सुप्रीम कोर्ट और भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों का संकट
भारत की न्यायपालिका गंभीर मामला-लंबित (pendency) समस्या का सामना कर रही है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 88,417 तक पहुँच गई है, जो अब तक का सबसे उच्च स्तर है।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार:
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अधीनस्थ न्यायालयों में: 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित।
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विभिन्न हाईकोर्ट्स में: 63 लाख से अधिक मामले लंबित।
⚖️ लंबित मामलों के लिए जिम्मेदार कारक
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रिक्त पद
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न्यायपालिका में 5,600 से अधिक पद खाली।
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2006 में हाईकोर्ट्स में रिक्तियों की दर 16% थी, जो 2024 में बढ़कर 30% हो गई।
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कम न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात
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भारत: प्रति 10 लाख लोगों पर 21 न्यायाधीश।
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अमेरिका: प्रति 10 लाख लोगों पर 150 न्यायाधीश।
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अत्यधिक सरकारी मुकदमेबाजी
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लगभग 50% मुकदमे सरकारी एजेंसियों के कारण होते हैं।
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अपर्याप्त अवसंरचना और जनशक्ति
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इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, न्यायालयों में कोर्ट रूम और प्रशासनिक स्टाफ की कमी।
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अन्य कारण
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निपटान की समय-सीमा का अभाव।
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बार-बार स्थगन (adjournments)।
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न्यायालयों की लंबी छुट्टियाँ।
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📉 लंबित मामलों के प्रभाव
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“न्याय में देरी, अन्याय के समान”: पीड़ितों की पीड़ा बढ़ती है, न्याय का निवारक प्रभाव कमजोर होता है।
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सामाजिक-आर्थिक लागत:
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व्यापार और आम नागरिक अतिरिक्त बोझ झेलते हैं।
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कॉन्ट्रैक्ट लागू करने की कमजोरी के कारण Ease of Doing Business रैंकिंग पर नकारात्मक असर।
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जेलों में भीड़:
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इंडियन जस्टिस रिपोर्ट, 2025 के अनुसार, आधे से अधिक जेलें क्षमता से अधिक भरी हुई हैं।
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76% कैदी विचाराधीन (undertrials) हैं।
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✅ लंबित मामलों को कम करने के उपाय
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विधि आयोग की 120वीं रिपोर्ट
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प्रति 10 लाख आबादी पर 50 न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश।
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अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS)
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जिला और अधीनस्थ अदालतों के लिए केंद्रीकृत भर्ती प्रक्रिया।
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न्यायालयों को अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने में मदद।
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डिजिटल और प्रक्रियागत सुधार
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ई-कोर्ट्स मिशन मोड प्रोजेक्ट (फेज III) का विस्तार।
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AI-आधारित केस मैनेजमेंट सिस्टम लागू करना।
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📌 निष्कर्ष
भारत की न्यायपालिका में लंबित मामलों की समस्या न्याय तक समान और त्वरित पहुँच में बड़ी बाधा है। इसके समाधान के लिए न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना, AIJS लागू करना, और डिजिटल सुधार आवश्यक हैं। तभी “सुलभ एवं समयबद्ध न्याय” का सपना साकार हो सकेगा।