भारत की छह धरोहरें यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल (मार्च 2025)
📅 घोषणा तिथि: 7 मार्च, 2025
📌 घोषणा द्वारा: यूनेस्को (UNESCO)
🗺️ नया अपडेट: भारत की 6 प्रमुख ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरें अब यूनेस्को की अस्थायी (टेंटेटिव) सूची में शामिल हो गई हैं।
👉 इस नवीनतम समावेशन के साथ भारत के अस्थायी स्थलों की कुल संख्या 62 हो गई है।
🆕 शामिल की गई 6 नई धरोहरें:
| क्रम | स्थल का नाम | राज्य | विशेषता |
| 1 | कंगोर घाटी राष्ट्रीय उद्यान | छत्तीसगढ़ | प्राकृतिक सुंदरता, जैव विविधता और भूवैज्ञानिक विशेषता |
| 2 | मुदुमल मेगालिथिक मेन्हिर | तेलंगाना | लौह युग की पुरातात्विक संरचनाएं |
| 3 | सम्राट अशोक के शिलालेख स्थल | विभिन्न राज्य | तीसरी शताब्दी ई.पू. के ऐतिहासिक अभिलेख |
| 4 | चौसठ योगिनी मंदिर | मध्य प्रदेश | गोलाकार संरचना और अद्वितीय मूर्तिकला |
| 5 | गुप्तकालीन मंदिर | मध्य प्रदेश | गुप्तकाल की कला व स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण |
| 6 | बुंदेला राजवंश के महल-किले | म.प्र. व उ.प्र. | राजपूत-मुगल शैली के मध्यकालीन स्थापत्य |
🌿 विशेष विवरण:
🌲 कंगोर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (छत्तीसगढ़)
- स्थान: बस्तर जिला
- प्राकृतिक विशेषताएं:
- 963 वनस्पति प्रजातियां
- 30 दुर्लभ ऑर्किड
- 49 स्तनधारी, 210 पक्षी, 57 मछलियां
- प्रसिद्ध तीरथगढ़ जलप्रपात (150 फीट ऊंचा)
🪨 मुदुमल मेगालिथिक मेन्हिर (तेलंगाना)
- लौह युग से संबंधित
- दफन क्रियाओं व खगोलीय अध्ययन के लिए प्रयुक्त
- प्राचीन मेगालिथिक संस्कृति का प्रमाण
🗿 सम्राट अशोक के शिलालेख
- विभिन्न राज्यों में स्थित
- तीसरी शताब्दी ई.पू. में शिलाओं, गुफाओं व स्तंभों पर उत्कीर्ण
- बौद्ध विचारधारा के प्रचार में ऐतिहासिक भूमिका
🧘♀️ चौसठ योगिनी मंदिर (मध्य प्रदेश)
- गोलाकार मंदिर, पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित
- नक्काशीदार योगिनी मूर्तियां
- शक्ति उपासना व तांत्रिक परंपरा से संबंध
🛕 गुप्तकालीन मंदिर (चतुर्थ–षष्ठ शताब्दी ई.)
- स्थापत्य कला के शुरुआती उदाहरण
- परिष्कृत शिल्पकला और वैदिक वास्तुकला का मेल
🏰 बुंदेला राजवंश के महल व किले
- मुख्य स्थल: जहांगीर महल (ओरछा), गोविंद महल (दतिया)
- राजपूत व मुगल स्थापत्य शैली का संगम
- मध्यकालीन ऐतिहासिक विरासत
🏛️ भारत के UNESCO विश्व धरोहर स्थल (अब तक):
- कुल: 43 स्थल
- 35 सांस्कृतिक
- 7 प्राकृतिक
- 1 मिश्रित (कांबिनेशन)
📌 निष्कर्ष:
भारत की धरोहरों को यूनेस्को की अस्थायी सूची में स्थान मिलना वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों की मान्यता है। यह न केवल संरक्षण के प्रयासों को गति देगा बल्कि पर्यटन, अनुसंधान व स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा।

