MOSPI का शिक्षा सर्वेक्षण (CMS:E 2025): सरकारी-निजी स्कूलों और शिक्षा पर खर्च की हकीकत
भारत में शिक्षा की गुणवत्ता, पहुँच और खर्च हमेशा से एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) ने अपनी रिपोर्ट ‘व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण: शिक्षा (Comprehensive Modular Survey: Education – CMS:E), 2025’ जारी की।
यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 80वें दौर का हिस्सा था और इसमें स्कूली छात्रों के परिवारों द्वारा शिक्षा पर किए जाने वाले खर्च और उनकी पसंद (सरकारी बनाम निजी स्कूल) का आकलन किया गया है।
सरकारी और निजी स्कूलों में नामांकन
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कुल छात्र नामांकन में सरकारी स्कूलों की हिस्सेदारी 55.9% है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में 66% छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।
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शहरी क्षेत्रों में यह हिस्सा मात्र 30.1% है, यानी वहाँ निजी स्कूलों का दबदबा है।
👉 यह आँकड़ा दर्शाता है कि ग्रामीण भारत में अब भी शिक्षा का मुख्य आधार सरकारी स्कूल हैं, जबकि शहरी भारत में मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग निजी स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
शिक्षा पर खर्च
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ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति छात्र औसत खर्च: ₹8,382
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शहरी क्षेत्रों में प्रति छात्र औसत खर्च: ₹23,470
👉 शहरी छात्रों पर होने वाला खर्च ग्रामीण छात्रों की तुलना में लगभग तीन गुना है।
यह असमानता न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बल्कि आर्थिक और सामाजिक अंतर को भी उजागर करती है।
निजी कोचिंग का चलन
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कुल छात्रों में से लगभग 27% छात्र निजी कोचिंग ले रहे थे।
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शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत 30.7% है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम।
👉 निजी कोचिंग का यह रुझान शिक्षा प्रणाली में प्रतिस्पर्धा और अतिरिक्त बोझ दोनों को दर्शाता है।
रिपोर्ट से उभरती तस्वीर
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सरकारी स्कूलों का महत्व – अब भी आधे से अधिक बच्चे सरकारी स्कूलों पर निर्भर हैं, खासकर ग्रामीण भारत में।
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शहरी-ग्रामीण खाई – शहरी क्षेत्रों में शिक्षा पर खर्च कहीं अधिक है, जिससे बेहतर सुविधाएँ और अवसर मिलते हैं।
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शिक्षा का महँगा होना – निजी स्कूल और कोचिंग का चलन शिक्षा को गरीब और मध्यम वर्ग के लिए महँगा बना रहा है।
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गुणवत्ता का सवाल – निजी कोचिंग पर निर्भरता यह दिखाती है कि नियमित स्कूल शिक्षा पर्याप्त नहीं मानी जा रही।
आगे की राह
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सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार – ताकि ग्रामीण और शहरी दोनों बच्चे बिना अतिरिक्त खर्च के अच्छी शिक्षा पा सकें।
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शिक्षा पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाना – भारत को शिक्षा बजट को जीडीपी के 6% तक ले जाना होगा।
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निजी कोचिंग पर निगरानी – ताकि यह शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा न बने और असमानता न बढ़ाए।
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शहरी-ग्रामीण अंतर कम करना – डिजिटल शिक्षा और स्मार्ट क्लासरूम से दोनों क्षेत्रों में संतुलन लाना।
निष्कर्ष
MOSPI का CMS:E 2025 सर्वेक्षण साफ दिखाता है कि भारत में शिक्षा का चेहरा दो हिस्सों में बंटा हुआ है —
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एक ओर ग्रामीण भारत, जहाँ सरकारी स्कूल प्रमुख हैं लेकिन खर्च और सुविधाएँ सीमित।
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दूसरी ओर शहरी भारत, जहाँ शिक्षा पर ज्यादा खर्च होता है और निजी स्कूलों व कोचिंग का दबदबा है।
यदि भारत को समान, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी है तो सरकारी स्कूलों और शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार करने होंगे।