कपास: भारत का “सफेद सोना”
केंद्र सरकार ने हाल ही में कपास पर आयात शुल्क छूट को 31 दिसंबर, 2025 तक बढ़ाने का फैसला किया है। यह निर्णय वस्त्र उद्योग और किसानों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कपास भारतीय अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका में अहम भूमिका निभाता है।
भारत में कपास की स्थिति
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दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक: भारत विश्व में कपास उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
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सभी प्रजातियों की खेती: भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां कपास की चारों प्रजातियों (गॉसिपियम हर्बेसियम, गॉसिपियम आर्बोरियम, गॉसिपियम बारबाडेंस और गॉसिपियम हिर्सुटम) की खेती होती है।
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सफेद सोना: इसकी आर्थिक और औद्योगिक महत्ता के कारण कपास को अक्सर “सफेद सोना” कहा जाता है।
कपास का महत्व
1. आर्थिक दृष्टिकोण से
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किसानों की आय: लाखों किसान प्रत्यक्ष रूप से कपास की खेती पर निर्भर हैं।
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वस्त्र उद्योग: कपास वस्त्र उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है, जो देश की निर्यात अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है।
2. सामाजिक दृष्टिकोण से
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ग्रामीण आजीविका: कपास की खेती और प्रसंस्करण से करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है।
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महिला सशक्तिकरण: कपास की तुड़ाई और प्रसंस्करण में बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ी होती हैं।
आयात शुल्क छूट का प्रभाव
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कच्चे माल की उपलब्धता: घरेलू वस्त्र और परिधान उद्योग को पर्याप्त कच्चा माल मिलेगा।
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कीमतों में स्थिरता: बाजार में कपास की कीमतों को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
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वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारतीय वस्त्र उद्योग अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनेगा।
चुनौतियां
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जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन में अनिश्चितता।
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कीट व रोग प्रबंधन की समस्याएं।
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जल और रसायनों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरणीय प्रभाव।
निष्कर्ष
कपास भारत की कृषि और औद्योगिक धुरी है। सरकार द्वारा आयात शुल्क छूट बढ़ाने का फैसला न केवल वस्त्र उद्योग को स्थिरता देगा, बल्कि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचाएगा। भारत को आने वाले वर्षों में सतत कृषि पद्धतियों और जलवायु-संवेदनशील खेती पर जोर देना होगा, ताकि कपास का “सफेद सोना” भविष्य में भी चमकता रहे।