स्पष्ट समर्थन मिलता है।
- शिलप्पदिकारम और मणिमेगलाई जैसे ग्रंथों में स्त्रियों की सामाजिक भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
- संगम साहित्य पूरी तरह पौराणिक कथाओं पर आधारित है।
सही विकल्प चुनिए:
A) केवल 1 और 2
B) केवल 2
C) केवल 3
D) 1, 2 और 3 सभी
❓ प्रश्न 4: कीलाड़ी स्थल से प्राप्त वस्तुओं के आधार पर निम्नलिखित में से कौन–से निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं?
- यह स्थल एक पूर्णतः कृषि आधारित गाँव था।
- यहाँ उद्योग-धंधों की उपस्थिति थी जो शहरीकरण को इंगित करती है।
- यहां केवल स्थानीय व्यापार होता था, बाहरी व्यापार का कोई प्रमाण नहीं है।
सही विकल्प चुनिए:
A) केवल 1 और 2
B) केवल 2
C) केवल 3
D) केवल 1 और 3
❓ प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन–सी बात कीलाड़ी को भारत के अन्य प्राचीन स्थलों से अलग करती है?
- A) यहाँ से सिंधु लिपि में लेख मिले हैं।
B) यह स्थल वैदिक सभ्यता से पुराना है।
C) यहाँ दक्षिण भारत में संगम साहित्य के भौतिक प्रमाण मिलते हैं।
D) यहाँ केवल बौद्ध धर्म से संबंधित सामग्री मिली है।
5,गोवा के मौक्सी गाँव में नवपाषाण युग की शैल उत्कीर्णन (Rock Carvings): एक समकालीन खोज
🔷 हाल की खोज:
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने हाल ही में गोवा के मौक्सी (Mauxi) गाँव में नवपाषाण युग (Neolithic Age) से संबंधित शैल चित्रों (rock carvings) की पुष्टि की है।
- ये चित्र जार्मे नदी (Zarme River) के सूखे नदी तल में स्थित मेटा–बेसाल्ट चट्टानों (meta-basalt rocks) पर पाए गए हैं।
- ये चित्र प्राकृतिक उत्कीर्णन (Petroglyphs) के रूप में उकेरे गए हैं, न कि चित्रित (painted) रूप में।
🔷 मुख्य विशेषताएँ:
- खुदाई में सामने आए चित्रों में जानवरों जैसे ज़ेबू (कूबड़ वाला बैल), सांड (bull), मृग/नीलगाय (antelope) शामिल हैं।
- इसके अलावा मानव पदचिन्ह (footprints) तथा ‘क्यूप्यूल्स‘ (Cupules) — यानी अर्धगोलाकार गड्ढेनुमा आकृतियाँ — भी खुदी पाई गई हैं।
- यह स्थल भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिमी घाट क्षेत्र में नवपाषाण सांस्कृतिक गतिविधियों की उपस्थिति का एक दुर्लभ प्रमाण है।
🏞️ भारत में प्रागैतिहासिक काल की शैल चित्रकला का विकास:
🟤 1. उच्च पुरापाषाण काल (Upper Paleolithic Period):
- भारत में शैल चित्रकला की सबसे प्रारंभिक उदाहरणें इसी काल से मिलती हैं।
- चित्रों में हाथी, बाइसन, बाघ जैसे जानवरों के रेखीय चित्र मिलते हैं।
- रंग: गहरे लाल और हरे रंग का प्रयोग।
- मानव आकृतियाँ: छड़ी जैसी (stick-like) रेखीय शैली में।
- प्रमुख स्थल:
○ भीमबेटका (मध्य प्रदेश) — यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।
○ ज्वालापुरम (आंध्र प्रदेश) — प्रसिद्ध पुरापाषाण स्थल।
🟠 2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period):
- सबसे अधिक शैल चित्र इसी काल के हैं।
- मुख्य विषय: सामूहिक शिकार, नृत्य, दैनिक जीवन की झलकियाँ।
- शैली:
○ पशुओं को प्राकृतिक शैली में दर्शाया गया है।
○ मनुष्यों को अलंकृत शैली (stylized) में चित्रित किया गया।
- प्रमुख स्थल:
○ पचमढ़ी, आदमगढ़ पहाड़ियाँ (मध्य प्रदेश)
🟢 3. नवपाषाण–ताम्रपाषाण काल (Neolithic-Chalcolithic Period):
- चित्रों में मिट्टी के बर्तन (pottery) व धातु उपकरण (metal tools) को दर्शाया गया है।
- शैली: चित्रों की जीवंतता और स्पष्टता में कमी आने लगती है।
- रंग:
○ लाल — हेमैटाइट (haematite) से
○ सफेद — चूना पत्थर (limestone) से
- मानव आकृतियाँ: अधिक साहसी, गतिशील।
- पशु आकृतियाँ: अधिक शक्तिशाली, युवा।
- प्रमुख स्थल:
○ चंबल क्षेत्र,
○ दैमाबाद (महाराष्ट्र)
🔍 वैज्ञानिक महत्व व सांस्कृतिक संकेत:
- मौक्सी गाँव की खुदाई गोवा और पश्चिमी भारत में नवपाषाण संस्कृति के प्रमाण को मजबूती देती है, जो अब तक अपेक्षाकृत कम प्रमाणित क्षेत्र माना जाता था।
- क्यूप्यूल्स और पदचिन्ह जैसी आकृतियाँ आध्यात्मिक विश्वास, पूर्वज पूजा, या पारगमन (transition rituals) को दर्शा सकती हैं।
- जानवरों की खुदी आकृतियाँ इस बात का संकेत देती हैं कि पशुपालन या शिकार, उस समाज की आर्थिक और सांस्कृतिक रीढ़ रहा ह
प्रश्न 1:
हाल ही में गोवा के मौक्सी गाँव में पाए गए शैल उत्कीर्णन में “क्यूप्यूल्स” (Cupules) पाए गए हैं। इन क्यूप्यूल्स का प्रागैतिहासिक संदर्भ में संभावित महत्व क्या हो सकता है?
- खगोलीय घटनाओं की गणना के लिए प्रयुक्त यंत्र
B. आध्यात्मिक या अनुष्ठानिक गतिविधियों से संबंधित प्रतीक
C. सैन्य प्रशिक्षण स्थलों के संकेत
D. जल संरक्षण तकनीकों का भाग
प्रश्न 2:
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है, जब हम भारत में नवपाषाण-ताम्रपाषाण कालीन शैल चित्रों की तुलना मध्य पाषाण कालीन चित्रों से करते हैं?
- नवपाषाण चित्रों में मानव आकृतियाँ अधिक साहसी प्रतीत होती हैं।
B. नवपाषाण चित्रों में जानवरों को अधिक युवा और शक्तिशाली दिखाया गया है।
C. नवपाषाण चित्रों में रंगों की विविधता और चित्रों की जीवंतता अधिक है।
D. मध्य पाषाण चित्रों में समूहगत मानव गतिविधियों का चित्रण प्रमुख है।
प्रश्न 3:
मौक्सी गाँव के शैल चित्रों की खोज भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक इतिहास में किस अवधारणा को सबसे अधिक चुनौती देती है?
- केवल मध्य भारत और विंध्य क्षेत्र ही नवपाषाण सांस्कृतिक केंद्र थे।
B. नवपाषाण काल में केवल कृषि आधारित संस्कृति थी।
C. पश्चिमी घाट में कोई प्रागैतिहासिक गतिविधियाँ नहीं थीं।
D. नवपाषाण काल के लोग केवल गुफाओं में रहते थे।
प्रश्न 4:
भारत में शैल चित्रों की कला के विकास की दृष्टि से निम्नलिखित युगों को कालानुक्रम में सही क्रम में लगाइए:
- नवपाषाण-ताम्रपाषाण काल
- उच्च पुरापाषाण काल
- मध्य पाषाण काल
- 2 – 3 – 1
B. 3 – 2 – 1
C. 1 – 2 – 3
D. 2 – 1 – 3
प्रश्न 5:
नवपाषाण युगीन चट्टानों पर खुदे चित्रों में ज़ेबू, सांड, और नीलगाय जैसे पशुओं की उपस्थिति किस सांस्कृतिक व्यवहार का संकेत देती है?
- जंगली पशुओं की पूजा के प्रचलन का
B. पशुपालन की आरंभिक अवस्था और समाज में उसकी महत्ता का
C. इन पशुओं को शत्रु के प्रतीक रूप में चित्रित करने का
D. केवल आख्यायिक (mythological) चित्रण का