राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT): अधिकार क्षेत्र, भूमिका और हालिया विवाद

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT): अधिकार क्षेत्र, भूमिका और हालिया विवाद

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की आलोचना की है। कारण यह था कि NGT ने एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत जाँच करने का आदेश दे दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन (Exceeding Jurisdiction) बताते हुए कहा कि NGT को केवल पर्यावरणीय मामलों तक ही सीमित रहना चाहिए, न कि आर्थिक अपराधों की जाँच का आदेश देना चाहिए।


NGT की स्थापना और उद्देश्य

  • स्थापना: NGT की स्थापना 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (NGT Act, 2010) के तहत हुई।

  • उद्देश्य:

    • पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करना।

    • वन, जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े विवादों का त्वरित समाधान।

    • लोगों को पर्यावरणीय न्याय (Environmental Justice) सुलभ कराना।


NGT की विशेषताएँ

  1. विशेष न्यायाधिकरण – पर्यावरणीय मामलों के लिए विशेष रूप से गठित।

  2. तेज़ न्याय – 6 महीने के भीतर मामलों का निपटारा करने का प्रयास।

  3. विशेषज्ञ सदस्य – इसमें न्यायिक और तकनीकी विशेषज्ञ दोनों शामिल होते हैं।

  4. अपील का प्रावधान – NGT के आदेश के खिलाफ अपील सीधे सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है।


NGT का अधिकार क्षेत्र

NGT निम्नलिखित कानूनों से संबंधित मामलों की सुनवाई करता है:

  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

  • वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981

  • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974

  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980

  • जैव विविधता अधिनियम, 2002

👉 ध्यान दें: NGT को धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) या अन्य आर्थिक अपराधों पर अधिकार नहीं है।


हालिया विवाद : NGT और ED

  • एक मामले में NGT ने ED को PMLA के तहत जाँच का आदेश दे दिया।

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आदेश NGT के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि NGT का कार्य पर्यावरणीय विवादों तक सीमित है, न कि आर्थिक अपराधों तक।


NGT की उपलब्धियाँ

  • यमुना और गंगा नदी प्रदूषण से जुड़े कई आदेश।

  • वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए निर्माण स्थलों और पटाखों पर प्रतिबंधात्मक दिशा-निर्देश।

  • आर्द्रभूमि और वन क्षेत्र संरक्षण से जुड़े निर्णय।

  • कचरा प्रबंधन और प्लास्टिक प्रदूषण पर कड़े निर्देश।


NGT के समक्ष चुनौतियाँ

  1. अधिकार क्षेत्र को लेकर भ्रम – अक्सर अपने दायरे से बाहर जाकर आदेश देने की आलोचना।

  2. सीमित बुनियादी ढाँचा – पर्याप्त संख्या में बेंच और विशेषज्ञों की कमी।

  3. क्रियान्वयन की समस्या – कई बार राज्यों और एजेंसियों द्वारा NGT के आदेशों को लागू न करना।

  4. राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव – कई बार बड़े उद्योग और परियोजनाएँ फैसलों को प्रभावित करती हैं।


निष्कर्ष

NGT भारत में पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास का एक अहम स्तंभ है। हालाँकि, हालिया घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसे अपने सीमित अधिकार क्षेत्र के भीतर ही काम करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी NGT के लिए एक चेतावनी और मार्गदर्शन दोनों है — ताकि यह संस्था अपने मूल उद्देश्य यानी पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों की सुरक्षा पर ही केंद्रित रहे।