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खण्ड – अ (SECTION – A)
1. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए साहित्यिक स्रोत का परिचय दीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: ऐतिहासिक अध्ययन के संदर्भ में साहित्यिक स्रोतों की परिभाषा और प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए उनके महत्व को समझाते हुए शुरुआत करें।
- वर्गीकरण: साहित्यिक स्रोतों को व्यापक श्रेणियों में विभाजित करें (जैसे, धार्मिक, धर्मनिरपेक्ष, विदेशी विवरण)।
- उदाहरणों के साथ संक्षिप्त विवरण:
- धार्मिक: वेद, उपनिषद, महाकाव्य (रामायण, महाभारत), पुराण, बौद्ध ग्रंथ (जातक कथाएँ, त्रिपिटक), जैन ग्रंथ (अंग, भगवती सूत्र)। संक्षेप में उल्लेख करें कि प्रत्येक किस प्रकार की ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करता है (जैसे, सामाजिक जीवन, राजनीतिक स्थितियाँ, दार्शनिक विचार)।
- धर्मनिरपेक्ष: अर्थशास्त्र (कौटिल्य), संगम साहित्य (तमिल), हर्षचरित (बाणभट्ट), कल्हण की राजतरंगिणी। प्रशासन, समाज या क्षेत्रीय इतिहास को समझने में उनके विशिष्ट योगदान पर प्रकाश डालें।
- विदेशी विवरण: यूनानी इतिहासकारों (मेगास्थनीज की इंडिका), चीनी यात्रियों (फा-हien, ह्वेनसांग), अरब विद्वानों के विवरण। उनके बाहरी दृष्टिकोण और पुष्टि पर जोर दें।
- सीमाएँ/चुनौतियाँ: साहित्यिक स्रोतों की सीमाओं (जैसे, पूर्वाग्रह, पौराणिक तत्व, काल निर्धारण के मुद्दे) पर संक्षेप में चर्चा करें।
- निष्कर्ष: प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में साहित्यिक स्रोतों के महत्व को दोहराएं, खासकर जब पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ जोड़ा जाए।

2. स्वतन्त्रता के तुरंत बाद भारत के समक्ष चुनौतियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: 1947 में भारत की स्वतंत्रता के संदर्भ को संक्षेप में स्थापित करें, जिसमें अपार चुनौतियों के साथ उल्लास को भी उजागर करें।
- प्रमुख चुनौतियाँ (श्रेणीबद्ध):
- विभाजन और सांप्रदायिक हिंसा: बड़े पैमाने पर प्रवास, शरणार्थियों का पुनर्वास, सांप्रदायिक दंगे, राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती।
- रियासतों का एकीकरण: 500 से अधिक रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने का कार्य (सरदार पटेल की भूमिका का उल्लेख करें)।
- आर्थिक पिछड़ापन: गरीबी, कम कृषि उत्पादकता, औद्योगीकरण की कमी, बेरोजगारी, भोजन की कमी।
- संविधान निर्माण: एक विविध राष्ट्र के लिए एक व्यापक संविधान का मसौदा तैयार करने की चुनौती, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित किया जा सके।
- सीमा विवाद और बाहरी खतरे: कश्मीर मुद्दा, पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध।
- सामाजिक चुनौतियाँ: निरक्षरता, जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे।
- भाषाई पुनर्गठन: भाषा के आधार पर राज्यों की मांग।
- सरकार की प्रतिक्रिया (संक्षेप में): इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए शुरुआती कदमों का उल्लेख करें (जैसे, पुनर्वास कार्यक्रम, औद्योगिक नीतियां, गुटनिरपेक्षता)।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि इन शुरुआती चुनौतियों ने स्वतंत्र भारत की दिशा को कैसे आकार दिया और इसकी भविष्य की नीतियों की नींव रखी।
3. “नेपोलियन क्रान्ति का पुत्र था ।” – व्याख्या कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: नेपोलियन बोनापार्ट और फ्रांसीसी क्रांति का संक्षेप में परिचय दें, और कथन के मूल तर्क को बताएं।
- वह क्रांति के आदर्शों का प्रतीक कैसे बना:
- योग्यता पर आधारित: नेपोलियन योग्यता के आधार पर पदोन्नति प्राप्त करता गया, पुरानी अभिजात्य प्रणाली से दूर होता गया जिसे क्रांति ने बढ़ावा दिया था।
- कानूनी सुधार (नेपोलियन संहिता): कानून के समक्ष समानता, सामंतवाद के उन्मूलन और धार्मिक सहिष्णुता के क्रांतिकारी सिद्धांतों को शामिल किया।
- राष्ट्रवाद: फ्रांसीसी राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया जो क्रांति से उभरा था।
- सामंतवाद का उन्मूलन: पुरानी सामंती संरचनाओं को ध्वस्त करने के क्रांतिकारी विचारों को विजित क्षेत्रों तक ले गया।
- उसने क्रांतिकारी आदर्शों को कैसे दबाया (विरोधाभास):
- अधिनायकवाद: एक साम्राज्य स्थापित किया, शक्ति को केंद्रीकृत किया, राजनीतिक असंतोष को दबाया, स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया।
- साम्राज्यवाद: विजय के युद्धों में लगा रहा, जो क्रांति के स्वतंत्रता पर शुरुआती जोर के विपरीत था।
- गुलामी की बहाली: कुछ उपनिवेशों में।
- संश्लेषण/निष्कर्ष: यह तर्क देकर निष्कर्ष निकालें कि नेपोलियन वास्तव में क्रांति का एक उत्पाद था, जिसने अपनी ताकत और कमजोरियों को विरासत में प्राप्त किया। उसने कुछ क्रांतिकारी उपलब्धियों को समेकित किया जबकि साथ ही दूसरों के साथ विश्वासघात भी किया, अंततः फ्रांस और यूरोप को इसके मद्देनजर बदल दिया।


4. भारतीय समाज पर वैश्वीकरण के प्रभावों की चर्चा कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय संदर्भ में वैश्वीकरण को परिभाषित करें (आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एकीकरण) और बताएं कि इसके प्रभाव बहुआयामी हैं।
- सकारात्मक प्रभाव:
- आर्थिक विकास: बढ़ा हुआ एफडीआई, आईटी और सेवा क्षेत्रों का उदय, रोजगार सृजन, उपभोक्ता विकल्पों में वृद्धि।
- तकनीकी उन्नति: वैश्विक प्रौद्योगिकी और नवाचार तक पहुंच।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: विविध संस्कृतियों, भोजन, फैशन और विचारों के संपर्क में आना।
- जीवन स्तर में सुधार: समाज के कुछ वर्गों के लिए बेहतर वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच।
- महिला सशक्तिकरण (सीमित): कुछ क्षेत्रों में महिलाओं के लिए बढ़े हुए अवसर।
- नकारात्मक प्रभाव:
- बढ़ती असमानता: अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, ग्रामीण-शहरी विभाजन।
- सांस्कृतिक समरूपता/क्षरण: पारंपरिक मूल्यों के लिए खतरा, उपभोक्तावाद का उदय, “पश्चिमीकरण”।
- पर्यावरणीय क्षरण: औद्योगिक गतिविधि में वृद्धि से प्रदूषण।
- श्रम का अनौपचारिकरण: अनिश्चित कार्य स्थितियों का विकास।
- कृषि पर प्रभाव: वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण चुनौतियाँ।
- स्थानीय उद्योगों का नुकसान: बहुराष्ट्रीय निगमों से प्रतिस्पर्धा के कारण।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि वैश्वीकरण ने भारतीय समाज में अवसर और चुनौतियाँ दोनों लाए हैं, जिससे लाभ को अधिकतम करने और प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए सावधानीपूर्वक नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है।
5. भारतीय ग्रामीण समाज के विकास में महिला संगठनों के योगदान का वर्णन कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: भारत में महिला संगठनों के महत्व और ग्रामीण विकास में उनकी विशिष्ट भूमिका को संक्षेप में बताएं, जहाँ चुनौतियाँ अक्सर अधिक स्पष्ट होती हैं।
- प्रमुख योगदान (यदि संभव हो तो उदाहरणों के साथ):
- आर्थिक सशक्तिकरण: स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), सूक्ष्म वित्त, व्यावसायिक प्रशिक्षण, ग्रामीण महिलाओं के उत्पादों के लिए बाजारों तक पहुंच को बढ़ावा देना (जैसे, सेवा)।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता: मातृ स्वास्थ्य, बाल पोषण, स्वच्छता, स्वच्छता सुविधाओं, परिवार नियोजन पर जागरूकता अभियान।
- शिक्षा और साक्षरता: वयस्क साक्षरता कार्यक्रम चलाना, लड़कियों के स्कूल में नामांकन को प्रोत्साहित करना, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना।
- सामाजिक बुराइयों का मुकाबला: घरेलू हिंसा, बाल विवाह, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या, शराब के खिलाफ अभियान।
- राजनीतिक भागीदारी और वकालत: ग्राम सभा की बैठकों के लिए महिलाओं को संगठित करना, स्थानीय शासन (पंचायतों) में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की वकालत करना, कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- पर्यावरण संरक्षण: वन संरक्षण (चिपको आंदोलन), जल प्रबंधन, सतत कृषि में भागीदारी।
- जागरूकता और अधिकार: कानूनी अधिकारों, सरकारी योजनाओं और न्याय तक पहुंच के बारे में जागरूकता फैलाना।
- सामने आने वाली चुनौतियाँ: संक्षेप में उन चुनौतियों का उल्लेख करें जिनका इन संगठनों को सामना करना पड़ता है (जैसे, धन, पितृसत्तात्मक मानसिकता, सीमित पहुंच)।
- निष्कर्ष: इस बात पर जोर दें कि महिला संगठन ग्रामीण भारत में परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं, सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहे हैं, जीवन स्थितियों में सुधार कर रहे हैं और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दे रहे हैं।
6. भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: यह बताते हुए शुरू करें कि भारतीय संस्कृति सबसे पुरानी और सबसे विविध संस्कृतियों में से एक है, जो परंपराओं और आधुनिकता के एक अद्वितीय मिश्रण की विशेषता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- विविधता और बहुलवाद: भाषाई, धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय विविधता, सद्भाव में सह-अस्तित्व।
- अध्यात्म और धर्म: दैनिक जीवन में विभिन्न धर्मों (हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म आदि) की प्रमुख भूमिका, धर्म, कर्म पर जोर।
- सहिष्णुता और समावेशिता: विविध मान्यताओं और प्रथाओं को स्वीकार करने की ऐतिहासिक परंपरा।
- पारिवारिक मूल्य और समुदाय: संयुक्त परिवार प्रणाली पर अत्यधिक जोर, बड़ों के प्रति सम्मान, सामुदायिक बंधन।
- निरंतरता और परंपरा: प्राचीन परंपराओं, अनुष्ठानों, कलाओं और दर्शन को सहस्राब्दियों से संरक्षित किया गया है।
- समृद्ध कलात्मक और साहित्यिक विरासत: शास्त्रीय नृत्य रूप, संगीत, साहित्य (संस्कृत, तमिल, क्षेत्रीय भाषाएँ), वास्तुकला, मूर्तिकला।
- अनुकूलनशीलता और लचीलापन: अपनी मूल पहचान को बनाए रखते हुए विदेशी प्रभावों को अवशोषित और एकीकृत करने की क्षमता।
- योग और आयुर्वेद: स्वास्थ्य और कल्याण की पारंपरिक प्रणालियाँ।
- धर्म की अवधारणा: नैतिक और नैतिक कर्तव्य, धर्मी आचरण।
- निष्कर्ष: भारतीय संस्कृति की गतिशील प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष निकालें, जो लगातार विकसित हो रही है जबकि अपने मौलिक सार को बनाए रखती है, जिससे यह एक अद्वितीय और स्थायी सभ्यता बन जाती है।
7. मनुष्यों के लिए महासागरों का क्या उपयोग है ?
- दृष्टिकोण:
- परिचय: पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने और मानवता को कई लाभ प्रदान करने में महासागरों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दें।
- महासागरों के उपयोग:
- भोजन का स्रोत: मछली, शेलफिश, समुद्री शैवाल।
- परिवहन और व्यापार: वैश्विक शिपिंग मार्गों, माल और लोगों की आवाजाही।
- ऊर्जा स्रोत: तेल, गैस, पवन ऊर्जा (अपतटीय पवन फार्म), ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा।
- खनिज और संसाधन: खनिजों (मैंगनीज नोड्यूल्स), नमक, मीठे पानी (विलवणीकरण)।
- जलवायु विनियमन: पृथ्वी के तापमान और मौसम पैटर्न को विनियमित करना, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करना।
- मनोरंजन और पर्यटन: तैराकी, सर्फिंग, गोताखोरी, मछली पकड़ना, क्रूज पर्यटन।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: समुद्री जीवन, महासागरीय धाराओं, जलवायु परिवर्तन का अध्ययन।
- नौसेना रक्षा: रणनीतिक महत्व, नौसैनिक संचालन।
- औषधीय उपयोग: समुद्री जीवों से प्राप्त औषधीय यौगिक।
- चुनौतियाँ/संरक्षण: संक्षेप में महासागरों के सामने आने वाली चुनौतियों (जैसे, प्रदूषण, अति-मत्स्यन, जलवायु परिवर्तन) और उनके संरक्षण के महत्व का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष: यह दोहराते हुए निष्कर्ष निकालें कि महासागर मानव अस्तित्व और कल्याण के लिए अपरिहार्य हैं, और उनके सतत प्रबंधन की आवश्यकता है।
8. जलवायु, मृदा और वनस्पति के अन्तर्सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: जलवायु, मृदा और वनस्पति के बीच जटिल और अन्योन्याश्रित संबंधों को बताते हुए शुरू करें, यह समझाते हुए कि वे एक साथ एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं।
- जलवायु का मृदा और वनस्पति पर प्रभाव:
- तापमान: मृदा निर्माण की दर (अपक्षय), जैविक गतिविधि, पौधों की वृद्धि की दर को प्रभावित करता है।
- वर्षा: मृदा नमी, लीचिंग (पोषक तत्वों का रिसाव), मृदा अपरदन, पौधों के प्रकार और घनत्व को निर्धारित करती है।
- हवा: मृदा अपरदन, वाष्पीकरण, पौधों के परागण और बीज फैलाव को प्रभावित करती है।
- सूर्य का प्रकाश: प्रकाश संश्लेषण, पौधों की वृद्धि और मृदा तापमान को प्रभावित करता है।
- मृदा का जलवायु और वनस्पति पर प्रभाव:
- मृदा की संरचना और बनावट: जल प्रतिधारण, वातन, पोषक तत्व उपलब्धता को प्रभावित करती है, जो बदले में पौधों के विकास को प्रभावित करती है।
- पोषक तत्व: पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है, जो वनस्पति के प्रकार और घनत्व को निर्धारित करती है।
- जैविक पदार्थ: मृदा की उर्वरता, जल प्रतिधारण क्षमता और कार्बन चक्र में भूमिका निभाता है, जो स्थानीय जलवायु को प्रभावित कर सकता है।
- मृदा का रंग: सौर विकिरण के अवशोषण को प्रभावित करता है, जो स्थानीय तापमान को प्रभावित कर सकता है।
- वनस्पति का जलवायु और मृदा पर प्रभाव:
- जलवायु पर: वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से नमी को वायुमंडल में छोड़ती है, वर्षा पैटर्न को प्रभावित करती है, स्थानीय तापमान को नियंत्रित करती है (छाया)।
- मृदा पर: जड़ों के माध्यम से मृदा को बांधती है (अपरदन को रोकती है), जैविक पदार्थ जोड़ती है (पत्तियों का गिरना, जड़ें), मृदा की संरचना और उर्वरता में सुधार करती है।
- माइक्रोक्लाइमेट: सघन वनस्पति अपने नीचे एक अद्वितीय माइक्रोक्लाइमेट बना सकती है, जिससे तापमान और आर्द्रता प्रभावित होती है।
- निष्कर्ष: इस बात पर जोर दें कि ये तीनों घटक एक जटिल, गतिशील प्रणाली का हिस्सा हैं जहाँ एक में परिवर्तन दूसरों को प्रभावित करता है, जिससे क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता बनती है।
9. स्मार्ट सिटी क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: स्मार्ट सिटी को एक ऐसे शहरी क्षेत्र के रूप में परिभाषित करें जो नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार, शहरी संचालन की दक्षता बढ़ाने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी, डेटा और नवाचार का लाभ उठाता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- स्मार्ट गवर्नेंस और नागरिक भागीदारी: पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन, ई-गवर्नेंस सेवाएं, नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण, डेटा-संचालित निर्णय लेना।
- स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर: कुशल परिवहन प्रणाली, स्मार्ट ग्रिड (ऊर्जा), जल प्रबंधन, अपशिष्ट प्रबंधन, डिजिटल कनेक्टिविटी।
- स्मार्ट मोबिलिटी: सार्वजनिक परिवहन, पैदल चलने योग्य रास्ते, साइकिल ट्रैक, वास्तविक समय यातायात प्रबंधन, इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन।
- स्मार्ट पर्यावरण: प्रदूषण नियंत्रण, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, हरियाली, जल पुनर्चक्रण, अपशिष्ट से ऊर्जा।
- स्मार्ट अर्थव्यवस्था: नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना, कौशल विकास, रोजगार सृजन, व्यापार के लिए अनुकूल माहौल।
- स्मार्ट लिविंग: सुरक्षित और सुरक्षित वातावरण, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा तक पहुंच, आवास, मनोरंजक स्थान।
- सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग: डेटा सेंसर, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा एनालिटिक्स का व्यापक उपयोग।
- नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण: नागरिकों की जरूरतों और वरीयताओं को पूरा करना, उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि स्मार्ट सिटी केवल प्रौद्योगिकी के बारे में नहीं है, बल्कि स्थायी और रहने योग्य शहरी स्थानों को बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के बारे में है जो नागरिकों की भलाई को बढ़ाते हैं।
10. भारत के भूकम्पीय क्षेत्रों पर टिप्पणी लिखिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: भारत की भूवैज्ञानिक स्थिति को संक्षेप में समझाएं (भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराना), जो इसे भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र बनाता है।
- भूकंपीय क्षेत्रों का वर्गीकरण (भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार):
- जोन V (बहुत उच्च जोखिम): भारत का सबसे सक्रिय क्षेत्र। इसमें पूर्वोत्तर भारत के हिस्से, कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के कुछ हिस्से, कच्छ का रण, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
- जोन IV (उच्च जोखिम): इसमें दिल्ली, मुंबई, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- जोन III (मध्यम जोखिम): प्रायद्वीपीय भारत के अधिकांश हिस्से, दक्कन पठार के अधिकांश हिस्से।
- जोन II (कम जोखिम): कुछ स्थिर महाद्वीपीय क्षेत्र।
- प्रमुख भूगर्भीय कारण: हिमालयी श्रृंखला की टेक्टोनिक गतिविधि, भारतीय प्लेट की निरंतर गति, दोष रेखाएँ।
- प्रभाव और तैयारी: इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए खतरों (जानमाल का नुकसान, बुनियादी ढांचे को नुकसान) पर संक्षेप में चर्चा करें और भूकंप-रोधी निर्माण, आपदा प्रबंधन योजनाओं और जन जागरूकता जैसे शमन उपायों पर प्रकाश डालें।
- निष्कर्ष: यह दोहराते हुए निष्कर्ष निकालें कि भारत के विभिन्न भूकंपीय क्षेत्र देश के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करते हैं और प्रभावी शमन और तैयारी रणनीतियों की आवश्यकता है।
खण्ड – ब (SECTION – B)
11. “फ्रांस की क्रान्ति प्रबोधनकाल का सुपरिणाम थी । टिप्पणी कीजिए ।”
- दृष्टिकोण:
- परिचय: फ्रांसीसी क्रांति और प्रबोधन काल (Enlightenment) को संक्षेप में परिभाषित करें, और कथन की पुष्टि करें कि क्रांति प्रबोधन के विचारों का एक उत्पाद थी।
- प्रबोधन के प्रमुख विचार और उनका क्रांति से संबंध:
- तर्क और कारण पर जोर: प्रबोधन ने तर्क को महत्व दिया, जिससे पुराने, अतार्किक राजशाही और सामंती व्यवस्था पर सवाल उठे। क्रांति ने तार्किक सिद्धांतों पर आधारित एक नए समाज का निर्माण करना चाहा।
- प्राकृतिक अधिकार: जॉन लॉक जैसे विचारकों ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के प्राकृतिक अधिकारों की बात की। क्रांति ने “मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा” में इन अधिकारों को शामिल किया।
- शक्ति का पृथक्करण: मोंटेस्क्यू के विचारों ने निरंकुश शासन के बजाय शक्ति के पृथक्करण (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) का समर्थन किया, जिसने क्रांति के दौरान संवैधानिक राजतंत्र की मांग को प्रेरित किया।
- लोकतंत्र और लोकप्रिय संप्रभुता: रूसो के “सामाजिक अनुबंध” के विचार ने लोकप्रिय संप्रभुता और सामान्य इच्छा का समर्थन किया, जिसने लोगों को संप्रभुता के स्रोत के रूप में स्थापित किया।
- स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व: ये क्रांति के नारे प्रबोधन के सार्वभौमिक सिद्धांतों से सीधे प्रेरित थे।
- धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता: प्रबोधन ने धार्मिक हठधर्मिता पर सवाल उठाया और सहिष्णुता का आह्वान किया, जिसने क्रांति को चर्च की शक्ति को कम करने और धार्मिक स्वतंत्रता स्थापित करने में मदद की।
- ज्ञान और शिक्षा का प्रसार: प्रबोधन ने ज्ञान के प्रसार को प्रोत्साहित किया, जिससे लोगों में मौजूदा व्यवस्था के प्रति जागरूकता और असंतोष बढ़ा।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि प्रबोधन काल ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए बौद्धिक आधार तैयार किया, जिससे पुराने शासन के खिलाफ आक्रोश को एक वैचारिक ढांचा मिला। यह क्रांति प्रबोधन के विचारों का एक प्रत्यक्ष और शक्तिशाली परिणाम थी।
12. बंगाल में क्रान्तिकारी आन्दोलन के विकास को रेखांकित कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के उदय को संक्षेप में बताएं, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ बढ़ती निराशा और राष्ट्रवाद की तीव्र भावना से प्रेरित था।
- शुरुआती चरण और गुप्त समाज:
- अनुशीलन समिति और युगांतर: ये शुरुआती गुप्त समाज थे जिन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों और सहयोगियों के खिलाफ राजनीतिक हत्याओं और डकैतियों का सहारा लिया।
- प्रमुख नेता: जतिंदर नाथ मुखर्जी (बाघा जतिन), खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, अरविंदो घोष, बारिन घोष।
- कार्रवाईयाँ: मुजफ्फरपुर बम कांड, अलीपुर बम कांड।
- बंगाल विभाजन का प्रभाव (1905): विभाजन ने क्रांतिकारी गतिविधियों को और तेज कर दिया, क्योंकि इसने ब्रिटिश साम्राज्य की दमनकारी प्रकृति को उजागर किया।
- द्वितीय चरण और आगे का विकास:
- मास्टर सूर्य सेन और चटगांव शस्त्रागार छापा: एक महत्वपूर्ण घटना जिसने ब्रिटिश हथियारों को जब्त करने और उनके गढ़ को कमजोर करने का प्रयास किया।
- महिला क्रांतिकारियों की भूमिका: प्रीतिलता वाडेकर, कल्पना दत्त, बीना दास जैसे महिलाओं का योगदान।
- प्रचार और साहित्य: युगांतर पत्रिका और अन्य राष्ट्रवादी प्रकाशनों ने युवाओं को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
- क्रांतिकारी दर्शन: कुछ समूहों द्वारा अहिंसक तरीकों की विफलता में विश्वास, और सशस्त्र प्रतिरोध और बलिदान के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प।
- ब्रिटिश दमन और आंदोलन का अंत: ब्रिटिश सरकार द्वारा कठोर दमन, गिरफ्तारी, परीक्षण और फांसी ने आंदोलन को कमजोर कर दिया, हालांकि इसका प्रभाव बना रहा।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय का प्रतिनिधित्व किया, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ मजबूत प्रतिरोध का प्रदर्शन किया और भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित किया।
13. संगमकालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ क्या है ?
- दृष्टिकोण:
- परिचय: संगम काल को संक्षेप में परिभाषित करें (तमिलनाडु और केरल का प्रारंभिक ऐतिहासिक काल, लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक) और बताएं कि यह अपनी समृद्ध साहित्यिक, सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- संगम साहित्य: इस काल की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता, जिसमें कविताएँ, महाकाव्य और व्याकरण ग्रंथ शामिल हैं (उदाहरण: तोल्काप्पियम, पट्टिनप्पलाई, तिरुक्कुरल)। यह साहित्य उस समय के समाज, राजनीति और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- राजतंत्र और प्रमुख राजवंश: चेर, चोल और पांड्य जैसे प्रमुख राजवंशों का उदय, जो व्यापार और सैन्य शक्ति में लगे हुए थे।
- कृषि और अर्थव्यवस्था: कृषि एक प्रमुख व्यवसाय था, जिसमें धान की खेती प्रमुख थी। मसाले, मोती, वस्त्र और कीमती पत्थरों का व्यापार आंतरिक और बाहरी दोनों स्तरों पर फला-फूला (रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार)।
- शहरीकरण और व्यापारिक केंद्र: पुहार (कावेरीपट्टनम), मदुरै और उरैयूर जैसे प्रमुख शहरी केंद्र और बंदरगाह।
- सामाजिक संरचना: समाज योद्धाओं, ब्राह्मणों, किसानों और व्यापारियों में विभाजित था। महिलाओं की स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर थी, और वे सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेती थीं।
- धार्मिक प्रथाएँ: स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा, मुरुगन (स्कंद) की पूजा प्रमुख थी। जैन धर्म और बौद्ध धर्म भी मौजूद थे।
- कला और वास्तुकला: संगम काल के दौरान पत्थर और लकड़ी की कला के प्रमाण मिलते हैं, हालांकि अधिक स्थायी संरचनाएं बाद के काल में विकसित हुईं।
- युद्ध और वीरता: समाज में युद्ध और वीरता का उच्च महत्व था, और योद्धाओं को सम्मानित किया जाता था।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि संगम संस्कृति भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय और जीवंत अध्याय का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें एक विकसित समाज, अर्थव्यवस्था और एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा थी।
14. भारतीय समाज अपनी विशिष्टता और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। चर्चा कीजिए।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय समाज को दुनिया के सबसे विविध और विशिष्ट समाजों में से एक के रूप में परिभाषित करें, जो हजारों वर्षों से विकसित हुआ है और विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और भाषाओं का एक पिघलने वाला बर्तन है।
- विशिष्टता (Uniqueness):
- अखंडता में विविधता (Unity in Diversity): कई भाषाओं, धर्मों, जातियों और जातीय समूहों के बावजूद, एक अंतर्निहित एकता है जो राष्ट्र को एक साथ बांधे रखती है।
- निरंतरता और प्राचीनता: दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक, जिसकी परंपराएं हजारों वर्षों से चली आ रही हैं।
- आध्यात्मिकता पर जोर: धर्म और दर्शन का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में गहरा प्रभाव।
- संयुक्त परिवार प्रणाली: परिवार और समुदाय के मजबूत बंधन।
- ग्राम समुदाय: भारत के ग्रामीण समाज की मूलभूत इकाई, जो सामाजिक और आर्थिक जीवन का केंद्र है।
- सांस्कृतिक विविधता (Cultural Diversity):
- भाषाई विविधता: 22 आधिकारिक भाषाओं और सैकड़ों बोलियों के साथ।
- धार्मिक विविधता: हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और अन्य धर्मों का सह-अस्तित्व।
- जातीय विविधता: विभिन्न जातीय समूह और जनजातियां, प्रत्येक की अपनी अनूठी पहचान है।
- क्षेत्रीय विविधता: विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाज, त्योहार, भोजन, कपड़े और कला रूप।
- कला और शिल्प: शास्त्रीय नृत्य, संगीत, लोक कलाएं, हस्तशिल्प की एक विस्तृत श्रृंखला।
- भोजन की विविधता: भारत के हर क्षेत्र में अद्वितीय व्यंजन हैं।
- त्योहारों की विविधता: विभिन्न धर्मों और क्षेत्रों द्वारा मनाए जाने वाले कई त्योहार।
- चुनौतियाँ: इस विविधता से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का संक्षिप्त उल्लेख करें (जैसे, सांप्रदायिक तनाव, क्षेत्रीयता)।
- निष्कर्ष: यह दोहराते हुए निष्कर्ष निकालें कि भारतीय समाज की विशिष्टता और सांस्कृतिक विविधता उसकी सबसे बड़ी ताकत है, जो उसे एक समृद्ध और जीवंत राष्ट्र बनाती है, हालांकि इसे बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है।
15. गरीबी के कारणों और परिणामों की चर्चा कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: गरीबी को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित करें जहां व्यक्तियों या परिवारों के पास न्यूनतम जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त संसाधनों या आय की कमी होती है, और यह भारत में एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।
- गरीबी के कारण (Causes of Poverty):
- ऐतिहासिक कारण: औपनिवेशिक शोषण, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर किया।
- जनसंख्या वृद्धि: संसाधनों पर दबाव और उच्च निर्भरता अनुपात।
- कम कृषि उत्पादकता: मानसून पर निर्भरता, छोटे और खंडित भूखंड, प्रौद्योगिकी की कमी।
- उच्च बेरोजगारी/अल्प-रोजगार: कौशल की कमी, संगठित क्षेत्र में अपर्याप्त नौकरियां, जनसंख्या वृद्धि।
- आय असमानता: धन और आय का असमान वितरण।
- शिक्षा और कौशल की कमी: निम्न साक्षरता दर और व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी, जिससे कम आय वाले रोजगार मिलते हैं।
- स्वास्थ्य सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुंच: बीमारी के कारण आय का नुकसान और चिकित्सा खर्च।
- सामाजिक कारण: जाति व्यवस्था, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक बहिष्करण।
- बुनियादी ढांचे की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, बिजली, सिंचाई जैसी सुविधाओं का अभाव।
- संस्थागत कारक: भ्रष्टाचार, खराब शासन, अक्षम सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
- प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखा जैसी आपदाएँ, जो फसलों और आजीविका को नष्ट कर देती हैं।
- गरीबी के परिणाम (Consequences of Poverty):
- मानव विकास पर प्रभाव: कुपोषण, खराब स्वास्थ्य, कम जीवन प्रत्याशा, निम्न साक्षरता दर।
- सामाजिक परिणाम: अपराध में वृद्धि, सामाजिक अशांति, बाल श्रम, वेश्यावृत्ति।
- आर्थिक परिणाम: कम उत्पादकता, कम क्रय शक्ति, आर्थिक विकास में बाधा।
- पर्यावरणीय परिणाम: संसाधनों का अति-शोषण, वनों की कटाई, प्रदूषण (गरीब अक्सर हाशिए पर रहने वाले और नाजुक पारिस्थितिक तंत्र में रहते हैं)।
- राजनीतिक अस्थिरता: सरकार के प्रति असंतोष, कट्टरवाद का उदय।
- शिक्षा और अवसरों की कमी: गरीबी का दुष्चक्र।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि गरीबी एक बहुआयामी समस्या है जिसके गहरे सामाजिक, आर्थिक और मानवीय परिणाम होते हैं, और इसे हल करने के लिए एक समग्र और बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
16. भारत में बढ़ता हुआ क्षेत्रवाद किस प्रकार से अर्थव्यवस्था तथा राज्यव्यवस्था को प्रभावित कर रही है ? स्पष्ट कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: क्षेत्रवाद को एक विशेष क्षेत्र के प्रति मजबूत पहचान और वफादारी के रूप में परिभाषित करें, जो कभी-कभी राष्ट्रीय हितों पर क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता दे सकता है, और बताएं कि यह भारत में कैसे बढ़ रहा है।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- निवेश में बाधा: क्षेत्रीय तनाव और राजनीतिक अस्थिरता निवेशकों को हतोत्साहित कर सकती है, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
- संसाधनों का असमान वितरण: क्षेत्रीय मांगों के कारण संसाधनों का असमान वितरण हो सकता है, जिससे कुछ क्षेत्रों को फायदा होता है जबकि अन्य उपेक्षित रहते हैं।
- उत्पादन और व्यापार में बाधा: अंतर-राज्यीय विवाद (जैसे जल विवाद) और क्षेत्रीय आंदोलन आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकते हैं।
- श्रम गतिशीलता पर प्रभाव: “भूमि के पुत्र” जैसे नारे बाहरी श्रमिकों को हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे श्रम बाजार में विकृति आती है।
- विकास परियोजनाओं में देरी: क्षेत्रीय विरोध और प्रतिरोध के कारण बड़ी विकास परियोजनाओं में देरी हो सकती है।
- राजकोषीय संघीयता पर दबाव: अधिक स्वायत्तता और वित्तीय आवंटन की क्षेत्रीय मांगों से केंद्र-राज्य संबंधों पर दबाव पड़ सकता है।
- राज्यव्यवस्था पर प्रभाव:
- संघीय ढांचे पर दबाव: क्षेत्रीय दल और आंदोलनों केंद्र पर अधिक स्वायत्तता और शक्तियों के लिए दबाव डालते हैं, जिससे संघवाद पर तनाव पैदा होता है।
- राजनीतिक अस्थिरता: गठबंधन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका के कारण अस्थिरता हो सकती है।
- कानून और व्यवस्था की चुनौतियाँ: क्षेत्रीय आंदोलनों से हिंसा, विरोध प्रदर्शन और कानून-व्यवस्था की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- राष्ट्रीय एकता को खतरा: अत्यधिक क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
- नीतिगत लकवा: क्षेत्रीय हितों को संतुष्ट करने के लिए राष्ट्रीय नीति निर्माण में समझौता या देरी हो सकती है।
- क्षेत्रीय असंतुलन: क्षेत्रीय मांगों को पूरा करने की होड़ से कुछ क्षेत्रों में अतिरिक्त लाभ हो सकता है, जिससे दूसरों में असंतुलन पैदा होता है।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि जबकि कुछ हद तक क्षेत्रवाद विविधता का एक प्राकृतिक परिणाम है, अत्यधिक क्षेत्रवाद भारत की अर्थव्यवस्था और राज्यव्यवस्था दोनों के लिए गंभीर चुनौतियाँ पेश कर सकता है, जिसके लिए एक संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
17. ‘जनसंख्या विस्फोट भारत के सम्यक विकास में एक गम्भीर चुनौती है।’ कथन की समीक्षा कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: जनसंख्या विस्फोट को संक्षेप में परिभाषित करें (तेजी से जनसंख्या वृद्धि) और बताएं कि भारत ने स्वतंत्रता के बाद से महत्वपूर्ण जनसंख्या वृद्धि देखी है, जिससे देश के “सम्यक विकास” (समग्र/संतुलित विकास) के लिए एक गंभीर चुनौती उत्पन्न हुई है।
- सम्यक विकास में चुनौतियाँ (Impacts on Holistic Development):
- आर्थिक विकास पर दबाव:
- संसाधन पर दबाव: भूमि, जल, भोजन जैसे सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव।
- रोजगार सृजन: तेजी से बढ़ती श्रम शक्ति के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा करने में असमर्थता, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।
- प्रति व्यक्ति आय में कमी: बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति आय का वितरण कम हो जाता है।
- बुनियादी ढांचे पर दबाव: आवास, परिवहन, ऊर्जा आदि जैसे बुनियादी ढांचे पर अत्यधिक दबाव।
- सामाजिक विकास पर दबाव:
- शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर अत्यधिक बोझ, जिससे गुणवत्ता में कमी आती है।
- कुपोषण और गरीबी: बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त भोजन और पोषण सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ, जिससे गरीबी और कुपोषण बढ़ता है।
- सामाजिक असमानता: संसाधनों और अवसरों के लिए प्रतिस्पर्धा से सामाजिक असमानता बढ़ सकती है।
- शहरीकरण की चुनौतियाँ: ग्रामीण-शहरी प्रवास में वृद्धि से झुग्गी-झोपड़ियों, स्वच्छता और अपराध जैसी शहरी चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- संसाधनों का अति-शोषण: वनोन्मूलन, जल संसाधनों की कमी, मृदा का क्षरण।
- प्रदूषण: बढ़ता शहरीकरण और औद्योगीकरण वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि करता है।
- जैव विविधता का नुकसान: मानव अतिक्रमण और निवास स्थान के विनाश के कारण।
- शासन और प्रशासन पर दबाव: बड़ी आबादी का प्रबंधन और सार्वजनिक सेवाओं का वितरण अधिक जटिल हो जाता है।
- आर्थिक विकास पर दबाव:
- सरकार के प्रयास (संक्षेप में): परिवार नियोजन कार्यक्रम, शिक्षा और जागरूकता अभियान।
- निष्कर्ष: निष्कर्ष निकालें कि जनसंख्या विस्फोट वास्तव में भारत के समग्र विकास के लिए एक गंभीर चुनौती है, जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करता है। इसके लिए एक व्यापक और बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, महिला सशक्तिकरण और टिकाऊ विकास नीतियां शामिल हों।
18. भारत में स्मार्ट ग्राम की अवधारणा पर प्रकाश डालिए तथा स्मार्ट ग्राम की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: स्मार्ट ग्राम की अवधारणा को एक ऐसे ग्रामीण क्षेत्र के रूप में परिभाषित करें जो आधुनिक तकनीकों और टिकाऊ प्रथाओं का उपयोग करके ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और पर्यावरण की रक्षा करने का लक्ष्य रखता है। यह स्मार्ट शहरों की अवधारणा का ग्रामीण समकक्ष है।
- स्मार्ट ग्राम की आवश्यकता/महत्व: ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम करना, प्रवास को रोकना, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सेवाओं में सुधार करना।
- स्मार्ट ग्राम की प्रमुख विशेषताएँ:
- डिजिटल कनेक्टिविटी: इंटरनेट, ब्रॉडबैंड सेवाएं, वाई-फाई हॉटस्पॉट, डिजिटल साक्षरता।
- स्वच्छ ऊर्जा और जल: नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन), कुशल जल प्रबंधन (जल संचयन, जल पुनर्चक्रण), सुरक्षित पेयजल आपूर्ति।
- बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा: टेली-मेडिसिन, मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां, डिजिटल शिक्षा, कौशल विकास केंद्र।
- स्मार्ट कृषि: आधुनिक कृषि तकनीकें, मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड, मौसम पूर्वानुमान, ई-मार्केटप्लेस, कृषि-आधारित उद्योग।
- स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन: ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, सार्वजनिक शौचालय, स्वच्छता जागरूकता।
- सुरक्षा और निगरानी: सीसीटीवी कैमरे, आपातकालीन सेवाएं, सामुदायिक सुरक्षा उपाय।
- ग्रामीण पर्यटन और संस्कृति का संरक्षण: स्थानीय कला, शिल्प और विरासत को बढ़ावा देना।
- शासन और नागरिक भागीदारी: ई-गवर्नेंस, ग्राम सभा की सक्रिय भागीदारी, पारदर्शी प्रशासन।
- आर्थिक अवसर: गैर-कृषि रोजगार सृजन, छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना।
- सरकार की पहल (संक्षेप में): जैसे कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन, सांसद आदर्श ग्राम योजना।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि स्मार्ट ग्राम की अवधारणा ग्रामीण भारत को बदलने और ग्रामीण समुदायों के लिए अधिक टिकाऊ, समृद्ध और रहने योग्य भविष्य बनाने की कुंजी है, जिससे समग्र राष्ट्रीय विकास में योगदान मिलेगा।
19. भारत में वनो एवं जल स्रोतों के जैविक विविधता का संरक्षण पारिस्थितिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक है । विस्तार से स्पष्ट कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: जैव विविधता को परिभाषित करें (पृथ्वी पर जीवन की विविधता) और बताएं कि भारत अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से अपने वनों और जल स्रोतों में। पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए इस जैव विविधता का संरक्षण महत्वपूर्ण है।
- जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन के बीच संबंध: जैव विविधता एक स्वस्थ और लचीले पारिस्थितिकी तंत्र की नींव है। प्रत्येक प्रजाति एक खाद्य श्रृंखला में एक भूमिका निभाती है, और प्रजातियों का नुकसान पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकता है।
- वनों की जैव विविधता का महत्व:
- कार्बन सिंक: वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करते हैं।
- ऑक्सीजन उत्पादन: प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं।
- जल विनियमन: वर्षा पैटर्न को प्रभावित करते हैं, जल चक्र को बनाए रखते हैं, मृदा अपरदन को रोकते हैं।
- निवास स्थान: वन्यजीवों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए घर।
- संसाधन: लकड़ी, औषधीय पौधों, गैर-काष्ठ वन उत्पादों का स्रोत।
- मृदा संरक्षण: मृदा अपरदन को रोकते हैं और मृदा की उर्वरता बनाए रखते हैं।
- जल स्रोतों की जैव विविधता का महत्व (नदियाँ, झीलें, आर्द्रभूमि, महासागर):
- जल शुद्धिकरण: जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रदूषकों को फ़िल्टर करने में मदद करते हैं।
- मत्स्य पालन: भोजन और आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत।
- जलीय जीवन के लिए निवास स्थान: मछली, उभयचर, सरीसृप, पक्षी और अन्य जलीय जीवों की मेजबानी करते हैं।
- जल विनियमन: बाढ़ नियंत्रण, भूजल पुनर्भरण।
- सूक्ष्म जलवायु: स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करते हैं।
- आनुवंशिक विविधता: विभिन्न जलीय प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता का भंडार।
- संरक्षण की आवश्यकता:
- मानवीय गतिविधियों के कारण खतरा: वनों की कटाई, प्रदूषण, अति-मत्स्यन, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन।
- पारिस्थितिक संतुलन के लिए: यदि जैव विविधता का नुकसान होता है, तो पारिस्थितिक सेवाएं बाधित हो जाएंगी, जिससे मानव अस्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- आर्थिक और सामाजिक लाभ: जैव विविधता पर्यटन, औषधीय उपयोग और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है।
- संरक्षण के उपाय (संक्षेप में): संरक्षित क्षेत्र (राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य), कानून (वन्यजीव संरक्षण अधिनियम), जागरूकता अभियान, सतत प्रथाएं।
- निष्कर्ष: इस बात पर जोर दें कि वनों और जल स्रोतों की जैव विविधता का संरक्षण केवल पारिस्थितिक संतुलन के लिए ही नहीं, बल्कि भारत की दीर्घकालिक स्थिरता, आर्थिक कल्याण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।
20. सुनामी की विशेषताओं, कारणों एवं प्रभावों का सोदाहरण विवेचन प्रस्तुत कीजिए ।
- दृष्टिकोण:
- परिचय: सुनामी को परिभाषित करें – महासागर में बड़े पैमाने पर जल विस्थापन के कारण उत्पन्न होने वाली विशाल समुद्री लहरों की एक श्रृंखला, जो अक्सर भूकंप, भूस्खलन या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण होती है।
- सुनामी की विशेषताएँ (Characteristics):
- लंबी तरंग दैर्ध्य: खुली महासागर में सैकड़ों किलोमीटर तक।
- छोटी ऊंचाई: खुली महासागर में बमुश्किल ध्यान देने योग्य (कुछ सेंटीमीटर से कुछ मीटर तक)।
- तेज गति: जेट विमानों की गति से यात्रा कर सकती है (800 किमी/घंटा तक)।
- तट के पास ऊंचाई में वृद्धि: उथले पानी में प्रवेश करने पर तरंग दैर्ध्य कम हो जाती है और ऊंचाई नाटकीय रूप से बढ़ जाती है (कई मीटर, कभी-कभी 30 मीटर से अधिक)।
- लहरों की श्रृंखला: एकल लहर नहीं, बल्कि कई लहरों का अनुक्रम, अक्सर पहली लहर सबसे बड़ी नहीं होती है।
- ड्रॉबैक (Drawback): सुनामी के आने से पहले समुद्र तट से पानी का पीछे हटना (अक्सर चेतावनी का संकेत)।
- सुनामी के कारण (Causes):
- समुद्र के भीतर भूकंप (सबसे आम): जब समुद्री प्लेटें टकराती हैं और एक बड़ी मात्रा में पानी को विस्थापित करती हैं।
- उदाहरण: 2004 हिंद महासागर सुनामी (सुमात्रा के तट पर 9.1 तीव्रता का भूकंप)।
- समुद्र के नीचे भूस्खलन: पानी के नीचे की ढलानों पर बड़े पैमाने पर सामग्री का अचानक विस्थापन।
- उदाहरण: 1958 लिटुया बे, अलास्का सुनामी (एक विशाल भूस्खलन से 500 मीटर से अधिक ऊंची लहर)।
- ज्वालामुखी विस्फोट: पानी के नीचे या तटीय ज्वालामुखी के बड़े विस्फोटक विस्फोट।
- उदाहरण: 1883 क्राकाटोआ का विस्फोट।
- उल्कापिंड का प्रभाव (दुर्लभ): बड़े उल्कापिंडों का महासागर में गिरना।
- समुद्र के भीतर भूकंप (सबसे आम): जब समुद्री प्लेटें टकराती हैं और एक बड़ी मात्रा में पानी को विस्थापित करती हैं।
- सुनामी के प्रभाव (Effects):
- मानवीय नुकसान: जानमाल का भारी नुकसान, सैकड़ों हजारों लोगों की मौत।
- उदाहरण: 2004 हिंद महासागर सुनामी में 14 देशों में 230,000 से अधिक लोग मारे गए।
- बुनियादी ढांचे का विनाश: इमारतों, सड़कों, पुलों, बंदरगाहों, बिजली और संचार लाइनों का व्यापक विनाश।
- पर्यावरणीय क्षति: तटीय पारिस्थितिकी तंत्र (मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ) का विनाश, मृदा का लवणीकरण।
- आर्थिक प्रभाव: पर्यटन, मछली पकड़ने और कृषि जैसे उद्योगों को नुकसान, पुनर्निर्माण की भारी लागत।
- सामाजिक प्रभाव: विस्थापन, आघात, समुदायों का टूटना।
- भूवैज्ञानिक परिवर्तन: तटीय रेखाओं का परिवर्तन।
- मानवीय नुकसान: जानमाल का भारी नुकसान, सैकड़ों हजारों लोगों की मौत।
- निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि सुनामी एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है जो अपनी विशेषताओं (विशेष रूप से तट के पास इसकी ऊंचाई में वृद्धि) के कारण भारी तबाही मचा सकती है, और इसके कारणों को समझना और प्रभावी चेतावनी प्रणाली और शमन रणनीतियों को लागू करना आवश्यक है।