कच्चातिवु द्वीप विवाद:

कच्चातिवु द्वीप विवाद: इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कच्चातिवु द्वीप का दौरा किया। यह दौरा ऐसे समय पर हुआ है जब भारत में कई राजनीतिक दल और नेता इस द्वीप को भारत को वापस लौटाने की मांग कर रहे हैं। यह मुद्दा केवल क्षेत्रीय राजनीति का नहीं, बल्कि भारत-श्रीलंका संबंधों और तमिलनाडु की मछुआरा राजनीति से भी जुड़ा है।


कच्चातिवु द्वीप: स्थिति और विशेषताएँ

  • अवस्थिति: यह छोटा और निर्जन द्वीप पाक जलडमरूमध्य में स्थित है।

    • तमिलनाडु के रामेश्वरम शहर के उत्तर-पूर्व में।

    • श्रीलंका के जाफना शहर के दक्षिण-पश्चिम में।

  • भौगोलिक स्थिति:

    • द्वीप बंजर है।

    • यहाँ पीने के पानी के साधन या स्वच्छता सुविधाएँ नहीं हैं।

    • सेंट एंथोनी कैथोलिक श्राइन ही इसकी एकमात्र स्थायी संरचना है।


राजनीतिक विवाद और इतिहास

  • यह द्वीप लंबे समय तक भारत और श्रीलंका के बीच विवादित रहा।

  • 1974 में भारत-श्रीलंका समझौता हुआ:

    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा का निर्धारण किया गया।

    • कच्चातिवु श्रीलंका के हिस्से में चला गया।

    • बदले में भारत को कन्याकुमारी के पास वेड्ज बैंक (Wadge Bank) प्राप्त हुआ।

  • तमिलनाडु के मछुआरे अब भी इस समझौते पर आपत्ति जताते हैं, क्योंकि इससे उनकी पारंपरिक मछली पकड़ने की पहुँच प्रभावित हुई है।


मौजूदा परिप्रेक्ष्य

  • श्रीलंका के राष्ट्रपति का दौरा, भारत में चल रही द्वीप वापसी की मांग को और अधिक राजनीतिक महत्व देता है।

  • तमिलनाडु में यह मुद्दा मछुआरों के अधिकार, आजीविका और सांस्कृतिक भावनाओं से गहराई से जुड़ा है।

  • भारत सरकार के लिए यह विषय राजनयिक संतुलन और घरेलू राजनीति दोनों दृष्टियों से संवेदनशील है।


निष्कर्ष

कच्चातिवु द्वीप विवाद सिर्फ एक छोटे निर्जन द्वीप का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह भारत-श्रीलंका संबंधों, तमिलनाडु की राजनीति और समुद्री अधिकारों का जटिल मुद्दा है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दोनों देश इस पर किस प्रकार की समझ विकसित करते हैं।