विठ्ठलभाई पटेल (1873–1933): भारत के प्रथम भारतीय अध्यक्ष और स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा

🏛️ विठ्ठलभाई पटेल (1873–1933): भारत के प्रथम भारतीय अध्यक्ष और स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा

भारत की आज़ादी की लड़ाई में अनेक महान नेताओं ने अपना योगदान दिया। इनमें से एक महत्वपूर्ण नाम है विठ्ठलभाई झवेरभाई पटेल का, जो न केवल सरदार वल्लभभाई पटेल के बड़े भाई थे बल्कि स्वयं एक प्रखर वकील, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी राजनेता भी थे। हाल ही में ऑल इंडिया स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस ने उनके द्वारा सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के प्रथम भारतीय अध्यक्ष (अगस्त 1925) बनने के 100 वर्ष पूरे होने पर उनके योगदान को याद किया।


👶 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • जन्म: 27 सितंबर 1873, नडियाद (गुजरात) में।

  • उन्होंने कानून की पढ़ाई की और वकालत को अपने करियर की शुरुआत बनाया।

  • कानून की गहरी समझ और तेज बुद्धि ने उन्हें राजनीति में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया।


⚖️ राजनीतिक जीवन और योगदान

1. प्रारंभिक राजनीति

  • बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य बने।

  • 1918 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए चुने गए।

  • प्रारंभ से ही उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के लिए अपने जीवन को समर्पित किया।

2. स्वराज पार्टी की स्थापना

  • 1922 में मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास के साथ मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की।

  • इस पार्टी का उद्देश्य था ब्रिटिश शासन के भीतर रहकर विधायिकाओं का उपयोग स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज बुलंद करने में करना।

3. सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष

  • अगस्त 1925 में वे सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के प्रथम भारतीय अध्यक्ष बने।

  • इससे पहले तक इस पद पर केवल ब्रिटिश अधिकारी ही होते थे।

  • उन्होंने अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल में निष्पक्षता, ईमानदारी और दृढ़ नेतृत्व का परिचय दिया।

4. नगर प्रशासन

  • 1923 से 1925 तक वे बॉम्बे नगर निगम के मेयर रहे।

  • इस दौरान उन्होंने शहरी प्रशासन और जनहित के कार्यों में सुधार की दिशा में कई पहल की।


🌍 विचारधारा और समाज सुधार

  • विठ्ठलभाई पटेल का मानना था कि स्वतंत्रता सिर्फ राजनीतिक आज़ादी तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में समानता, न्याय और सुधार लाना भी उतना ही ज़रूरी है।

  • उन्होंने वकालत और राजनीति दोनों मंचों पर जनता की भलाई को प्राथमिकता दी।


🕊️ अंतिम वर्ष और विरासत

  • 22 अक्टूबर 1933 को उनका निधन हो गया।

  • हालांकि उनका जीवन अपेक्षाकृत छोटा रहा, लेकिन उन्होंने जो नींव रखी, उसने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी।

  • वे भारतीय राजनीति में न्यायप्रिय नेतृत्व और स्वतंत्रता के संघर्ष में अटूट विश्वास के प्रतीक बने।


✨ निष्कर्ष

विठ्ठलभाई पटेल को याद करना केवल उनके राजनीतिक पदों का स्मरण करना नहीं है, बल्कि यह भी समझना है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में कैसे नेताओं ने समाज, राजनीति और न्याय के हर पहलू को जोड़ा। सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में उनका अध्यक्ष बनना उस दौर का ऐतिहासिक क्षण था, जब भारत ने साबित किया कि वह स्वयं शासन करने की क्षमता रखता है।