ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (ESS) में निवेश की आवश्यकता : भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की दिशा में बड़ा कदम

ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (ESS) में निवेश की आवश्यकता : भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की दिशा में बड़ा कदम

भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इसी के साथ देश की ऊर्जा मांग भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) का विस्तार न केवल ज़रूरी है बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अनिवार्य भी है।

हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2032 तक ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (Energy Storage Systems – ESS) में 50 बिलियन डॉलर (लगभग ₹4.2 लाख करोड़) के निवेश की आवश्यकता होगी।


भारत का स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य

  • भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावाट बिजली उत्पादन क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है।

  • इसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा प्रमुख भूमिका निभाएँगे।

लेकिन इतनी बड़ी क्षमता हासिल करने के लिए केवल ऊर्जा उत्पादन काफी नहीं है। जरूरत है कि इस ऊर्जा को संग्रहित (Store) भी किया जाए, ताकि जब उत्पादन कम हो या मांग अचानक बढ़े तो ऊर्जा की आपूर्ति बाधित न हो।


ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता

  • भारत को 2030 तक 61 गीगावाट और

  • 2032 तक 97 गीगावाट ऊर्जा भंडारण क्षमता चाहिए।

  • वर्तमान में भारत की भंडारण क्षमता केवल 6 गीगावाट है, यानी आने वाले वर्षों में इसमें लगभग 16 गुना वृद्धि करनी होगी।


ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ (ESS) क्या हैं?

ESS ऐसी तकनीकें और प्रणालियाँ हैं, जिनसे ऊर्जा को बाद में उपयोग के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।

प्रमुख तकनीकें:

  1. बैटरी ऊर्जा भंडारण (Battery Storage – Li-ion, Sodium-ion, Flow Batteries)

  2. पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज (Pumped Hydro Storage)

  3. थर्मल एनर्जी स्टोरेज (Thermal Storage)

  4. हाइड्रोजन स्टोरेज (Green Hydrogen)


ESS क्यों ज़रूरी है?

  1. नवीकरणीय ऊर्जा की अनियमितता (Intermittency) – सौर ऊर्जा सिर्फ दिन में और पवन ऊर्जा हवाओं पर निर्भर है। ESS इन उतार-चढ़ाव को संतुलित करता है।

  2. ग्रिड स्थिरता (Grid Stability) – बिजली आपूर्ति और मांग में संतुलन बनाए रखना।

  3. ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security) – भंडारण क्षमता बढ़ने से आयातित ईंधनों पर निर्भरता घटेगी।

  4. कार्बन उत्सर्जन में कमी – स्वच्छ ऊर्जा को अधिकतम उपयोग योग्य बनाकर कोयले की खपत घटेगी।

  5. आर्थिक अवसर – ESS उद्योग में बड़े पैमाने पर निवेश, रोजगार और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।


निवेश क्यों अहम है?

  • उच्च प्रारंभिक लागत – बैटरी और स्टोरेज तकनीक महंगी है।

  • नई तकनीक का विकास – निवेश से सस्ती और टिकाऊ बैटरी (जैसे Solid-State और Sodium-ion) विकसित हो सकेंगी।

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी – निवेश से घरेलू और विदेशी कंपनियों को भारत में स्टोरेज प्लांट लगाने का प्रोत्साहन मिलेगा।

  • 2030 लक्ष्य की अनिवार्यता – यदि निवेश नहीं हुआ तो 500 गीगावाट का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा।


आगे की राह

  1. नीतिगत समर्थन – सरकार को ESS के लिए PLI स्कीम जैसी प्रोत्साहन योजनाएँ लानी होंगी।

  2. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) – निजी कंपनियों और सरकार को मिलकर बड़े प्रोजेक्ट स्थापित करने होंगे।

  3. अनुसंधान एवं विकास (R&D) – नई बैटरी तकनीकों पर निवेश बढ़ाना होगा।

  4. ग्रीन हाइड्रोजन मिशन – दीर्घकालिक ऊर्जा भंडारण का प्रभावी समाधान बन सकता है।


निष्कर्ष

भारत का ऊर्जा भविष्य सिर्फ उत्पादन पर निर्भर नहीं करेगा बल्कि इस पर भी कि हम ऊर्जा को कितनी कुशलता से भंडारित और उपयोग कर पाते हैं।
50 बिलियन डॉलर का निवेश केवल एक संख्या नहीं, बल्कि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा, हरित विकास और जलवायु लक्ष्यों की कुंजी है।

आने वाले वर्षों में ESS भारत की ग्रीन इकोनॉमी का सबसे अहम स्तंभ बनने जा रही है।